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Aurangabad News: पति के दीर्घायु होने के लिए महिलाएं करेंगी वट वृक्ष की पूजा

Aurangabad News: काले व सफेद वस्त्र धारण कर वट सावित्री की पूजन करना वर्जित

औरंगाबाद/अंबा. सनातन संस्कृति में वट सावित्री व्रत का आध्यात्मिक व पारंपरिक महत्व रहा है. सौभाग्यवती महिलाएं संतान और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना की भावना से इस व्रत को करती हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार वट सावित्री व्रत प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष अमावस्या तिथि को विधि विधान से मनाया जाता है. देश के कई राज्यों में इस व्रत का अनुष्ठान तीन दिन पहले से हीं शुरू हो जाता है, जिसकी पूर्णता अमावस्या को होती है. यह व्रत आदर्श नारित्व का प्रतीक माना जाता है. सुहागिन स्त्रियां अपने पति की लंबी उम्र, उत्तम स्वास्थ्य, सुखी वैवाहिक जीवन और संतानोत्पत्ति की कामना से वट सावित्री अनुष्ठान को रखती है. विस्तृत जानकारी देते हुए ज्योतिर्विद डॉ हेरंब कुमार मिश्र ने बताया कि इस वर्ष वटसावित्री व्रत 26 मई यानि सोमवार को रखा जायेगा. सुहागिन स्त्रियां श्रद्धा एवं भक्ति के साथ उक्त दिन उपवास रखकर वटवृक्ष के नीचे जाकर विधिपूर्वक पूजा करेगीं. उन्होंने बताया कि उस दिन पूर्वाह्न 10:54 बजे के बाद अमावस्या तिथि आरंभ होगी, जो मंगलवार को प्रातः 8:32 बजे तक रहेगी. सोमवार को स्वार्थ सिद्धियोग होने के कारण इस व्रत की महिमा और बढ़ जाति है. पुराणों में बताया गया है कि वटवृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु और महेश का निवास होता है. वृक्ष के नीचे की जाने वाली पूजा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है.

इस व्रत से सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ी

ज्योतिर्विद ने बताया कि इस व्रत से सावित्री और सत्यवान की कथा जुड़ी है. सत्यवान की मृत्यु नजदीक आने पर उनकी पत्नी सावित्री ने तीन दिनों तक उपवास रखकर व्रत किया. मृत्यु के दिन वह सत्यवान के साथ लकड़ी लाने जंगल गयी. जब सत्यवान की मृत्यु हो गई और यमराज उनके प्राण को लेकर यमलोक जाने लगे तो सावित्री न उनका पीछे पड़ गई. वह दृढ़ निश्चय व पातिव्रत्य धर्म से उन्हें प्रसन्न कर यमराज से तीन वरदान मांगे. वरदानों के प्रतिफल से उसके पति जीवित हो गये. सास ससुर को खोया हुआ राज्य प्राप्त हो गया और वह पुत्रवती भी बन गयी. सावित्री ने किस प्रकार से अपनी कठिन साधना एवं पातिव्रत्य धर्म पालन कर अपने पति के प्राण को यमराज के पास से वापस लायी थी. प्रत्येक महिलाओं को इसका अनुसरण करना चाहिए. उन्होंने बताया कि वट सावित्री खासकर सौभाग्य वृद्धि का व्रत है. इसलिए व्रतियों को पूरी शुद्धता एवं निष्ठा से इस व्रत को करना चाहिए. व्रतियों को पूजन के समय काले या उजले वस्त्र कतई धारण नहीं करना चाहिए. बरगद दीर्घायु और अमरत्व का बोधक है. इसके नीचे की जाने वाली पूजा का फल सदैव प्राप्त होता है. पूजन के उपरांत ब्राह्मण को दान दक्षिणादि से प्रसन्न कर आदर सहित उन्हें विदा करना चाहिए.

अनुष्ठान के दौरान बरगद वृक्ष लगाने का करें प्रयास

पर्यावरण में संतुलन कायम करने व प्रकृति सरंक्षण के लिए धरती पर पेड़ो का होना जरूरी है. भौतिक-दैविक व दैहिक तीनों तरह के तापों से बचाव के लिए भी हर व्यक्ति को वृक्ष लगाना चाहिए. वृक्ष पक्षियों के लिए आश्रय दाता के रूप में काम करते है.इसकी पत्तियां दूध व डंठल जड़ी बूटी के रूप में प्रयुक्त होते है. ढुंडा गांव के आचार्य राधेकृष्ण पांडेय उर्फ गुडू पांडेय, रजनीश पांडेय और कंचन पांडेय ने बताया कि वट सावित्री की पूजा के पश्चात महिलाओं को निश्चित रूप से बरगद वृक्ष का पौधा लगाने का प्रयास करना चाहिए. अगर फिलहाल का मौसम अनुकूल नहीं है तो वर्षा ॠतु में पौधारोपण करना चाहिए. आचार्यो ने बताया कि सुहागिन स्त्रियों के पौधा रोपण करने से एक तरफ सुख शांति व समृद्धि आयेगी. दूसरे तरफ आने वाले पीढियों को वट सावित्री व्रत का अनुष्ठान करने के लिए बरगद वृक्ष के लिए भटकना नहीं पड़ेगा. आज प्रखंड के कई ऐसा भी गांव है जहां कि सुहागिन स्त्रियां को बरगद वृक्ष की पूजा करने के लिए दूसरे जगह पहुंचती है. उन्हे काफी मशक्कत करनी पड़ती है व भीड़ का सामान करना पड़ता है.

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