Satuan 2025: आज पूरे उत्तर भारत, खासकर बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सतुआन का पर्व धूमधाम से मनाया जा रहा है. यह पर्व चैत्र नवरात्रि के समापन के अगले दिन, चैत्र शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को मनाया जाता है और इसे गर्मी के मौसम की शुरुआत के प्रतीक के रूप में भी देखा जाता है. सतुआन, जिसे सत्तू पर्व भी कहा जाता है, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पारंपरिक आस्था और संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है.
सतुआन की धार्मिक और सांस्कृतिक विशेषताएं
गर्मी की शुरुआत का संकेत
सतुआन पर्व यह दर्शाता है कि अब गर्मी का मौसम शुरू हो गया है. इस दिन से ही सत्तू, आम का पन्ना, बेल का शरबत, और ठंडे पेय पदार्थों का सेवन प्रारंभ किया जाता है ताकि शरीर को शीतलता मिल सके.
शुभ कार्यों की शुरुआत
सतुआन के दिन से मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, मुंडन, गृह प्रवेश आदि शुरू हो जाते हैं. इसे अत्यंत शुभ दिन माना जाता है क्योंकि चैत्र नवरात्रि की समाप्ति के बाद यह पहला शुभ दिन होता है.
पारंपरिक भोजन का आयोजन
इस दिन सत्तू (चने का आटा), कच्चा आम, गुड़, दही, चना, और नीम के पत्तों का सेवन विशेष रूप से किया जाता है. ये सभी चीजें शरीर को गर्मी से लड़ने में मदद करती हैं और सेहत के लिए फायदेमंद होती हैं.
पूजन और आस्था
महिलाएं इस दिन व्रत रखती हैं और अपने परिवार की सुख-शांति तथा समृद्धि की कामना करती हैं. सूर्यदेव और अन्य ग्राम देवताओं की पूजा की जाती है.गांवों में लोग तालाब या नदी में स्नान कर पवित्रता प्राप्त करते हैं.
सात्विक और ठंडी चीजों का सेवन
इस दिन लोग सत्तू (भुने चने का आटा), गुड़, कच्चा आम, जलजीरा, दही-चावल और बेल का शरबत खाते हैं. यह शरीर को ठंडक पहुंचाता है.
गंगा स्नान और दान का महत्व
श्रद्धालु इस दिन गंगा या नजदीकी नदी में स्नान कर दान-पुण्य करते हैं. सत्तू, गुड़, ककड़ी, खरबूजा, चना आदि का दान करना पुण्यकारी माना जाता है.
ग्रामीण संस्कृति और लोकगीतों का पर्व
गांवों में महिलाएं पारंपरिक गीत गाती हैं और सामूहिक भोज का आयोजन होता है. यह पर्व मेलजोल और सामाजिक समरसता का प्रतीक है.
धार्मिक दृष्टिकोण से महत्व
मान्यता है कि इस दिन सूर्य की पूजा करने से स्वास्थ्य अच्छा रहता है और जीवन में सुख-शांति बनी रहती है.