हज के दौरान पूरी दुनिया के लोग एक साथ अमन शांति व आपसी प्रेम सद्भाव की करते हैं सामूहिक दुआ :31-कमर आलम, अररिया हज इस्लाम का पांचवां व अंतिम स्तंभ है, इसका महत्व व प्रभाव सबसे अधिक है. हर मुस्लिम के जीवन में एक बार हज फर्ज हर व्यक्ति जो मक्का यात्रा की शक्ति रखता हो व जिसके पास इतना धन हो कि इस यात्रा का खर्च पूरा कर सके उन्हें अपने जीवन में एक बार जरूर हज करना चाहिये. यह बातें अदारा नूरुल कुरान जीरो माइल रोड अररिया के सरपरस्त व नाजिम मौलाना गालिब कासमी ने कही. उन्होंने इस्लाम के पांचवें व अहम रूक्न हज के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि नमाज पढ़ने, जकात देने, रोजा रखने में इंसान को न पत्नी, संतान को छोड़ना पड़ता है व न ही घर गृहस्थी, कुटुंब-परिवार न उद्योग व्यवसाय, न शासन और ना ही अधिकार न नगर व देश को छोड़ना पड़ता है. लेकिन हज के लिये इन सब को त्याग देना पड़ता है. अल्लाह से प्यार की वह कितनी भावना होती है जो इंसान की समस्त प्रिय वस्तु को छोड़ देने के लिये तैयार हो जाती है. मौलाना गुफरान ने बताया कि जकात व रोजे का प्रभाव व्यक्ति, समाज पर पड़ता है, लेकिन हज का प्रभाव सारे संसार पर पड़ता है. हज के दौरान दुनिया के कोने-कोने में बसने वाले, मुसलमान इस्लाम के केंद्र बिंदु मक्का व मदीना में एकत्रित होकर एक दूसरे से परिचित होते हैं, सामूहिक रूप से सब एक हीं लिबास धारण कर एक साथ पुकारते हैं, उपस्थित हूं.. मेरे अल्लाह उपस्थित हूं..तेरा कोई सानी नहीं..मैं उपस्थित हूं.. निसंदेह सब प्रशंसा तेरे लिए हैं व सब नैमतें तेरे ही हैं व तेरा कोई साझी नहीं है. मौलाना गालिब कासमी ने बताया कि साल में एक बार हज होता है, यह इस्लाम का कितना अनुपम विधान है, ईश्वर भक्ति का, समस्त संसार को धर्म पूर्ण व भक्तिमय यज्ञ बना देने का. यदि समस्त मानव जाति ये भावना पैदा हो जाये तो ये धरती जन्नत बन जायेगा. अंत में उन्होंने कहा कि हर इंसान अपने बच्चे-बच्चियों को दीनी तालीम के साथ-साथ बेहतर तरबियत व आधुनिक व तकनीक शिक्षा भी दें जिससे हमारे बच्चे आगे चलकर बेहतर कामयाबी हासिल कर सकें.
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