कुर्साकांटा. कोशिश हो कि दीपावली पर हर घर जले मिट्टी का मिट्टी का दीया ताकि रौशन हो सके कुंभकारों का घर भी. उम्मीद के चाक ने एक बार फिर सरकार की कुशल नेतृत्व के कारण रफ्तार पकड़ी है. यह तो हम सब पर भी निर्भर करता है कि हम अंधेरे पर उजाले की जीत का पर्व दीपावली पर मिट्टी का दीया ही घर पर खरीद कर लाएं, जलाएं. खासकर दीपावली को लेकर कुम्हार जाति के लोग पूरा साल दीपावली का इंतजार करते है कि इस बार मिट्टी से बना दीया बेचकर घर में खुशहाली आयेगी. ऐसे तो सीमांचल में प्रारब्ध से ही त्योहारी मौसम आते ही ग्रामीण क्षेत्रों के मेला में मिट्टी से बना देवी देवता की प्रतिमा, दीया, ढिबरी, मिट्टी का हाथी तो बच्चों के लिए मिट्टी से बना गुड्डा गुड़िया का खिलौना बहुतायत में लोग खरीदते थे. लेकिन समय बदला आमजनों का जीवन स्तर में बदलाव आया तो मिट्टी का घरौंदा की जगह आधुनिक खिलौना ने ले लिया.
मिट्टी का दीये का है धार्मिक महत्व
सनातन परंपरा में मान्यता है कि देवी देवता का पूजा अनुष्ठान में मिट्टी के दीया का प्रयोग होता है. मान्यता है कि घर में मिट्टी का दीया जलाने से घर में सुख, शांति, समृद्धि के साथ आरोग्य प्राप्त होता है. मिट्टी को मंगल ग्रह का प्रतीक माना जाता है तो दीया में डाला जाने वाला तेल शनि का प्रतीक है. मंगल ग्रह जहां साहस, पराक्रम में वृद्धि करता है तो शनि को न्याय व भाग्य का देवता कहा जाता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है

