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छठ को ले बाजार में बढ़ी भीड़, छठ घाटों पर प्रशासन की नजर

अरवल/कुर्था/करपी : लोकआस्था का महान पर्व चैती छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. व्रतधारियों ने मंगलवार को चावल, चने का दाल, कद्दू की सब्जी समेत विभिन्न व्यंजनों के साथ पर्व की शुरुआत की. वहीं पूरे पवित्रता के साथ चावल, कद्दू की सब्जी आदि बनाकर भगवान भास्कर को साक्षी मानकर भोजन ग्रहण किया. […]

अरवल/कुर्था/करपी : लोकआस्था का महान पर्व चैती छठ मंगलवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. व्रतधारियों ने मंगलवार को चावल, चने का दाल, कद्दू की सब्जी समेत विभिन्न व्यंजनों के साथ पर्व की शुरुआत की. वहीं पूरे पवित्रता के साथ चावल, कद्दू की सब्जी आदि बनाकर भगवान भास्कर को साक्षी मानकर भोजन ग्रहण किया. व्रतधारी बुधवार को खरना करेंगे.

जबकि गुरुवार की संध्या अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ अर्पण करेंगे व शुक्रवार की सुबह उदयीमान सूर्य को अर्घ अर्पण के साथ लोक आस्था का महापर्व छठ का समापन किया जायेगा. छठ पर्व को लेकर प्रखंड क्षेत्र के कुर्था, मानिकपुर , मोतेपुर समेत विभिन्न इलाकों में छठ के गीतों से पूरा माहौल भक्तिमय होता दिख रहा है.
वहीं व्रतधारियों के स्वागत को लेकर प्रखंड क्षेत्र के विभिन्न इलाकों में कई तोरण द्वार भी बनाये गये हैं. छठ पर्व को लेकर कुर्था सूर्य मंदिर परिसर व पंचतीर्थ धाम के अलावा विभिन्न छठ घाटों को पूरी तरह से सजा दिया गया है. वहीं मंदिर कमेटियों द्वारा व्रतधारियों की सुविधा के लिए तरह-तरह के इंतजाम किये गये हैं.
इस बाबत कुर्था सूर्य मंदिर कमेटी के अध्यक्ष अशोक चौरसिया ने बताया कि प्रत्येक वर्ष की तरह इस वर्ष भी लोक आस्था के महापर्व चैती छठ को लेकर कुर्था सूर्य मंदिर परिसर को पूरे तरह से साफ -सुथरा व रंग -रोगन का कार्य किया गया है.
वहीं बिजली की रोशनी से भी मंदिरों को पूरी तरह सजाया गया है. किसी प्रकार की कोई कठिनाइयां न हो, इसे लेकर नल-जल के अलावा चापाकल, कुएं व तालाबों में भी पर्याप्त पानी समेत विभिन्न माध्यमों से पानी की व्यवस्था की गयी है.
करपी. चार दिनों तक चलने वाले सूर्य उपासना का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया. अरवल- औरंगाबाद सीमा पर स्थित देवकुण्ड के सहस्त्रधाराओं से युक्त तालाब में श्रद्धालुओं ने स्नान कर भगवान भास्कर का दर्शन किया. इसके बाद बुधवार को खरना होगा.
अर्थवेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर की मानस बहन हैं. प्रकृति के छठे अंश से षष्ठी माता उत्पन्न हुई हैं.
उन्हें बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी माना जाता है. एक अन्य किद्वंती के अनुसार महर्षि च्यवन को नवयौवन शरीर प्राप्ति के लिए सुकन्या में सर्वप्रथम देवकुंड में स्थित सहस्त्रधाराओं से युक्त तालाब में सूर्य की उपासना की थी.
इसके बाद लोक आस्था का पर्व छठ प्रचलित हुआ. देवकुंड मंदिर में पौरोहित्य कर्म कर आने वाले हैं. आचार्य शिव कुमार पांडेय के अनुसार 11 अप्रैल को सांयकालीन अर्घ दिया जायेगा. इस दिन रवि योग रहेगा. इस संयोग से श्रद्धालुओं पर सूर्यदेव की विशेष कृपा होगी.
ये हैं मान्यताएं : छठ पूजा के बारे में कई मान्यताएं हैं. कहा जाता है राजा प्रियंवद और रानी मालिनी को कोई संतान नहीं थी. महर्षि कश्यप के कहने पर इस दंपती ने यज्ञ किया, जिससे पुत्र की प्राप्ति हुई.
दुर्भाग्य से नवजात मरा हुआ पैदा हुआ. राजा-रानी प्राण त्याग के लिए आतुर हुए तो ब्रह्मा की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं. उन्होंने राजा से कहा कि सृष्टि की मूल प्रवृति के छठे अंश से पैदा हुई हूं, इसलिए षष्ठी कहलाती हूं. इनकी पूजा करने से संतान की प्राप्ति होगी. राजा-रानी ने षष्ठी व्रत किया और उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई.

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