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जब प्राइज मनी के लिए BCCI प्रेसीडेंट को पिला दी शैंपेन, टीम इंडिया ने किया गजब का खेल, फिर भी नहीं बढ़े पैसे

Indian Cricket Team: 1983 में भारतीय टीम ने वेस्टइंडीज को हराकर पहला विश्व कप जीता. तब बीसीसीआई की कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण पहले सिर्फ 25,000 रुपये इनाम देने की घोषणा की गई थी. हालांकि बाद में प्रयासों से यह बढ़कर 1-1 लाख रुपये हुआ, लेकिन भारतीय टीम को इसके लिए बड़े प्रयास करने पड़े थे.

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Indian Cricket Team: 1983 में भारतीय क्रिकेट टीम ने इतिहास रचते हुए वेस्टइंडीज को हराकर पहली बार विश्व कप जीता था. लॉर्ड्स मैदान पर यह जीत न केवल भारतीय क्रिकेट के लिए बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का क्षण था. हालांकि, उस समय बीसीसीआई की आर्थिक स्थिति कमजोर थी और विजेता टीम को मिलने वाली इनामी राशि सीमित थी. सुनील गावस्कर ने इस बारे में अपने लेख में दिलचस्प कहानी साझा की, जिसमें बताया कि कैसे टीम को 1-1 लाख रुपये का इनाम मिला, जो पहले 25000 रुपये ही थे. लेकिन इसके लिए उन्हें टीम के साथ बड़े पापड़ बेलने पड़े थे. 

सुनील गावस्कर (Sunil Gavaskar) ने स्पोर्ट्स स्टार में लिखे अपने कॉलम में बताया कि लॉर्ड्स में जीत के बाद उनका ड्रेसिंग रूम मछली बाजार जैसा बन गया था, जहां हिलने-डुलने की भी जगह नहीं थी. मोहिंदर अमरनाथ द्वारा आखिरी विकेट लिए जाने के बाद खिलाड़ी खुशी से चिल्लाते हुए दौड़ते रहे, जिससे ड्रेसिंग रूम पूरी तरह भर गया. जिन्होंने उस मैच का वीडियो देखा, उन्होंने यह देखा कि वेस्टइंडीज़ का आखिरी विकेट गिरते ही ड्रेसिंग रूम की बालकनी में भारी भीड़ उमड़ आई थी. अंदर का माहौल इससे भी ज्यादा व्यस्त हो गया था, क्योंकि वहां मौजूद अधिकतर भारतीय, जिनमें से कई को खिलाड़ियों ने पहले कभी नहीं देखा था, तालियां बजाते रहे और उनकी पीठ थपथपाते रहे. Indian Cricket Team used Champagne to raise Prize Money.

सुनील गावस्कर ने इसी लेख में अपनी 1983 की विश्वकप विजेता टीम को मिले पुरस्कार राशि के बारे में भी बात रखी. उन्होंने कहा कि 1983 में विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम को उनके प्रयासों के लिए 1-1 लाख रुपये मिले थे. इसके पीछे एक दिलचस्प कहानी है, जिसके कई संस्करण हैं, लेकिन यह उनकी कहानी है. गावस्कर ने बताया, 1983 विश्व कप जीत के समय बीसीसीआई के अध्यक्ष (BCCI President) एनकेपी साल्वे थे, जो केंद्र सरकार के मंत्री भी थे. लॉर्ड्स में जीत का जश्न मनाने के दौरान ड्रेसिंग रूम में सिर्फ एक बोतल शैंपेन थी. 

कपिल देव ने साल्वे साहब के गिलास में शैंपेन डालते हुए टीम के लिए पुरस्कार की घोषणा करने का अनुरोध किया. बीसीसीआई अधिकारियों से विचार-विमर्श के बाद, साल्वे ने प्रत्येक खिलाड़ी को 25,000 रुपये देने की घोषणा की, जो उस समय मिलने वाली राशि से दस गुना ज्यादा थी. हालांकि, खिलाड़ियों को उम्मीद थी कि यह राशि और बढ़ेगी. लेकिन वह नहीं बढ़ी. फिर इसके लिए हमने एक प्लान बनाया. 

