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मेला परिसर की जमीन है अतिक्रमित

उदासीनता. वार्ड संख्या एक में लगने वाला काली पूजा मेला का अस्तित्व खतरे में कई वर्षों से नप व अनुमंडल प्रशासन की अनदेखी के कारण मेला की भव्यता तो कम हो गयी. मेला परिसर कचरे में तब्दील हो गया है. फारबिसगंज : नप के वार्ड संख्या एक में लगने वाला ऐतिहासिक काली पूजा मेला परिसर […]

उदासीनता. वार्ड संख्या एक में लगने वाला काली पूजा मेला का अस्तित्व खतरे में

कई वर्षों से नप व अनुमंडल प्रशासन की अनदेखी के कारण मेला की भव्यता तो कम हो गयी. मेला परिसर कचरे में तब्दील हो गया है.
फारबिसगंज : नप के वार्ड संख्या एक में लगने वाला ऐतिहासिक काली पूजा मेला परिसर अपना अस्तित्व खोता जा रहा है. एक तो अब पहले की तरह यहां व्यापक स्तर पर मेला का आयोजन नहीं हो पाता है, तो दूसरी तरफ मेला की जमीन पर गत कई वर्षों से अतिक्रमणकारियों को कब्जा लगातार बढ़ता जा रहा है. साथ ही नप प्रशासन द्वारा परिसर में फेंके जा रहे कूड़े कचरों के ढेर की वजह से मेला परिसर पूरी तरह कचरा डंपिंग जोन में तब्दील होने लगा है. मालूम हो कि प्रतिवर्ष दिसंबर माह में यहां मेला का आयोजन हुआ करता था.
45 दिनों तक चलने वाले इस मेला में बाहरी जिले ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल के लोग भी बड़ी संख्या में अपने जरूरत के सामान की खरीदारी के लिए यहां जुटते थे. गत कई वर्षों से नप व अनुमंडल प्रशासन की अनदेखी व उदासीन रवैया के कारण मेला की भव्यता तो कम होती गयी. साथ ही नप द्वारा मेला की जमीन का उपयोग कचरा डंपिंग जोन के रूप में किये जाने से मेला परिसर के अस्तित्व पर भी खतरा मंडराने लगा है.
अंग्रेजों के शासन काल में आरंभ हुआ था मेला का आयोजन :
शहर में काली पूजा मेला का आयोजन अंग्रेजों के शासन काल में आरंभ हुआ था. शहर के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि पहली बार अंग्रेजी हुकूमत में सन 1922 में मेला का आयोजन किया गया था. मेले के प्रसिद्धि इसमें बाहरी राज्यों से आने वाले व्यवसायियों को लेकर थी, जो मेला में पहुंच कर विभिन्न तरीके के खेल तमाशा, सर्कस, ड्रामा, थियेटर व अन्य तौर तरीकों से लोगों का मनोरंजन कर मुनाफा कमाते थे.
मेला में मुंबई के व्यवसायी द्वारा लगाये जाने वाले सौंदर्य प्रसाधनों की दुकानों को महिलाओं के बीच खासा लोकप्रियता हासिल थी. मेला में बिकवाली के लिए आने वाले आकर्षक खिलौने मेले को लेकर बच्चों में उत्साह का संचार करता था. उस वक्त मेला के आयोजन का जिम्मा अंचल प्रशासन के ऊपर था. प्रशासन की तत्परता के कारण मेला की प्रसिद्ध बाहरी राज्यों ही नहीं पड़ोसी देश नेपाल में भी इसका खासा क्रेज था.
नप प्रशासन 2010 से कर रहा है मेला का आयोजन : अंग्रेजी हुकूमत खत्म होने के बाद मेला के आयोजन का जिम्मा नप प्रशासन के पास आ गया. जानकारी के मुताबिक वर्ष 2010 से नप प्रशासन ने इसके आयोजन की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा ली. पहले तो संवेदकों द्वारा इसकी बंदोबस्ती कर मेला लगाया जाता था.
इससे नप प्रशासन को राजस्व के रूप में बड़ी रकम प्राप्त होती थी. इसके बाद धीरे-धीरे नप प्रशासन महज इसकी बंदोबस्ती का जिम्मा संवेदक के हाथों में सौंप कर मेला पहुंचे व्यवसायियों की सुरक्षा, उनकी सुविधाओं का ख्याल और मेला परिसर में जरूरी सुविधाओं के विस्तार पर मुंह मोड़ने लगा. इससे मेला की प्रसिद्धि प्रभावित होने लगी. साथ यहां की कुव्यवस्था के कारण लोगों की रूचि भी मेला के प्रति कम होते गयी. इससे मेला की एतेहासिकता व गौरव दोनों कम होने लगा.
मेला परिसर में कचरों का अंबार.
राजस्व में आने लगी कमी
मेला के आयोजन को लेकर प्रशासन की रुचि कम होने की वजह इससे प्राप्त होने वाले राजस्व में आयी कमी को बताया जाता है. शुरुआती दौर में मेला से सरकार को राजस्व के रूप में बड़ी राजस्व की प्राप्ति होती थी. बाद के समय में इसमें गिरावट आने लगी. जानकारी के मुताबिक वर्ष 2013- 14 में नप ने मेला की बंदोबस्ती पांच लाख 75 हजार रुपये में कराया था, लेकिन वर्ष 2014-15 में मेला में प्रशासन द्वारा किसी प्रकार के थियेटर नाज गाने के कार्यक्रम के आयोजन पर रोक लगाये जाने के बाद मेला की बंदोबस्ती में किसी संवेदक ने रुचि नहीं ली. इससे मजबूरी वश नप ने विभागीय स्तर पर मेला लगवाया. जानकारों की मानें तो उक्त वर्ष मेला का आयोजन तो हुआ, लेकिन इससे किसी तरह के राजस्व की प्राप्ति नप प्रशासन को नहीं हो सकी. वर्ष 2015-16 में भी नप ने विभागीय स्तर पर ऐतिहासिक काली पूजा मेला लगा कर इसके गौरवपूर्ण इतिहास को बरकरार रखने की कोशिश जरूर की. इस बार मेला के आयोजन से नप प्रशासन को महज 47 हजार 866 रुपये प्राप्त हुए. हालांकि इस वर्ष 2016-17 में भी नप प्रशासन ऐतिहासिक काली पूजा मेला को लगवाने के प्रति तत्पर दिख रहा है. मेला के आयोजन को लेकर नप के कार्यपालक पदाधिकारी सुमन कुमार ने अपने कार्यालय के ज्ञापांक 1204 दिनांक 29/11/16 के माध्यम से नप क्षेत्र के उक्त कली पूजा मेला की अस्थायी बंदोबस्ती खुली डाक के द्वारा 14/12/16 तक डाक की तिथि निर्धारित की है. न्यूनतम बंदोबस्ती की राशि काली पूजा मेला के पाल पट्टी के लिए पांच लाख 75 हजार व काली पूजा मवेशी हाट के लिए दो लाख 89 हजार 33 रुपये व काली पूजा मेला गुदरी पट्टी के लिए 21 हजार 84 रुपये तय किया है.
काली पूजा मेला लगाने के लिए अस्थाई बंदोबस्ती के डाक की तिथि निकाल दी गयी है. मेला परिसर के अतिक्रमण की समस्या से अनुमंडल प्रशासन को अवगत कराते हुए इसे मुक्त करने के लिए कारगर दिशा निर्देश की मांग की गयी है. मेला परिसर में कचरा फेंकने पर जल्द ही रोक लगाया जायेगा.
सुमन कुमार, कार्यपालक पदाधिकारी , नप

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