पटना: बिहार के सरकारी स्कूलों के बच्चों को अधकचरा ज्ञान बांटा जा रहा है. यह ज्ञान राज्य शिक्षा शोध एवं प्रशिक्षण परिषद (एससीइआरटी) बांट रहा है.
दसवीं कक्षा में पढ़ाई जाने वाली हमारी अर्थव्यवस्था पुस्तक के भाग दो के छठे अध्याय के पेज नंबर 124 में वैश्विक गांव की जो परिभाषा दी गयी है, वह हास्यास्पद है. इसमें बताया गया कि आधुनिक सुवधाओं के साथ हर देश में ऐसे गांव बसाये जा रहे हैं. भारत में मुंबई में भी ऐसा एक गांव है. पुस्तक का पहला संस्करण वर्ष 2010-11 में आया था. अध्याय में हिज्जे की भी गलतियां बेशुमार हैं.
क्या होता है ग्लोबल विलेज
वैश्वीकरण के प्रसार और प्रभाव के कारण अब सभी देशों में एक ऐसे आवासीय स्थान का निर्माण किया जा रहा है, जहां आवास की सभी आधुनिकतम संसाधन उपलब्ध रहते हैं और उस आवासीय स्थान में विश्व के सभी देशों के व्यक्तियों को उनकी इच्छा से स्वतंत्र रूप में बसने की सुविधा होती है. ऐसा आवासीय स्थान जहां विभिन्न देशों, विभिन्न विचारों और विभिन्न धार्मिक मान्यताओं के सभी लोगों को रहने की व्यवस्था की जाती है उसे ही हम वैश्वीक गांव कहते हैं. भारत ग्लोबल विलेज या वैश्विक गांव का मतलब विश्व के लोगों का एक दूसरे से जुड़ना है. यह जुड़ाव यातायात या संचार के माध्यम से हो सकता है. इसका अर्थ यह नहीं है कि पूरा विश्व एक ही समुदाय हो जायेगा, बल्कि विभिन्न माध्यमों से आपस में संपर्क स्थापित हो जाने के बाद ऐसा लगता है कि पूरा विश्व एक परिवार या गांव में बदल गया है. सबसे पहले मार्शल मैकलुहान ने ग्लोबल विलेज की परिकल्पना की थी. उन्होंने इसकी कल्पना इलेक्ट्रॉनिक तकनीक के माध्यम से लोगों के आपस में जुड़ने से की थी. भूमंडल के संदर्भ में स्पेस (स्थान) और टाइम (समय) दोनों लोप हो गया है. आज इंटरनेट, फेसबुक और ट्विटर की वजह से पूरा विश्व एक तरह से ग्लोबल विलेज (वैश्विक गांव) बन गया है. सीवान के किसी गांव का आदमी सैन फ्रांसिस्को में बैठे किसी व्यक्ति को फेसबुक के माध्यम से संपर्क कर अपनी बात बता सकता है, अपने विचारों को साझा कर सकता है और उसके बारे में भी जान सकता है. इसके लिए दोनों व्यक्तियों को एक दूसरे के पास जाने की जरूरत नहीं है. एक तरह से यही ग्लोबल विलेज (वैश्विक गांव) है.
ये पढ़ाया जा..
में भी मुंबई से कुछ दूर एक प्रमुख औद्योगिक समूह के द्वारा वैश्वीक गांव का निर्माण किया गया है. यद्यपि वैश्वीक गांव की यह कल्पना अब तक पूर्ण नहीं हो सकी है. (इसमें वाक्य गठन, भाषा और हिज्जे की गंभीर अशुद्धियां हैं. ‘वैश्वीक’ भी गलत छपा हुआ है.)
देखता हूं कैसे हुआ
शिक्षा मंत्री वृशिण पटेल से सीधी बात
दसवीं के अर्थशास्त्र की किताब में वैश्विक गांव के बारे में गलत जानकारी दी जा रही है.
इसे मैं दिखवा लेता हूं.
वैश्विक गांव के बारे में हास्यास्पद बातें कही गयी हैं.
मैंने आपकी बात को संज्ञान में लिया. इसे देखता हूं कि यह कैसे हुआ.