Shivling Prasad: हिंदू धर्म में पूजा-पाठ और धार्मिक नियमों का विशेष महत्व है. प्रत्येक देवी-देवता की आराधना से जुड़े कुछ निश्चित नियम और परंपराएं होती हैं, जिनका पालन करना आवश्यक माना गया है. शिव भक्तों के लिए भी ऐसे कई नियम बताए गए हैं. इन्हीं में से एक नियम यह है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया प्रसाद खाना वर्जित माना गया है. लेकिन आखिर क्यों?
शिवलिंग का प्रसाद क्यों नहीं खाया जाता?
शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, धतूरा, भस्म, भांग, दूध आदि अर्पित किए जाते हैं. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यह सभी वस्तुएं शिव की तृप्ति और तप की ऊर्जा के लिए चढ़ाई जाती हैं. यह अर्पण “नैवेद्य” नहीं बल्कि “अभिषेक” का हिस्सा होता है, और इसे पूजन के बाद ग्रहण करना वर्जित माना गया है.
तांत्रिक और ऊर्जात्मक दृष्टिकोण
शिवलिंग पर चढ़ाए गए पदार्थों में बहुत गहन आध्यात्मिक ऊर्जा समाहित होती है. यह ऊर्जा हर किसी के शरीर और मन के लिए उपयुक्त नहीं होती. ऐसी मान्यता है कि शिवलिंग से निकलने वाली ऊर्जा अत्यंत तेज होती है, जो यदि गलत तरीके से ग्रहण की जाए, तो व्यक्ति के स्वास्थ्य और मानसिक संतुलन पर विपरीत प्रभाव डाल सकती है.
शास्त्रों में उल्लेख
पद्म पुराण, स्कंद पुराण और शिव पुराण जैसे ग्रंथों में भी उल्लेख मिलता है कि शिवलिंग पर चढ़ाया गया जल और अन्य पदार्थ केवल अभिषेक के लिए होते हैं, न कि भोग के लिए. इन्हें “त्याज्य” कहा गया है, अर्थात इन्हें छोड़ देना चाहिए.
क्या करें?
- शिवलिंग पर चढ़ाए गए जल को तुलसी के पौधे में डालें.
- बेलपत्र, फूल आदि को वृक्ष के नीचे रखें या बहते जल में प्रवाहित करें.
- प्रसाद के लिए शिवजी के समक्ष अलग से फल, मिठाई या पंचामृत अर्पित करें, जिसे बाद में बांटा जा सकता है.
शिव की पूजा में श्रद्धा के साथ-साथ शास्त्रों के नियमों का पालन भी आवश्यक है. अतः यदि आप अब तक शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण करते रहे हैं, तो आज से सावधानी रखें और नियमों का पालन करें, जिससे आपकी भक्ति फलदायी हो सके.