Shani Pradosh Vrat Katha: हिंदू धर्म में प्रत्येक माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित होती है.इस शुभ अवसर पर श्रद्धालु भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से पूजा करते हैं और प्रदोष व्रत रखते हैं.इस व्रत के पालन से साधक पर शिव-पार्वती की विशेष कृपा होती है और जीवन में सुख, शांति एवं समृद्धि आती है.
विशेष रूप से शनि प्रदोष व्रत करने से शनि की कुदृष्टि से मुक्ति मिलती है.साथ ही करियर, व्यवसाय और जीवन की अन्य परेशानियों में सफलता प्राप्त होती है.हम यहां बताने जा रहे हैं शनि प्रदोष व्रत का शुभ मुहूर्त और कथा
आश्विन माह का अंतिम प्रदोष व्रत: तिथि और शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह की शुक्ल पक्ष त्रयोदशी तिथि इस वर्ष 04 अक्टूबर 2025 को शाम 05:09 बजे से शुरू होगी और 05 अक्टूबर 2025, दोपहर 03:03 बजे तक चलेगी.
प्रदोष व्रत का शुभ दिन: 04 अक्टूबर 2025
प्रदोष काल: सूर्यास्त के बाद
ये भी लिखें: शनि प्रदोष व्रत आज, दुख-दरिद्रता दूर करने और सफलता पाने का संयोग
इस समय भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करने का विशेष महत्व है.व्रत और पूजा से साधक को शिव-पार्वती की कृपा, सुख-समृद्धि और शनि दोष से मुक्ति मिलती है.
शनि प्रदोष व्रत कथा
एक समय की बात है.एक निर्धन ब्राह्मण दंपत्ति दरिद्रता से अत्यंत दुखी जीवन व्यतीत कर रहे थे.पत्नी अपने परिवार की दयनीय स्थिति से व्याकुल होकर शांडिल्य ऋषि के पास पहुँची और बोली—
“हे महामुने! मैं अत्यंत दुखी हूँ, कृपया दुख निवारण का उपाय बताइए.मेरे दोनों पुत्र आपकी शरण में हैं.ज्येष्ठ पुत्र धर्म राजकुमार है और कनिष्ठ पुत्र शुचिव्रत है.परंतु हम दरिद्र हैं, आप ही हमारा उद्धार करें.”
ऋषि ने उसकी प्रार्थना सुनकर कहा—
“तुम सब प्रदोष व्रत का पालन करो.यह व्रत भगवान शिव को अत्यंत प्रिय है और इसके प्रभाव से असंभव भी संभव हो जाता है.”
इसके बाद परिवार ने श्रद्धा और नियमपूर्वक प्रदोष व्रत का संकल्प लिया.
शिव कृपा से मिला धन
जब व्रत का दिन आया तो छोटा पुत्र शुचिव्रत स्नान के लिए तालाब गया.मार्ग में उसे स्वर्ण से भरा कलश मिला.वह उसे घर ले आया और माता को सौंप दिया.
माता ने प्रसन्न होकर कहा—
“पुत्र, यह धन हमें शिवजी की कृपा से प्राप्त हुआ है.इसे प्रसाद समझकर दोनों भाई आपस में बांट लो.”
तब ज्येष्ठ पुत्र धर्म बोला—
“मां! यह धन मेरे छोटे भाई का ही है.मैं इसे तभी स्वीकार करूंगा जब स्वयं भगवान शिव और माता पार्वती मुझे देंगे.”
इसके बाद वह भगवान शिव की आराधना में लग गया.
गंधर्व कन्या से मिलन
कुछ समय बाद दोनों भाई वन भ्रमण को निकले.वहां उन्होंने अनेक गंधर्व कन्याओं को क्रीड़ा करते देखा.शुचिव्रत वहीं ठहर गया, जबकि धर्म राजकुमार आगे बढ़ गया.
वहीं उसकी भेंट अति सुंदरी गंधर्व कन्या अंशुमति से हुई.वह राजकुमार को देख मोहित हो गई और बोली—
“मैं गंधर्वराज बिद्रविक की पुत्री हूं.विधाता ने हमारा संयोग मिलाया है.”
अंशुमति ने मोतियों का हार राजकुमार के गले में डाल दिया.राजकुमार ने स्वीकार करते हुए कहा—
“हे देवी! मैं निर्धन हूं.”
कन्या ने उत्तर दिया—
“धन की चिंता मत करो, मैं तुम्हारे साथ हूं.”
फिर वह अपने सखियों के संग चली गई.
शिव आज्ञा से हुआ विवाह
कुछ दिन बाद गंधर्वराज स्वयं कन्या के साथ वहां आए और धर्म राजकुमार से बोले—
“हे राजकुमार! जब मैं कैलाश गया था, तो शंकर भगवान ने मुझसे कहा कि धर्मगुप्त नामक राजपुत्र इस समय निर्धन और राज्यहीन है.वह मेरा परम भक्त है.अतः उसकी सहायता करो और अपनी कन्या का विवाह उससे कर दो.”
महादेव की आज्ञा मानकर गंधर्वराज ने अपनी कन्या अंशुमति का विवाह राजकुमार धर्म से कर दिया.साथ ही उसे धन-सम्पत्ति भी प्रदान की.
भगवान शिव की कृपा से धर्मगुप्त ने समय आने पर अपने शत्रुओं का दमन किया और राजगद्दी पर आसीन होकर राज्य का सुख भोगने लगा.
शिक्षा
यह कथा बताती है कि श्रद्धा और नियमपूर्वक प्रदोष व्रत करने से भगवान शिव भक्तों की सभी बाधाएं दूर कर देते हैं.निर्धनता दूर होती है, सुख-समृद्धि और वैभव की प्राप्ति होती है तथा असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं.

