विजयादशमी के दिन पटना के गांधी मैदान में मची भगदड़ में तीन दर्जन से ज्यादा लोगों की मौत ने एक बार फिर महत्वपूर्ण व बड़े धार्मिक आयोजनों को लेकर बदइंतजामी व आधी-अधूरी तैयारी का सच उजागर कर दिया.
धार्मिक आयोजनों को लेकर अपार श्रद्धा वाले देश भारत में शायद ही कोई ऐसा साल बितता हो, जब ऐसे एक-दो बड़े हादसे नहीं होते हों. अफसोस कि पूर्व में देश के अलग-अलग राज्यों में हुए कई हादसों की जांच के लिए गठित जांच रिपोर्टों को भी सरकार ने ठंडे बस्ते में डाल दिया और उस पर विधानसभा के पटल पर या सार्वजनिक बहस होने की स्थिति उत्पन्न नहीं होने दी.
कई बार कुछ राज्यों में पूर्व की ऐसी जांच रिपोर्टें तब दबाव में सार्वजनिक हुईं जब राज्य में एक और हादसा हो गया. ऐसी दुर्घटनाओं का इतिहास यह भी बताता है कि राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किये गये जांच आयोग या समिति ने कई बार तो इस मामले में अफसरों व सरकार की कोई जिम्मेवारी भी तय नहीं की. तब, ऐसी घटनाओं के लिए जिम्मेवार कौन है? बहरहाल, हम यहां कुछ ऐसे ही बड़े हादसों के बारे में जानते हैं –
25 जनवरी 2005 को महाराष्ट्र के सतारा जिले के मंधार देवी मंदिर में हुए हादसे 291 लोग मर गये. यह हादसा वहां सीढि़यों पर नारियल फोड़ने से हुई. फिसलन के कारण मची भगदड़ के कारण हुआ था. पौष पूर्णिमा के अवसर पर वहां एक दिन का बड़ा आयोजन होता है, जिसमें लाखों की संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं.
तीन अगस्त 2008 में हिमाचल प्रदेश में जमीन धंसने की अफवाह के बाद मची भगदड़ में 146 लोग मारे गये थे. जबकि 150 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. उस दुर्घटना में गौरव कुमार सैनी नामक एक 13 साल के लड़के ने 50-60 लोगों की
मंदिर में लोगों को सीमित संख्या में प्रवेश देने की व्यवस्था की गयी है. मध्यप्रदेश के दतिया जिले के रतनगढ़ मंदिर में पिछले साल यानी 2013 में नवरात्रि के अवसर पर मची भगदड़ में 115 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 110 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. यह दुर्घटना भी अफवाह के कारण हुई थी.
दरअसल मंदिर जाने के लिए जिस पुल से गुजरना होता है, उसकी रेलिंग कुछ जगह से टूट गयी थी, जो किसी बड़े हादसे का तत्काल कारण नहीं बन सकती थी. लेकिन लोगों में अफवाह फैल गयी कि पुल ही पूरी तरह से टूट गया है. इसके बाद भगदड़ मच गयी और 115 लोगों को जान गंवानी पड़ी.
2006 में भी इस मंदिर में दर्शन करने आये 47 श्रद्धालु नदी के पानी में बह गये थे. श्रद्धालु दर्शन के लिए मंदिर जा रहे थे, तभी अचानक बिना पूर्व सूचना के मंदिर से लगे सिंध नदी में पानी छोड़ दिया गया था, जिसमें 47 श्रद्धालु बह गये थे. इसकी जांच के लिए बने जांच आयोग की रिपोर्ट सार्वजनिक तभी की गयी, जब फिर पिछले साल दुर्घटना हो गयी.
नवरात्रि के समय ही 30 सितंबर 2008 को जोधपुर के मेहरानगढ़ किले में स्थित चामुंडा देवी के मंदिर में दर्शन करने गये 224 श्रद्धालु भी दुर्घटना में मारे गये थे और 425 बुरी तरह घायल हो गये थे. नवरात्र के पहले ही दिन देवी के दर्शन के लिए 25 हजार की संख्या में मंदिर परिसर में जमा हो गये थे. आठ हजार श्रद्धालु तो यहां रात से ही जुटे हुए थे.
वहां गेट खुलने के बाद दर्शन आरंभ होने के बाद अचानक बिजली चली गयी और उसके बाद टेंट गिर गया, जिस कारण भगदड़ मच गयी. हालांकि उस समय एक अंगरेजी न्यूज चैनल को कुछ श्रद्धालुओं ने बातचीत में बताया था कि मंदिर परिसर में बम होने की अफवाहके कारण भयभीत लोगों में भगदड मची.
इस मामले में जांच रिपोर्ट 2011 को आ गयी थी. पर, यह पिछले साल जारी हुई. 18 फरवरी 1992 में तमिलनाडु के कुभकोणम में महामहम उत्सव में अन्नाद्रमुक नेता व तत्कालीन मुख्यमंत्री जे जयललिता के आने पर उन्हें देखने के लिए भगदड़ मच गयी, जिसमें 50 श्रद्धालुओं को जान गंवानी पडी, जबकि 74 बुरी तरह घायल हो गये.
10 फरवरी 20013 को इलाहाबाद कुंभ मेले के दौरान इलाहाबाद स्टेशन पर हुएहादसे में 36 लोगों की मौत हो गयी थी, जबकि 39 लोग बुरी तरह घायल हो गये थे. मरने वालों में अधिकतर महिलाएं व बच्चे थे. यह दुर्घटना भी रेलवे पुल की रेलिंग क्षतिग्रस्त होने के बाद उत्पन्न भय से मची भगदड़ के कारण हुई.
इसी तरह हाल के सालों में बिहार आ रहे छठपर्व के श्रद्धालु भी नयी दिल्ली स्टेशन पर अत्यधिक भीड़ व भगदड़ के कारण मारे गये हैं. ऐसे और भी वाकये हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे इन हादसों को रोका जाये और सरकार व प्रशासन कैसे उनको लेकर अधिक संवेदनशील हों.