21.1 C
Ranchi

लेटेस्ट वीडियो

Rakshabandhan 2025: रक्षाबंधन है भाई-बहन के प्यार और सुरक्षा का त्योहार

Rakshabandhan 2025: जीवन में अनिश्चितताएं और संकट आम बात हैं. रक्षाबंधन हमें यह याद दिलाता है कि सुरक्षा और रक्षा केवल शारीरिक नहीं, बल्कि भावनात्मक और आध्यात्मिक भी है. भाई-बहन का यह त्योहार प्रेम और सुरक्षा के बंधन को मजबूत करता है, जो जीवन में आश्रय और शक्ति देता है.

Rakshabandhan 2025: यह जीवन हर कदम पर असुरक्षित है. पल भर में कोई विपत्ति आ सकती है, कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. इसलिए रक्षा और सुरक्षा सभी के लिए आवश्यक है. हम हमेशा न केवल अपने और अपने प्रियजनों की, बल्कि समस्त जीवित और निर्जीव तत्वों की रक्षा में लगे रहते हैं. यदि अपनी बात करें तो हम दैहिक कष्टों से बचने के लिए संयम बरतते हैं और रोग लगने पर समय रहते उपचार भी करते हैं, लेकिन भौतिक और दैवीय आपदाओं पर हमारा नियंत्रण नहीं है. बिजली गिरने से मौत हो जाए, बाढ़ में डूब जाएं, गर्मी से परेशान हो जाएं या ठंड से ठिठुर जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता. बचना हमारी किस्मत, ईश्वर की कृपा, वरदान, आशीर्वाद और शुभकामनाओं का फल होता है.

रक्षाबंधन आज, जानें राखी बांधने का शुभ समय

रक्षाबंधन का त्योहार हर वर्ष साव बार पूर्णिमा तिथि 8 अगस्त को दोपहर 2 बजकर 12 मिनट से आरंभ होकर 9 अगस्त को सुबह 1 बजकर 24 मिनट तक जारी रहेगी.

बंधन: रोगों और अशुभताओं का नाश करने वाला पर्व

देवताओं की आराधना से प्राप्त कृपा-वरदान, बड़े-बुजुर्गों के आशीर्वाद, साथ ही मित्रों और छोटे-छोटे लोगों से मिलने वाली शुभकामनाएं भी अत्यंत प्रभावशाली होती हैं. रक्षाबंधन का उद्देश्य भी यही है – ‘सर्व-रोगोपशमनं सर्वाशुभ-विनाशनम्’, अर्थात सभी रोगों का नाश और सभी अशुभताओं का दूर होना. वेद में कहा गया है – ‘पुं पुमांसं परिपातु विश्वतः’, जिसका अर्थ है कि मनुष्य मनुष्यों की हर प्रकार से रक्षा करें. यहां ‘पुरुष’ का मतलब केवल पुरुष लिंग से नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति का दूसरे अनेक व्यक्तियों की रक्षा में तत्पर रहना है.

 रक्षाबंधन पर अपने भाई-बहन के लिए जानिए राशिफल के संकेत  

श्रावण पूर्णिमा: वेदप्राप्ति दिवस और इसका शुभ महत्व

असल में मुख्य बात है रक्षण की. इसी से परिवार का निर्माण हुआ, समाज बना, सृष्टि चली और आज भी हम इसी विश्वास पर कायम हैं. पौराणिक मान्यता के अनुसार श्रावण शुक्ल चतुर्दशी को मधु-कैटभ नामक असुर उत्पन्न हुए जिन्होंने ब्रह्माजी से वेद छीनकर पाताल में ले गए. श्रीहरि ने उन्हें ढूंढ़कर वेद वापस लिया और श्रावण पूर्णिमा को ब्रह्माजी को सौंपा. चूंकि चतुर्दशी को वेदों का हरण हुआ था, इसलिए वह दिन अपवित्र माना गया और पूर्णिमा को वेदप्राप्ति दिवस के रूप में शुभ माना गया. इसलिए चतुर्दशी को उपाकर्म और रक्षाबंधन करना उचित नहीं माना जाता, जबकि पूर्णिमा को शुभ कर्म के लिए माना गया.

