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सिम कार्ड को ब्लॉक कर साइबर ठग लोगों के खाते से उड़ा लेते हैं रुपये
सिम कार्ड ब्लॉक होने के कारण शिक्षक को नहीं मिल सकी ठगी की तत्काल जानकारी मदनपुर : साइबर एक स्पेस है] जिस पर बैठ कर हम और आप काम करते हैं. इस पर पॉजिटिव वर्क करना तो अच्छी बात है, लेकिन अगर नेगेटिव करते हैं तो यही साइबर क्राइम कहलाता है. आज के परिवेश में […]
सिम कार्ड ब्लॉक होने के कारण शिक्षक को नहीं मिल सकी ठगी की तत्काल जानकारी
मदनपुर : साइबर एक स्पेस है] जिस पर बैठ कर हम और आप काम करते हैं. इस पर पॉजिटिव वर्क करना तो अच्छी बात है, लेकिन अगर नेगेटिव करते हैं तो यही साइबर क्राइम कहलाता है. आज के परिवेश में कंप्यूटर व इसकी नेटवर्किंग की सुदृढ़ जानकारी वाले कुछ शातिर लोग साइबर क्राइम के माध्यम से लोगों को आर्थिक क्षति पहुंचाने में जुटे हैं. ऐसे साइबर अपराधी प्रतिदिन विभिन्न विधियों से आम व खास लोगों के साथ ठगी करने से बाज नहीं आ रहे हैं. साइबर अपराधियों ने तो अब विभिन्न बैंकों के चेक का क्लोन तक तैयार कर लिया है.
इतना ही नहीं अब साइबर अपराधी ट्रू कॉलर जैसे उच्चस्तरीय स्मार्ट सिस्टम का गलत प्रयोग कर संभ्रात व पढ़े लिखे लोगों को बेवकूफ बनाने में जुटे हैं. फ्रेंचाइजी सिस्टम के तालमेल से किसी भी सिम कार्ड को ब्लॉक करवा कर संबंधित व्यक्ति के खाते से पैसा उड़ा लेना साइबर अपराधियों के लिए आम बात हो गयी है. ऐसा ही एक मामला मदनपुर प्रखंड के रेउआ उमगा के मनोज कुमार एवं घटराइन हाई स्कूल में पदस्थापित शिक्षक जयंत कुमार सिंह के साथ घटी है. जिसमें साइबर अपराधियों ने बड़ी चलाकी से इनके खाते से लाखों रुपये उड़ा लिये है.
इनके साथ हुई घटना : राणा रामेश्वर उच्च विद्यालय घटराइन में पदस्थापित शिक्षक जयंत कुमार सिंह के खाते से इसी तरह 41 हजार 255 रुपया की ठगी कर ली गयी है. सिम कार्ड ब्लॉक होने के कारण शिक्षक को इस ठगी की जानकारी तत्काल नहीं मिल सकी.
एक मामला यह भी है कि रेलवे में कार्यरत मदनपुर प्रखंड के रेउआ निवासी के साथ साइबर अपराधी ने उनके खाते से 23 नवंबर से 5 दिसंबर तक दो लाख तीस हजार 971 रुपए की निकासी कर ली. जानकारी तब मिली जब बैंक से पैसा निकालने गये तो पता चला कि उनके खाते में मात्र 12 हजार 900 रुपया ही है. इस घटना के बाद दोनों ने स्थानीय थाने को लिखित सूचना दी है.
ऐसे होती है ठगी
साइबर अपराधी किसी के मोबाइल फोन पर संपर्क कर उनके खाते को आधार लिंक से अटैच करने की हिदायत देते हैं. खुद को किसी बड़े बैंक का अधिकारी बताते हुए उनसे सबसे पहले उनका क्रेडिट या डेबिट कार्ड पर अंकित 15 अंकों का नंबर प्राप्त कर लेते हैं. इसके बाद मोबाइल ग्राहकों को बताया जाता है कि आपके पास बैंक द्वारा एक ओपीटी सेंड किया जा रहा है.
ग्राहकों को बताया जाता है कि आपके मोबाइल पर जो ओपीटी नंबर भेजा जा रहा है उसे आप तत्काल हमारे मोबाइल नंबर पर सेंड करें. यहां जानने वाली बात है कि किसी ऑनलाइन शॉपिंग के दौरान बैंक से भेजे जाने वाले ओपीटी नंबर की समय सीमा 3 मिनट के लिए मान्य है. 3 मिनट के बाद ओपीटी नंबर स्वतः अमान्य हो जाता है.
साइबर अपराधी ओपीटी नंबर लेकर संबंधित मोबाइल कंपनी के सिम कार्ड को ब्लॉक करने के लिए तत्काल सेंड कर देते हैं. मोबाइल नंबर ब्लॉक हो जाने के बाद संबंधित सिम कार्ड तत्काल ब्लॉक हो जाता है. सिम कार्ड के ब्लॉक होते ही साइबर अपराधी पूर्व से प्राप्त डेबिट व क्रेडिट कार्ड के नंबर के आधार पर घर बैठे खाते से रुपए की निकासी, ऑनलाइन शॉपिंग कर लेते हैं .इस बात की जानकारी तत्काल ठगी के शिकार होने वाले लोगों तक नहीं पहुंचती है, क्योंकि उनका सिम कार्ड ब्लॉक रहता है.
पुलिस तत्काल नहीं करती आइटी एक्ट में केस
इन दोनों की शिकायत है कि संबंधित साइबर ठगी के मामले में पुलिस तत्काल साइबर एक्ट में कांड दर्ज नहीं करती है. थाने में शिकायत की स्थिति में भादवि की धारा 379 व भादवि की धारा 420 धोखाधड़ी कांड दर्ज किया जाता है. कांड के अनुसंधान के बाद धाराओं में परिवर्तन किया जाता है. पुलिस अधिकारी की मानें तो जिले में किसी तरह का साइबर सेल के नहीं होने से इस तरह के मामले को पटना साइबर सेल को जांच करने के लिये भेज दिया जाता है.
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