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धर्मांतरण का आरोप झेलने वाली जर्मनी की आंद्रिया, कुर्ग में बच्चों को सिखायेंगी हॉकी का ककहरा

नयी दिल्ली : लोगों ने धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगाये , स्थानीय साझेदारों ने धोखा दिया और नौकरशाही की तमाम दिक्कतें भी झेली लेकिन जर्मनी से आई आंद्रिया थुमशर्न टूटी नहीं और राजस्थान से दर बदर होने के बाद अब कर्नाटक के कुर्ग में बच्चों को हाकी का ककहरा सिखायेगी. छह साल पहले जर्मन […]

नयी दिल्ली : लोगों ने धर्म परिवर्तन कराने के आरोप लगाये , स्थानीय साझेदारों ने धोखा दिया और नौकरशाही की तमाम दिक्कतें भी झेली लेकिन जर्मनी से आई आंद्रिया थुमशर्न टूटी नहीं और राजस्थान से दर बदर होने के बाद अब कर्नाटक के कुर्ग में बच्चों को हाकी का ककहरा सिखायेगी. छह साल पहले जर्मन पर्यटकों के साथ भारत आई जर्मनी की पूर्व प्रीमियर लीग हाकी खिलाडी आंद्रिया ने 2010 में राजस्थान के दौसा के गढ हिम्मत सिंह गांव में हाकी विलेज इंडिया शुरू किया.

मकसद था बच्चों को हाकी सिखाना. चार साल बाद स्थानीय साझेदारों द्वारा वित्तीय गडबडयिां किये जाने के बाद हाकी विलेज जटवाडा में खोला गया. इन गांवों में करीब 100 बच्चों को दो स्कूलों में दाखिले के साथ हाकी का प्रशिक्षण दिया गया और जर्मनी की आंद्रिया बन गयी बच्चों की ‘बुआ सा ‘. इस साल हालांकि स्थानीय साझेदारों ने फिर धोखा देकर उससे काफी पैसा ऐंठा और उसे राजस्थान में अपना सपना छोड़कर जाने के लिए मजबूर कर दिया. आंद्रिया अब कुर्ग में है और अगले महीने वहां नया हाकी विलेज खोलने की तैयारी में जुटी है.

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उसने भाषा से कहा , ‘ ‘ हम कुर्ग में सितंबर की शुरुआत में जर्मनी से आये दो वालिंटियरों की मदद से नया हाकी विलेज खोलेंगे.राजस्थान में कुछ लोगों के स्वार्थ के कारण एक सुंदर सपना टूट गया लेकिन उम्मीद है कि यहां हम हाकी को कुछ दे सकेंगे. ‘ ‘ आंद्रिया ने कहा , ‘ ‘ मैंने अपनी जिंदगी के छह साल एक सपने को दिये जो टूट गया लेकिन मैं खिलाडी हूं और हार नहीं मानूंगी. अपनी प्रतिभा, शिक्षा और अनुभव के दम पर मैं दुनिया में कहीं भी बेहतर जिंदगी जीत सकती हूं लेकिन मेरा सपना भारत के ग्रामीण बच्चों को हाकी सिखाना है.

एक पूर्व ओलंपियन ने मुझे कुर्ग में अकादमी खोलने की सलाह दी क्योंकि हाकी वहां काफी लोकप्रिय है और माहौल भी सकारात्मक है. मेरे लिये वहां काम करना आसान था और भाषा की दिक्कत भी नहीं थी. ‘ ‘ उसने कहा , ‘ ‘ यहां लोगों को खेल की अहमियत पता है और यहां से एस्ट्रो टर्फ भी 25 किलोमीटर ही दूर है लिहाजा अच्छी प्रतिस्पर्धायें आयोजित हो सकती है. मैंने कुछ स्कूलों का भी दौरा किया और वे हाकी अकादमी को लेकर काफी उत्साहित हैं. ‘ ‘

आंद्रिया ने कहा कि राजस्थान के अनुभव के बाद उसके जेहन में जर्मनी लौट जाने का ख्याल भी आया. उसने कहा , ‘ ‘ ईमानदारी से कहूं तो छह साल में पहली बार मुझे यह ख्याल आया. लेकिन फिर जर्मनी में भी तो मुझे शून्य से शुरुआत करनी पड़ती और मेरे सपने का क्या. यही वजह है कि मैने राजस्थान छोड़ने पर मजबूर होने के बाद भी दो ट्रक में अपना सामान लादकर 2300 किलोमीटर का दुर्गम सफर तय करके कुर्ग में नया बसेरा बनाया. अब मुझे उस दिन का इंतजार है जब यहां मेरा हाकी विलेज खड़ा होगा और बच्चे हाथ में हाकी लेकर दौड़ते नजर आयेंगे. राजस्थान के बच्चों ने मुझे ‘बुआ सा ‘ का दर्जा दिया जो मैं कभी भूल नहीं पाऊंगी. उम्मीद है कि उनके लिए देखा सपना यहां पूरा होगा. ‘ ‘

Prabhat Khabar Digital Desk
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