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Pausha Putrada Ekadashi 2021: कब है पुत्रदा एकादशी, जानिए तारीख, शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और इसका महत्व

Paush Putrada Ekadashi 2021: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. एकादशी तिथि एक पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद होती है. पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है. पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं, जो जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है और दूसरी एकादशी को श्रावण एकादशी कहते हैं, जो जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ती हैं. इस बार पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी को है.

Paush Putrada Ekadashi 2021: हिंदू धर्म में एकादशी का विशेष महत्व होता है. एकादशी तिथि एक पूर्णिमा के बाद और एक अमावस्या के बाद होती है. पुत्रदा एकादशी साल में दो बार आती है. पहली पुत्रदा एकादशी को पौष पुत्रदा एकादशी कहते हैं, जो जनवरी या दिसंबर माह में पड़ती है और दूसरी एकादशी को श्रावण एकादशी कहते हैं, जो जुलाई या अगस्त के महीने में पड़ती हैं. इस बार पुत्रदा एकादशी 24 जनवरी को है. मान्यता है कि इस एकादशी का व्रत करने पर संतान की प्राप्ति होती है. इस दिन व्रत रखने और भगवान विष्णु की आराधना करने से संतान प्राप्ति का योग बनता है. इस एकादशी को सामान्य तौर पर विवाहित जोड़ों द्वारा किया जाता है. हिंदू पंचांग के अनुसार, साल भर में कुल 24 एकादशी होती है. महीने की हर 11वीं तिथि को एकादशी होती है. अर्थात एक महीने में दो बार एकादशी होती है.

शुभ मुहूर्त

व्रत प्रारंभ 23 जनवरी दिन शनिवार की रात 8 बजकर 56 मिनट पर

व्रत समाप्ति 24 जनवरी दिन रविवार की रात 10 बजकर 57 मिनट पर

पारण का समय 25 जनवरी दिन सोमवार की सुबह 7 बजकर 13 से 9 बजकर 21 मिनट तक

पूजा विधि

सुबह उठकर स्नान करना चाहिए. अगर आप संतान प्राप्ति के लिए व्रत कर रहे हैं तो पति पत्नी दोनों को इसका व्रत करना चाहिए. स्नान के पश्चात पूरे विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा करें. आप चाहें तो भगवान विष्णु या कृष्ण के मंदिर जाकर वहां पूजा करें और प्रसाद चढ़ाएं. भगवान विष्णु की आरती करें. इस व्रत में रात्रि जागरण का विशेष महत्व है.

व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भद्रावती नगर के राजा सुकेतु मन और उनकी रानी हबिया के पास कोई लड़का नहीं था. वे दोनों हमेशा उदास रहते थे. वे श्राद्ध कर्मकांडों के बारे में सोचकर बहुत चिंतित थे. क्योंकि उनकी मृत्यु के बाद कौन उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध अनुष्ठान करेगा. हताशा में राजा अपने राज्य और सभी सुख- सुविधाओं को छोड़ घने जंगलों में चले गए. कष्टों का सामना करने और बहुत दिनों तक जंगल में भटकने के बाद पौष एकादशी के दिन वो मानसरोवर तट पर रहने वाले कुछ संतों के आश्रम में गए.

राजा के बारे में जानने के बाद ऋषियों ने उन्हें सुझाव दिया कि पौष एकादशी व्रत का पालन करने से पुत्र की प्राप्ति होती है. ऋषियों की सलाह का पालन करते हुए सुकेतु मन वापस साम्राज्य गए और अपनी रानी के साथ पौष एकादशी का व्रत रखा. इसके कुछ समय बाद ही रानी गर्भवती हो गईं और राजा- रानी को भगवान विष्णु के आशीर्वाद से पुत्र की प्राप्ति हुई.

Posted by: Radheshyam Kushwaha

Prabhat Khabar Digital Desk
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