Navratri 2025: विंध्य पर्वत पर विराजमान मां विंध्यवासिनी पूरे शरीर के साथ स्थापित हैं, जबकि अन्य शक्तिपीठों में माता सती के अंग गिरे थे. इसलिए यह धाम विशेष महत्व रखता है. मां अपने भक्तों को चार रूपों—महालक्ष्मी, महाकाली, महासरस्वती और मां तारा—में दर्शन देती हैं और श्रीयंत्र पर विराजमान होकर सभी इच्छाओं की पूर्ति करती हैं.
नवरात्र में उमड़ती है आस्था का सैलाब
नवरात्र के दिनों में विंध्याचल धाम का माहौल अत्यंत भक्तिभावपूर्ण हो जाता है. मंदिर के शिखर पर लगे ध्वज के दर्शन मात्र से ही भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होने की मान्यता है. दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालु यहां माता का आशीर्वाद पाकर अपने जीवन को सफल और सार्थक मानते हैं. हर तरफ भक्तों की उमड़ी भीड़, मंगलाचरण और आरती की ध्वनि इस स्थल को दिव्य ऊर्जा से भर देती है. मंदिर के शिखर पर लगाए गए ध्वज का दर्शन मात्र से ही ऐसा माना जाता है कि भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं.
कौन हैं मां विंध्यवासिनी
भागवत पुराण के अनुसार कंस के भय से वासुदेव ने नवजात श्रीकृष्ण को सुरक्षित रखने के लिए आधी रात में उन्हें गोकुल में नंद और यशोदा के घर पहुंचाया. उस समय श्रीकृष्ण के स्थान पर यशोदा के घर एक कन्या का जन्म हुआ, जो वास्तव में देवी योगमाया का स्वरूप थी. कंस जब इसे मारने की कोशिश करता है, तो यह कन्या आकाश में उड़कर अपने दिव्य रूप में प्रकट होती है और कंस को चेतावनी देती है कि उसका अंत किसी और स्थान पर होगा. यह माता 16 कलाओं से युक्त दिव्य शक्ति थीं और यही दिव्य स्वरूप बाद में मां विंध्यवासिनी के रूप में प्रतिष्ठित हुई.
देवता भी लगातें है उपस्थिति
कहा जाता है कि प्रतिदिन आरती के समय देवी-देवता भी दर्शन और आशीर्वाद लेने के लिए उपस्थित होते हैं. प्राचीन काल से यह स्थान ऋषि-मुनियों की तप करने का स्थल रहा है और यहां की महिमा का वर्णन स्वयं देवताओं ने किया है.
विंध्याचल जी के बिना अधूरी है शक्ति की साधना
शक्ति की साधना विंध्याचल जी के बिना अधूरी मानी जाती है. कहा जाता है कि मां विंध्यवासिनी के दर्शन और आशीर्वाद से ही साधक की भक्ति पूर्ण होती है और उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं। उनके बिना साधना में वह दिव्यता, ऊर्जा और संपूर्ण फल की प्राप्ति अधूरी रह जाती है. यही कारण है कि विंध्याचल धाम को शक्ति की आराधना का अनिवार्य केंद्र माना जाता है.
देवासुर संग्राम की कथा
धार्मिक मान्यता है कि देवासुर संग्राम के समय त्रिदेव—ब्रह्मा, विष्णु और महेश—ने माता विंध्यवासिनी की साधना की थी. उनकी कृपा से देवताओं ने असुरों पर विजय प्राप्त की और जगत के कल्याण का वरदान पाया. यही कारण है कि यह स्थान मणिद्वीप के नाम से भी प्रसिद्ध हुआ.
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