रक्षाबंधन: परस्पर रक्षा का एक सांस्कृतिक स्वरूप

अतः इस दिन उपाकर्म नहीं होता और असुरों को दूर रखने का संकल्प लिया जाता है। परस्पर रक्षा की भावना विभिन्न रूपों में प्रकट होती है – व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, शासकीय, नैतिक और धार्मिक। रक्षाबंधन भी इनका एक रूप है. बहन अपनी भाई की कलाई में राखी बांधकर उसकी दीर्घायु, स्वास्थ्य और सुख-शांति की कामना करती है, तो भाई भी बहन की सुरक्षा का वचन देता है. यह परस्पर रक्षा का भाव दोनों का आत्मबल बढ़ाता है. इससे चाहे बहन दूर कहीं विवाहित हो, वह दिन दोनों को बचपन की यादों में डुबो देता है. राखी की वह पतली-सी डोरी प्रेम के बंधन को मजबूत करती है और दोनों के सुख-दुःख में साझेदारी का भाव बढ़ाती है. यह हमारे समाज की एक बड़ी देन है.

रक्षाबंधन: बाहरी उत्सव में आंतरिक रक्षा की भावना

रक्षाधर्म को भगवान विष्णु से जोड़ा गया है, जिन्हें पालनकर्ता माना जाता है। पराई पीड़ा को समझकर मदद करना भी वैष्णवी भावना है. भले ही रक्षाबंधन का उत्सव साल में एक दिन मनाया जाता है, पर यह बाहरी उत्सव आंतरिक रक्षा की भावना को मजबूत करता है. यही कारण है कि यह पर्व अपनी प्राचीनता और पौराणिक महत्व के साथ आज भी जीवंत है.

भाई-बहन के त्योहार के रूप में रक्षाबंधन

भाई-बहनों के त्योहार के रूप में स्थापित यह रक्षाबंधन धार्मिक, ज्योतिषीय और पौराणिक मार्गों से जुड़ा हुआ है. यदि ऐसा न होता तो यह दिन केवल एक सामान्य दिन होता. इसमें पुजारी वर्ग का भी विशेष योगदान है, जो यज्ञ-पूजा और आशीर्वाद के माध्यम से रक्षा कवच का संचार करते हैं. यद्यपि यह परंपरा कुछ हद तक क्षीण हुई है, लेकिन आज भी जीवित है.

ऋषि परंपरा और श्रावणी पूर्णिमा का महत्व

यह ऋषि परंपरा अत्यंत समृद्ध है. आपदाओं के समय ऋषि-मुनि और साधु-संत गावों के निकट व्रत करते थे, यज्ञ और अध्ययन के लिए श्रावणी पूर्णिमा को वेद भाग का निर्धारण करते थे तथा लोक-कल्याण के लिए रक्षा-पोटलिका बनाते थे. भविष्योत्तर पुराण में वर्णित है कि पुरोहित स्वच्छ कपड़ों में अक्षत, सरसों, स्वर्णखंड आदि रखकर रक्षा-पोटलिका तैयार करते थे, जो कलाई में बांधने योग्य होती थी. यह कार्य मुख्यतः राजपरिवार के लिए होता था, लेकिन जन-पुरोहित जन-जन तक इसे पहुंचाते थे. अभिमंत्रित पोटलियों की संख्या यजमानों के अनुसार होती थी.

जैसे पूजा में वैदिक और पौराणिक दोनों प्रकार के मंत्रों का प्रयोग होता है, वैसे ही रक्षाबंधन में भी दोनों तरह के मंत्र प्रचलित हैं.

वैदिक मंत्र है:

“यदा बध्नान् दाक्षायणा हिरण्यं शतानीकाय सुमनस्यमानाः।
तन्मऽ आबध्नामि शत-शारदायुष्मान् जरटष्टिर्ययासम्।”

पौराणिक मंत्र है:

“येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल।”

यह रक्षा संस्कार जाति-बंधनों से परे रहा है. पुरोहित सभी वर्गों को रक्षणीय मानकर रक्षा-कवच बांधते थे और लोग अपनी क्षमता अनुसार उन्हें दक्षिणा देते थे. शास्त्रों के अनुसार, इस दिन विधिवत किया गया रक्षा-विधान व्यक्ति को पूरे वर्ष कुप्रभावों से बचाता है.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

संबंधित ख़बरें

Trending News

जरूर पढ़ें

वायरल खबरें

ऐप पर पढें
होम आप का शहर
News Snap News Reel