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Rohtas: पहले मां और फिर पिता की मौत के बाद नहीं मिला एक्सडिटेंडल क्लेम, भिख मांग रहे अनाथ भाई-बहन

Rohtas: रोहतास जिले के कोचस से एक दिल को झकझोर देने वाली खबर सामने आई है. यहां मां-बाप की मौत के बाद अनाथ हुए बच्चों के पास इस कड़कड़ाती ठंड में सिर छुपाने के लिए एक छत तक नहीं है. बच्चे भीख मांगकर किसी तरह अपनी जिंदगी जीने के लिए मजबूर है. वहीं, समाज के जिम्मेदार लोगों ने भी अपनी आंखे मूद ली है.

Rohtas, कोचस, रमेश कुमार पांडेय: वर्ष 2023 में मां की गंभीर बीमारी से मृत्यु हो गयी. इसके बाद पिता जीतेंद्र कुमार सिंह मेहनत-मजदूरी कर अपने दो बेटियों व एक बेटा को पाल रहे थे. बच्चे अभी मां की मौत के सदमें से उबरे भी नहीं थे कि 24 फरवरी 2025 को जीतेंद्र कुमार सिंह की एनएच-319 पर स्कोर्पियो के धक्के से मौत हो गयी. तीनों बच्चे अनाथ हो गये. माता-पिता की मौत के बाद बच्चों के ऊपर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा. तब कुछ लोगों ने सहनाभूति दिखायी. बच्चे अपनी एक डिसमिल जमीन पर तिरपाल लगा जीवन गुजारने लगे. उस सीओ ने दो डिसमिल जमीन देने की बात कही थी. वहीं, बीडीओ ने एक्सीडेंटल क्लेम देने का आश्वासन दिया था. समय बितता गया और घर में रखे रुपये-पैसे खर्च होते गये. सरकारी अनाज मिलता, पर उसे बिना लकड़ी-तेल के पकाया नहीं जा सकता. इसलिए कई रात बच्चों को भूखे भी रहना पड़ा. तब पेट के खातिर रुपये के लिए तीनों भाई-बहनों को सड़क पर उतरना पड़ गया. आलम यह कि अब ये अनाथ बच्चे दर-दर भटक कर किसी तरह पेट पाल रहे हैं.

क्लेम के लिए चक्कर लगा रहे बच्चे

बच्चे पिता के एक्सीडेंटल क्लेम के लिए बीडीओ कार्यालय जाते जरूर हैं, पर उनकी सुनने वाला कोई नहीं. सीओ विनीत व्यास ने कहा कि तीनों बच्चों के लिए भूमि अधिग्रहण का प्रस्ताव डीसीएलआर सासाराम के भेजा गया है. आदेश मिलते ही भूमि अधिग्रहीत करने की कार्रवाई शुरू की जायेगी. डीसीएलआर के यहां प्रस्ताव क्यों रूका है. यह किसी को पता नहीं. वहीं, बीडीओ चंद्रभूषण गुप्ता ने कहा कि उस समय परिजनों ने एक्सीडेंटल क्लेम के लिए कोई आवेदन नहीं दिया था, जिसके कारण अनुदान की राशि प्राप्त नहीं हो सकी है.

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हमनी के कुछ ना मिलल: पीड़िता 

बात यहीं से उठती है कि गांव शेख बहुआरा या कोचस में क्या कोई ऐसा सामाजसेवी या संगठन नहीं जो, इन बच्चों की ओर से एक्सीडेंटल क्लेम देता. जानकारी के अनुसार, एक्सीडेंटल क्लेम के तहत चार लाख रुपये तक देने का प्रावधान है. यदि यह राशि मिल जाती है, तो बच्चों को जीने का सहारा मिल जायेगा. इसके लिए प्रशासनिक अधिकारी को भी स्वयं पहल नहीं करनी चाहिए थी. क्योंकि, बच्चे तो नाबालिग हैं. बड़ी बेटी 14 वर्षीया खुशी कुमारी ने बताया कि बाबू जी की दुर्घटना में मौत के बाद सीओ और बीडीओ साहेब लोग कहले रही कि तोहनी के दू डिसमिल जमीन और पीएम आवास योजना के अलावा आउर सरकारी सुविधा मिली. लेकिन, हमनी के कुछ ना मिलल. बाबू जी के नाम से एक डिसमिल जमीन में हमनी के तिरपाल लगा के रहत बानी जा. वहीं, दूसरी बहन 12 वर्षीया सपना कुमारी ने कहा कि ओ समय त कुछ लोग हमनी के मदद कइलस. लेकिन, कोई केतना दिन मदद करी. छोट भाई 10 वर्ष के बा. मेहनत-मजदूरी भी हमनी के नइखे मिलत. सरकार से मदद मिलित. त, मड़ई लगागे रहती जा. हमनी पर भगवानों तरस नइखन खात.

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Prashant Tiwari
Prashant Tiwari
प्रशांत तिवारी डिजिटल माध्यम में पिछले 3 सालों से पत्रकारिता में एक्टिव हैं. करियर की शुरुआत पंजाब केसरी से करके राजस्थान पत्रिका होते हुए फिलहाल प्रभात खबर डिजिटल के बिहार टीम तक पहुंचे हैं, देश और राज्य की राजनीति में गहरी दिलचस्पी रखते हैं. साथ ही अभी पत्रकारिता की बारीकियों को सीखने में जुटे हुए हैं.

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