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गांधी पुस्तकालय में ग्रंथ व किताबें हो रहीं बर्बाद

अरवल : एक समय में जिले क्षेत्र का सरताज और ज्ञान के भंडार के रूप में चिह्नित जिला मुख्यालय का एकलौता गांधी पुस्तकालय वर्तमान समय में देखरेख के अभाव में संसाधन की कमी के कारण कराह रहा है. जिसकी आवाज सुन कर भी लोग लापरवाह बने हुए हैं. गांधी पुस्तकालय के निर्माण के बंद से […]

अरवल : एक समय में जिले क्षेत्र का सरताज और ज्ञान के भंडार के रूप में चिह्नित जिला मुख्यालय का एकलौता गांधी पुस्तकालय वर्तमान समय में देखरेख के अभाव में संसाधन की कमी के कारण कराह रहा है. जिसकी आवाज सुन कर भी लोग लापरवाह बने हुए हैं. गांधी पुस्तकालय के निर्माण के बंद से कितनी सरकारें आयी व गयी फिर भी इसकी दशा व दिशा को सुधारने का प्रयत्न नहीं किया गया. पुराने समय के निर्मित भवन के जर्जर हो जाने के कारण प्राचीन भवन के जर्जर हो जाने के कारण प्राचीन ग्रंथ व पुस्तकें नष्ट होने की कगार पर है, जबकि इस पुस्तकालय के प्रांगण में आकर कई नामचीन व्यक्तियों ने विजिट किया.

वर्तमान समय में वर्षों पूर्व बनी समिति के देखरेख येन-केन-प्रकारेण संचालन किया जा रहा है. मालूम हो कि अंग्रेजी हुकूमत काल में जियालाल ठाकुर कनीय अभियंता द्वारा पांच अक्तूबर 1933 को इस पुस्तकालय की नींव रखी गयी थी, जिसका नाम फ्रेंड्स यूनियन लाइब्रेरी रखा गया था. स्थापना काल के बाद से यह पुस्तकालय क्षेत्र का केंद्र बिंदु बनता गया और दिनों दिन इसके सहयोग में लोग हाथ बंटाने लगे. इस दौर रोडल सोलाने के परिवार जो जनक कोठी अरवल में रहा करते थे.

उनके खानदान के लोगों द्वारा 25 वॉलूम पुस्तक उपलब्ध कराया गया था. महात्मा गांधी की मृत्यु के उपरांत उनके श्राद्धकर्म के अवसर पर उक्त पुस्तकालय का नाम बदलकर गांधी पुस्तकालय रखने का निर्णय सर्वसम्मति से पारित किया गया था. इस पुस्तकालय डाॅ राजेंद्र प्रसाद, विनोबा भावे, श्री बाबू के अलावा अन्य कई नामचीन व्यक्तियों का आगमन होता था. दुद्धेश्वर सिंह ने बताया कि इस पुस्तकालय में हस्तलिखित श्यामवेद, कबीर साहित्य के अलावा अन्य कई प्राचीन पुस्तकें हैं. वर्तमान समय में महागीता आठ वॉलूम, पतंजलि योगदर्शन पांच वॉलूम, बौद्ध दर्शन सात, गीतादर्शन आठ, चारों वेद 52 खंड में छह शास्त्र व 18 पुराण के अलावा कई महत्वपूर्ण पुरानी पुस्तकें उपलब्ध हैं. 1942 में इस पुस्तकालय को रेडियो उपलब्ध करायी गयी थी, जिसे सुनने के लिए लोग दूर दराज से आया करते थे. पुस्तकालय के तत्वावधान में कई प्रकार के खेल के आयोजन के साथ-साथ विकास उन्नमुखी कार्यक्रम भी चलाया जाता था. जिसका लाभ किसान मजदूर को प्रत्यक्ष रूप से मिलता था. हाल-फिलहाल डाॅ अखिलेश प्रसाद सिंह व मुंद्रिका प्रसाद यादव द्वारा पुस्तकालय के विकास के लिए सहायता की गयी थी. वहीं पशुराम गांव निवासी स्व दिनेशदत्त मिश्र द्वारा 35 हजार रुपये मूल्य की पुस्तकें सहयोग के रूप में दी गयी थी. तत्कालीन डीएम हेमचंद शिरोही द्वारा प्राथमिक विद्यालय का भवन पुस्तकालय परिसर में कराया गया था. पुस्तकालय भवन निर्माण के लिए न तो प्रशासन से और न तो जन-प्रतिनिधियों द्वारा ही कोई कारगर कदम उठाया जा रहा है. वर्तमान समय में पुस्तकालय भवन परिसर में कीचड़ व गंदगी का अंबार लगा हुआ है, जिसके कारण लोग चाह कर भी पुस्तकालय भवन तक नहीं जा सकते. बरसात के दिनों में उक्त परिसर में पानी लगने के कारण तालाब सा नजारा देखने को प्राय: मिल जाता है.

क्या कहते हैं लोग-
पुस्तकालय के विकास के लिए सभी लोगों को बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेना चाहिए, ताकि पुस्तकालय का विकास हो व लोगों को इसका लाभ उठा सके. रामध्यान सिंह, सेवानिवृत्त शिक्षक
दुर्लभ पुस्तकों को सुरक्षित रखने के लिए शीघ्र ही कदम स्थानीय प्रशासन को उठाना चाहिए, ताकि धरोहर के रूप में प्राचीन पुस्तकों से वर्तमान पीढ़ी के लोग भी अवगत हो सके.
नंद किशोर यादव, समाजसेवी
अगर नियमित रूप से पुस्तकालय का संचालन होता तो नयी पीढ़ी के युवाओं को इसका लाभ मिल पाता इसलिए अतिशीघ्र इसके लिए जिला प्रशासन को कारगर कदम उठाना चाहिए.

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