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Premanand Ji Maharaj के अनुसार क्यों अहंकार बनता है दुखों का कारण?

Premanand Ji Maharaj Tips : यदि हम उनके बताए मार्ग – दासभाव, सेवा, सत्संग और नाम स्मरण – को अपनाएं, तो निश्चित ही जीवन में शांति, भक्ति और प्रभु कृपा का अवतरण होता है.

Premanand Ji Maharaj Tips : सनातन धर्म के महान संत और कृष्ण भक्ति के अद्वितीय प्रचारक स्वामी श्री प्रेमानंद जी महाराज ने जीवन के गूढ़ सत्य को सरल वाणी में उजागर किया है. उनका यह उपदेश कि “अहंकार से भरा इंसान बर्बादी की निशानी है” केवल शब्द नहीं, बल्कि गहन आध्यात्मिक चेतावनी है. अहंकार ही वह विकार है जो आत्मा को ईश्वर से दूर करता है, और विनाश की ओर ले जाता है. आइए जानें प्रेमानंद जी महाराज के ऐसे दिव्य उपाय जो मनुष्य को अहंकार से मुक्त कर प्रभु चरणों की ओर ले जाते हैं:-

– हर क्षण रखें “दास भाव” – मैं नहीं, तू ही है प्रभु

प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि अहंकार का मूल है “मैं”. जब मनुष्य “मैं” छोड़कर “तू ही करता है प्रभु” का भाव धारण करता है, तभी वह सच्चे भक्ति-पथ पर प्रवेश करता है. दासभाव से जीवन जीना ही विनम्रता की जड़ है.

– सत्संग और साधु सेवा – अहंकार का दर्प तोड़ने का अमोघ उपाय

सत्संग में बैठने से आत्मा को सत्य का ज्ञान होता है और झूठा अहंकार स्वयं टूटने लगता है. प्रेमानंद जी कहते हैं कि साधुजनों की सेवा करने से मनुष्य का हृदय निर्मल होता है और उसका झूठा गौरव मिटता है..

– भगवन्नाम-स्मरण – नाम जप से पिघलता है अहंकार

“राधे-राधे” और “श्रीकृष्ण” जैसे नामों का सच्चे मन से जप करने से मनुष्य का चित्त कोमल होता है और आत्मा में भक्ति का भाव जागृत होता है. नाम जप अहंकार रूपी कठोरता को गलाकर भक्त को विनम्र बनाता है.

– सेवा में रहे मन – सेवा से ही शुद्ध होता है आत्मभाव

प्रेमानंद जी महाराज सिखाते हैं कि जब व्यक्ति बिना अभिमान के सेवा करता है, तो उसका हृदय प्रभु के प्रेम से भरता है. सेवा करने वाला कभी “मैंने किया” नहीं कहता – यही सच्चा त्याग और भक्ति है.

– हर क्षण मन में रखें स्मरण – ‘यह सब प्रभु की कृपा है’

जो कुछ हमें प्राप्त है – रूप, ज्ञान, धन या प्रतिष्ठा – वह सब ईश्वर की कृपा है. जब यह भाव मन में दृढ़ होता है, तो अहंकार टिक नहीं सकता. प्रेमानंद जी बार-बार इस विनम्रता के अभ्यास पर बल देते हैं.

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प्रेमानंद जी महाराज का यह उपदेश हमें जीवन के सत्य से परिचित कराता है कि अहंकारी व्यक्ति आत्मविनाश की ओर अग्रसर होता है.यदि हम उनके बताए मार्ग – दासभाव, सेवा, सत्संग और नाम स्मरण – को अपनाएं, तो निश्चित ही जीवन में शांति, भक्ति और प्रभु कृपा का अवतरण होता है.

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