Heavy and Light Roller in Cricket : क्रिकेट एक ऐसा खेल है, जो खुले मैदान और खुले आसमान के नीचे खेला जाता है. बल्लेबाज और गेंदबाज के बीच प्रतिद्वंद्विता का ही नतीजे पर ही सारा खेल टिका रहता है, लेकिन यह खेल केवल इन दो खिलाड़ियों के व्यक्तिगत प्रदर्शन पर ही निर्भर नहीं करता. गेंदबाज की चालबाजी और बल्लेबाज के दुस्साहस और करामात पूरे मैदान के बीचों-बीच मौजूद महज 22 गज की एक पट्टी पर तय होता है. यही पिच असली रणभूमि होती है, जहां हर गेंद फेंकी जाती है और हर रन बनाया जाता है. हाल ही में भारत-इंग्लैंड के बीच हुए ओवल में खेले गए पांचवें टेस्ट में यह पिच और उसके क्यूरेटर काफी चर्चा में रहे. मैदान की रणभूमि कहना शायद पिच के लिए सबसे उपयुक्त शब्द होगा और रणभूमि पर जिस रथ का प्रयोग होता है उसका नाम है रोलर.
घास की मात्रा और मिट्टी की बनावट जैसे कारकों के अलावा, पिच के खेलने लायक होने या न होने का एक बड़ा कारण वह रोलर होता है जिसका उस पर इस्तेमाल किया जाता है. खिलाड़ियों की भले ही पिच पर एंट्री बैन हो, लेकिन यह रोलर आराम से इस रणभूमि पर दौड़ता है. टेस्ट मैचों से पहले प्री-मैच कवरेज में अक्सर विशाल रोलर्स दिखते हैं, लेकिन यह प्रक्रिया कितनी अहम होती है, इसको कैसे तैयार किया जाता है, रोलर्स कितने प्रकार के होते हैं, इनका प्रयोग किस तरह होता है, यह जानना भी जरूरी है. इन सारे सवालों पर एक नजर डालते हैं. रोलर दो तरह के होते हैं- भारी और हल्के. आइये जानते हैं इस महाबली के बारे में…
हल्के रोलर क्या होते हैं?
हल्का रोलर आमतौर पर 500 से 1000 किलोग्राम के बीच होता है, पिच की सतह में मामूली सुधार करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह पिच पर बनी हल्की दरारों को समतल करता है और सतह की असमानता को थोड़ा कम करता है, लेकिन मिट्टी की गहराई में कोई प्रभाव नहीं डालता. सीधे शब्दों में कहें तो यह विकेट की सतह को चिकना करता है, लेकिन उसकी मूल प्रकृति में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाता. हल्के रोलर का इस्तेमाल तब किया जाता है, जब पिच नरम हो. नरम पिचों पर गेंद गिरने से डेंट (गड्ढे) बन जाते हैं, जो दिन चढ़ने के साथ धूप में सख्त हो जाते हैं. इससे बल्लेबाजों को असमान और कई बार अनियंत्रित उछाल का सामना करना पड़ता है.

हल्के रोलर से क्या फायदा होता है?
बल्लेबाजी के नजरिए से, हल्का रोलर थोड़ा लाभ देता है क्योंकि इससे गेंद का उछाल थोड़ा और अनुमानित हो जाता है. हालांकि, यह पिच की गति या उछाल में कोई बड़ा बदलाव नहीं लाता और गेंदबाजों को इससे हालात में ज्यादा फर्क महसूस नहीं होता. यानी यह बाउंस को थोड़ा स्थिर कर सकता है, पर गति या टर्न में कोई खास बदलाव नहीं लाता. टीमें अक्सर तब हल्के रोलर का चुनाव करती हैं जब वे पिच की प्राकृतिक घिसावट को ज्यादा प्रभावित नहीं करना चाहतीं. खासतौर पर जब सामने वाली टीम ने अभी तक टूटती पिच पर बल्लेबाजी नहीं की हो, तो हल्के रोलर को प्राथमिकता दी जाती है.
हेवी रोलर से किसे होता है फायदा?
भारी रोलर का वजन आमतौर पर 1500 से 2500 किलोग्राम के बीच होता है. यह अधिक दबाव बनाता है और पिच को गहराई तक दबाता है. जब बल्लेबाजी करने वाली टीम असमान उछाल को कम करना या सीम मूवमेंट को कुछ समय के लिए बेअसर करना चाहती है, तो अक्सर भारी रोलर को चुना जाता है. यह पिच पर मौजूद ढीले कणों और दरारों को दबाकर उसे कुछ समय के लिए समतल कर देता है, जिससे पिच की बिगड़ती स्थिति से मिलने वाला गेंदबाजों का फायदा कुछ देर के लिए कम हो जाता है. कई लोगों का मानना है कि भारी रोलर से सूखी पिच पर भारी रोलर चलाने से दरारें बढ़ जाती हैं, लेकिन अधिकांश विशेषज्ञों ने इसे मिथक करार दिया है.