गावस्कर ने आगे बताया कि साल्वे साहब को और शैंपेन पिलाने की योजना बनाई, जो उस समय पर्याप्त मात्रा में नहीं थी. ड्रेसिंग रूम में मौजूद किसी ने कुछ और शैंपेन मंगवाई. लेकिन वे कम पड़ गईं. बाद में पता चला कि वेस्टइंडीज की जीत की उम्मीद में उनके ड्रेसिंग रूम में शैंपेन के दो डिब्बे रखे थे. कपिल देव और मदन लाल ने क्लाइव लॉयड से एक डिब्बा मांगा, जिसे उन्होंने खुशी खुशी दे दिया. फिर भी साल्वे साहब ने घोषित राशि से अधिक देने से मना कर दिया, क्योंकि बीसीसीआई के पास अधिक धन नहीं था. 

इसके बाद राज सिंह डूंगरपुर ने लता मंगेशकर जी से एक संगीत कार्यक्रम आयोजित करने का अनुरोध किया, जिससे 15 लाख रुपये से ज्यादा की राशि एकत्र हुई. इससे हर खिलाड़ी को 1-1 लाख रुपये मिले. हालांकि बीसीसीआई ने फिर खिलाड़ियों के साथ खेल कर दिया. क्योंकि बाकी बचे पैसे बीसीसीआई ने अपने पास रख लिए. हालांकि इससे खिलाड़ियों को कोई आपत्ति नहीं थी, क्योंकि वे बोर्ड की आर्थिक स्थिति से परिचित थे. 

हालांकि अब बीसीसीआई दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है. हाल ही उसने अपनी टीम को टी20 विश्वकप जीतने के बाद 125 करोड़ रुपये और चैंपियंस ट्रॉफी जीतने के बाद 58 करोड़ रुपये का पुरस्कार दिया था. इतना ही नहीं बीसीसीआई ने अपनी टी20 विश्वकप विजेता टीम को हीरे की अंगूठी भी गिफ्ट की थी, जिसमें उनका नाम भी उत्कीर्ण किया गया था. बीसीसीआई ने अपने उद्भव काल से लेकर आज तक की बेहद सफल यात्रा तय की है और इसमें अगर सबसे बड़ा योगदान माना जाए तो वह वही 1983 का विश्वकप माना जाएगा.  

1983 का क्रिकेट विश्व कप भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक ऐतिहासिक क्षण था. इंग्लैंड में आयोजित फाइनल में भारत ने वेस्टइंडीज को 43 रनों से हराकर पहली बार विश्व विजेता बनने का गौरव हासिल किया. भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 183 रनों का लक्ष्य दिया, जिसमें कृष्णमाचारी श्रीकांत ने सर्वाधिक 38 रन बनाए, जबकि संदीप पाटिल ने 27 और मोहिंदर अमरनाथ ने 26 रन का योगदान दिया. भारतीय गेंदबाजों ने शानदार प्रदर्शन किया, जिसमें मदन लाल और मोहिंदर अमरनाथ ने 3-3 विकेट लिए, बलविंदर संधू ने 2 विकेट, जबकि कपिल देव और रोजर बिन्नी ने 1-1 विकेट हासिल किए. पूरी वेस्टइंडीज टीम 52 ओवरों में 140 रन पर ऑलआउट हो गई, जिसमें विवियन रिचर्ड्स ने 33 और जेफ डुजॉन ने 25 रन बनाए. इस ऐतिहासिक जीत के साथ ही भारतीय क्रिकेट का नया युग शुरू हुआ.

इस टूर्नामेंट में भारतीय टीम का प्रदर्शन शानदार रहा, खासकर गेंदबाजों ने बेहतरीन खेल दिखाया. यह टूर्नामेंट 60 ओवरों का था, जिसमें कुल 8 टीमों ने भाग लिया और 27 मैच खेले गए. रोजर बिन्नी ने पूरे टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा 18 विकेट लिए, जबकि इंग्लैंड के डेविड गॉवर ने 384 रन बनाकर सर्वाधिक रन बनाने का रिकॉर्ड अपने नाम किया. फाइनल में मोहिंदर अमरनाथ को उनके ऑलराउंड प्रदर्शन के लिए ‘मैन ऑफ द मैच’ चुना गया. इस जीत के बाद भारत में क्रिकेट की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी और देशभर में इसे एक जुनून की तरह अपनाया जाने लगा. 1983 की यह ऐतिहासिक जीत भारतीय क्रिकेट के लिए मील का पत्थर साबित हुई, जिसने आगे चलकर भारत को क्रिकेट का सबसे शक्तिशाली देश बना दिया.

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