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जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के ये उपदेश सिखाते हैं जीवन जीने का तरीका, पढ़ें ये अनमोल वचन

आचार्य विद्यासागर महाराज हमेशा ही लोगों में मानवता, धर्म, प्रेम के उपदेश देते रहे, लेकिन कुछ उपदेश उनके हमेशा लोगों के बीच एक अलग ही महत्व बनाए हुए हैं.

Jain Muni Acharya Vidyasagar: जैन मुनि आचार्य विद्यासागर जी महाराज के ढेरों उपदेश हैं, जो मानव जीवन जीने का सही तरीका सिखाता है. आचार्य विद्यासागर महाराज हमेशा ही लोगों में मानवता, धर्म, प्रेम के उपदेश देते रहे, लेकिन कुछ उपदेश उनके हमेशा लोगों के बीच एक अलग ही महत्व बनाए हुए हैं. उनमें से एक उनके उपदेश था जिसमें वह कहते थे- किसी से मत कइयो, जो होना है वही होगा, जितना हुआ अच्छा हुआ, कर्म के अनुसार हुआ यह भी ऐसा ही होगा, इसलिए किसी के साथ बैर, किसी के साथ ऋण आदि मत रखो और जो अपना प्रवास है उसको पूर्ण करो, इन्हीं उपदेशों में से हम आपको कुछ ऐसे मुख्य उपदेश के बारे में बताएंगे जो हमें जीवन जीने का तरीका और सही सलीका सिखाते हैं…

जीव दया ही परम धर्म है
जीव दया पालणी,रूंख लीलो नहीं घावे यानि मानव को इस संसार के प्रत्येक जीव पर दया करनी चाहिए और हरे वृक्ष नहीं काटने चाहिए, यही सच्चा मानव धर्म है. पर सेवा में जो सुख मिलता है वो कहीं ओर नहीं, नर में ही नारायण का वास होता है. अगर व्यक्ति किसी जरूरतमंद, गरीब या असहाय की सेवा या उसकी मदद करता है, तो वह ईश्वर की सेवा सामान होती है.

अच्छे लोग दूसरों के लिए जीते हैं, जबकि दुष्ट लोग दूसरों पर जीते हैं
जो लोग अच्छे होते हैं, वे दूसरों के लिए जीते हैं, दूसरों की खुशियों में उन्हें आनंद आता है. दूसरों की खुशी में अपनी खुशी मानते हैं. अच्छा आदमी किसी भी परिस्थिति में अपनी अच्छाई नही छोड़ता. जबकि जो लोग दुष्ट होते हैं, वे सिर्फ और सिर्फ अपने लिए जीते हैं. दूसरों का शोषण करते हैं, दूसरों पर निर्भर होते हैं. दुष्ट लोगों को दूसरों को दुख में देखकर बहुत खुशी होती है.

नम्रता से देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं
अगर मानव नम्रता रखे तो देवता भी मनुष्य के वश में हो जाते हैं. हमेशा नम्रता रखनी चाहिए. क्योंकि नम्रता से काम बिगड़ते नहीं है, बल्कि बिगड़ने वाले काम भी आसानी से बन जाते हैं. क्योंकि अभिमान की अपेक्षा नम्रता से अधिक लाभ होता है. नम्रता, प्रेमपूर्ण व्यवहार तथा सहनशीलता से हर कोई वश में हो जाते है.

जो नमता है वो परमात्मा को जमता है
जीवन में नम्रता का होना बहुत जरूरी है. नम्रता के बिना जीवन बेकार है, जिस मनुष्य में नम्रता होती है, उसे परमात्मा बहुत पसंद करते हैं. नम्रता वाला व्यक्ति ईश्वर का प्यारा होता है. नम्रता व्यक्ति की पहचान होती है, जो नम्रता से बड़े-बड़े काम बन जाते हैं.

क्रोध मूर्खता से शुरू होता है और पश्चताप पर खत्म होता है
क्रोध आना स्वाभाविक है, लेकिन क्रोध हमेशा मूर्खता से शुरु होता है और पश्चाताप पर खत्म होता है. हालांकि क्रोध कभी भी बिना कारण के नहीं होता है, लेकिन हमेशा ही यह कारण सार्थक होता है. गुस्सा से शुरू होने वाली हर एक बात, लज्‍जा पर खत्म होती है.

श्रद्धा के बिना पूजा-पाठ व्यर्थ
श्रद्धा और भावना के बिना पूजा-पाठ करना व्यर्थ है, जब तक श्रद्धा मनुष्य के अंदर नहीं है, तो उसका पूजा-पाठ करना व्यर्थ है. क्योंकि जबरन की पूजा करना या पाठ करना लाभकारी नहीं होता.

शुभ-अशुभ कर्मों का फल जरूर मिलता है
कर्म का सिद्धांत बहुत कठोर है, जहां अच्छे कर्म व्यक्ति के जीवन को प्रगति की दिशा में बढ़ाते हैं और सफलता हासिल करवा देते हैं, तो वहीं बुरे कर्म व्यक्ति को बर्बादी की ओर ले जाते हैं. धर्मग्रंथों के अनुसार, मनुष्य को किए हुए शुभ या अशुभ कर्मों का फल जरूर भोगना पड़ता है. सभी को अपने कर्मों का फल मिलना तो तय है.

Radheshyam Kushwaha
Radheshyam Kushwaha
पत्रकारिता की क्षेत्र में 12 साल का अनुभव है. इस सफर की शुरुआत राज एक्सप्रेस न्यूज पेपर भोपाल से की. यहां से आगे बढ़ते हुए समय जगत, राजस्थान पत्रिका, हिंदुस्तान न्यूज पेपर के बाद वर्तमान में प्रभात खबर के डिजिटल विभाग में बिहार डेस्क पर कार्यरत है. लगातार कुछ अलग और बेहतर करने के साथ हर दिन कुछ न कुछ सीखने की कोशिश करते है. धर्म, राजनीति, अपराध और पॉजिटिव खबरों को पढ़ते लिखते रहते है.

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