अगर भारी रोलर का इस्तेमाल होता है, तो मिट्टी सख्त हो जाती है और पिच पत्थर जैसी कठोर हो जाती है. इससे दरारें भर जाती हैं और स्पिन गेंदबाजों को फायदा नहीं मिल पाता, जबकि तेज गेंदबाजों को नियमित उछाल और गति के कारण मदद मिलती है. हालांकि यह बल्लेबाजों के लिए भी लाभदायक हो सकता है, खासकर अगर वे तेज गेंदबाजी खेलने में माहिर हों, क्योंकि गेंद बल्ले पर तेज और सही तरीके से आती है. हालांकि, भारी रोलर का असर समय के साथ धीरे-धीरे खत्म हो जाता है. भारी रोलर पिच की दरारों को अस्थायी रूप से समतल कर देता है और कुछ समय के लिए उछाल कम हो जाती है. हालांकि इसका फायदा बल्लेबाजों को दिन की शुरुआत में मिलता है, लेकिन जैसे-जैसे खेल आगे बढ़ता है, यह असर कम होता जाता है.
रोलर्स का इतिहास
रोलर मुख्य रूप से दो प्रकार के होते हैं, भारी और हल्के. रोलर की प्रासंगिकता और उपयोगिता को लेकर लंबे समय से बहस होती रही है, लेकिन यह एक स्थापित तथ्य है कि क्रिकेट में यह उपकरण समय के साथ काफी बदल चुका है. 1930 के दशक में भारी रोलर काफी आम थे, जिन्हें मैदानकर्मियों को मिलकर आगे-पीछे खींचकर चलाना पड़ता था. उल्लेखनीय है कि अगस्त 1938 में इंग्लैंड ने ऑस्ट्रेलिया को एक पारी और 579 रन से हराया था, जिसमें उन्होंने 903/7 का विशाल स्कोर खड़ा किया था. उस ऐतिहासिक टेस्ट की एक प्रसिद्ध तस्वीर में द ओवल के ग्राउंड्समैन बॉसर मार्टिन अपने भारी रोलर के साथ दिखाई देते हैं, जिसने, द गार्जियन में क्रिकेट लेखक माइक सेल्वी के अनुसार, पिच को कंक्रीट जैसी ठोस बना दिया था. हालांकि अब तकनीक ने मैन्युअल रोलर्स की जगह मोटरचालित रोलर्स को ले दी है.
VINTAGE CRICKET – The Oval 1938. Surrey groundsman 'Bosser' Martin with his 4-ton pitch roller 'Bosser's Pet'. He wanted England to score 1000 on his wicket but they declared at 903-7. pic.twitter.com/WVTOXM8pYn
— Stephen Bignell (@BDOC48) January 28, 2023
मैच में रोलर चुनने का अधिकार किसके पास होता है?
यह सवाल अक्सर उठता है कि मैच के दौरान रोलर का चुनाव कौन करता है और कब किया जाता है? किसी भी टेस्ट मैच के पहले दिन को छोड़कर, बल्लेबाजी करने वाली टीम का कप्तान यह तय करता है कि कौन सा रोलर इस्तेमाल होगा. आईसीसी के नियम कानून 10(a) के अनुसार, “मैच के दौरान, पिच को बल्लेबाजी पक्ष के कप्तान के अनुरोध पर रोल किया जा सकता है, वो भी प्रत्येक पारी की शुरुआत से पहले (पहली पारी को छोड़कर) और हर दिन के खेल की शुरुआत से पहले, अधिकतम 7 मिनट के लिए.”
इसके अतिरिक्त, नियम 10(c) के मुताबिक, “अगर एक से अधिक रोलर उपलब्ध हैं, तो बल्लेबाजी करने वाली टीम का कप्तान यह तय करेगा कि कौन सा रोलर इस्तेमाल किया जाए.” यानी बल्लेबाजी कर रही टीम को हर दिन की शुरुआत में यह तय करने का अधिकार होता है कि रोलर हल्का होगा या भारी. यह रोलर पहली गेंद फेंके जाने से 10 मिनट पहले और अधिकतम सात मिनट तक इस्तेमाल किया जा सकता है.

रोलर का इस्तेमाल कप्तान कैसे करते हैं?
अब सवाल उठता है कि बल्लेबाजी टीम का कप्तान किस आधार पर निर्णय ले? इसके लिए दोनों टीमों की संरचना (बल्लेबाज और गेंदबाजों का प्रकार) को ध्यान में रखना पड़ता है. जैसे ही एक पारी समाप्त होती है और गेंदबाजी करने वाली टीम मैदान से बाहर जाती है, ग्राउंड्समैन कप्तान से पूछता है कि कौन सा रोलर चाहिए. कप्तान हाथ को ऊँचा करके (फ्लैट हथेली ऊपर) भारी रोलर का और नीचे करके हल्के रोलर का संकेत देता है.
स्पष्ट है कि क्रिकेट की शुरुआत से ही रोलर्स इस खेल का एक अहम हिस्सा रहे हैं. भारत के इंग्लैंड दौरे पर टेस्ट क्रिकेट ने जैसा रोमांच पैदा किया है, उससे इस जेंटलमैंस गेम के लंबे फॉर्मेट को जैसे नया जीवन मिल गया हो. रोलर के विवेकपूर्ण उपयोग को खिलाड़ी, क्रिकेट बोर्ड और ग्राउंड्समैन के अलावा विशेषज्ञ तो समझते ही हैं, आम क्रिकेट प्रेमी भी अब इससे जरूर वाकिफ हो गए होंगे. आखिरकार, क्रिकेट पिच के ये रोलर्स ही भारत के सबसे लोकप्रिय खेल की असली नींव हैं.
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