-अनुज कुमार सिन्हा-
वर्ल्ड चैंपियन भारतीय टीम ने मंगलवार को इंग्लैंड के खिलाफ जैसा खेल दिखाया, उसने भारतीयों को निराश कर दिया है. दो मैचों में दूसरी हार. इंग्लैंड के खिलाफ तो पूरी टीम सिर्फ 153 रन पर सिमट गयी. 40 ओवर भी नहीं खेल पायी. बल्लेबाजी खत्म. सारे तोप फेल. जब मौका आया गेंदबाजी का, तो यही सोच कर मैदान में उतरे कि बगैर समय बर्बाद किये जल्द से जल्द हार कर लौट आयें. 27.3 ओवर में ही हार गये. 100 ओवर का मैच 67 ओवर में खत्म. नौ विकेट से हार. अगर टीम इंडिया नहीं सुधरी तो 25 दिनों बाद वर्ल्ड कप में वही होगा जो 2007 के वर्ल्ड कप में हुआ था.
तीन-चार दिन पहले हुए दक्षिण अफ्रीका-वेस्टइंडीज के बीच हुए वनडे मैच को याद कीजिए. दक्षिण अफ्रीका के तीन-तीन खिलाड़ियों (पहले तीन) का शतक.डिविलियर्स ने 31 गेंदों पर शतक जमाया था. ऑस्ट्रेलिया की टीम तो खेल ही रही है. वर्ल्ड कप में इन टीमों से मुकाबला होना है और हमारा (टीम इंडिया का) प्रदर्शन सुधरने का नाम ही नहीं ले रहा. दो माह पहले श्रीलंका के खिलाफ कटक में यही टीम थी जिसमें दोनों ओपनर रहाणे (111) और धवन (113) ने शतक जमाया था. रैना भी शतक की ओर (52 रन) जा रहे थे. रोहित शर्मा की 264 रन की पारी भी याद कीजिए.
यानी प्रतिभा है, क्षमता है रन बनाने की, लेकिन नहीं बनायेंगे. इसका कोई इलाज नहीं है. इस मैच में पहले घटिया बल्लेबाजी. वर्ल्ड कप सामने है और यह तय ही नहीं है कि ओपनिंग कौन करेगा. लगता है कि कप्तान ड्रेसिंग रूम में पूछते हैं-कौन पहले उतरेगा, जिसे उतरना है, पैड पहनकर उतर जाओ. नंबर तीन पर प्रयोग होने लगा. कभी कोहली तो कभी रायडू. जिसे वर्ल्ड कप में इस नंबर पर उतारना है, उसे भेजो. धवन का नहीं चलना एक अलग परेशानी है. रैना का आत्मविश्वास लौट नहीं रहा. धौनी बड़ी पारी खेल नहीं पा रहे. एक मैच में रोहित चल गये, इसलिए इज्जत बचाने लायक स्कोर बन पाया था. जिस टीम के सात खिलाड़ी अंकों में नहीं पहुंच पाये तो कैसे बनेगा बेहतर स्कोर. बल्लेबाजों का घटिया प्रदर्शन, लापरवाह बल्लेबाजी से टीम इंडिया का मनोबल गिरते जा रहा है. गेंदबाजी को खत्म है ही. अगर भारत वर्ल्ड कप में दावेदारी करता भी है तो सिर्फ बल्लेबाजी के कारण. और अगर यही बल्लेबाज 153 रन ही बना सके तो प्रतिद्वंद्वी टीम कोई भी हो, जीतेगी ही.
जिस विकेट पर इंग्लैंड के गेंदबाजों ने बढ़िया गेंदबाजी की, उसी विकेट पर कोई भी भारतीय गेंदबाज प्रभाव नहीं छोड़ पाया. लगा कि मैदान पर उतरने के पहले ही गेंदबाज जान चुके थे कि इंग्लैंड के खिलाड़ियों को 153 के अंदर नहीं आउट कर पायेंगे. इसलिए बेहतर है कि हथियार डाल दो. धौनी को अलग कप्तान माना जाता है जो मुर्दो में भी जान डाल देते हैं. आज धौनी का भी वही हाल था. हर कोई हड़बड़ी में था कि मैच जल्द खत्म हो. गेंदबाजी में लय नहीं. कैसी गेंदबाजी करनी है, यह तय नहीं. कोई बोलनेवाला नहीं. वर्ल्ड कप का पहला मैच पाकिस्तान से है. उसमें तो और भी दबाव रहेगा. दबाव कैसे झेल पायेंगे ये खिलाड़ी. तीन माह पहले ऑस्ट्रेलिया भेजा गया था कि वहां के मौसम के अनुसार स्वयं को ढाल लेंगे. जब तीन माह में नहीं ढाल सके तो क्या इन खिलाड़ियों को वहां तीन साल रखा जाये.
इस हार के बाद टीम इंडिया को सुधर जाना चाहिए. इस भुलावे में नहीं रहना चाहिए कि हम चैंपियन हैं, इसलिए सेमीफाइनल-फाइनल तो खेलेंगे ही. इसमें दुनिया की बेहतरीन टीमों से मुकाबला होता है. कोई किसी से कम नहीं होता. हर टीम तैयारी करती है. कर भी रही है. दिख भी रही है लेकिन हमारी तैयारी नजर नहीं आ रही है. यही चिंता की बात है. रोहित शर्मा-कोहली में मैच जिताने की क्षमता है लेकिन टीम इंडिया में कोई भी गेंदबाज नहीं है, जो सामनेवाली टीम को परेशान कर दे. ऑस्ट्रेलिया-न्यूजीलैंड के विकेट तेज होते हैं.
वहां गेंद उछाल लेती है. अगर भारतीय खिलाड़ी तेज और उठती गेंद को नहीं खेल पायेंगे तो बंटाधार तय है. कमी दिख गयी है. अब इसके इलाज की जरूरत है. असली परीक्षा तो अब होगी. रातोरात आप चमत्कारिक गेंदबाज पैदा नहीं कर सकते लेकिन जो हैं, उनका बेहतर इस्तेमाल तो कर सकते हैं. गेंदबाज अगर पूरी ईमानदारी-लगन से लग जाये, अनुशासन के तहत गेंदबाजी करें, मैदान पर पसीना बहाये और जीतने के जी-जान से खेले तो यही टीम चमत्कार दिखा सकती है.

