Lahri Mahasaya Birth Anniversary 2025: “बनत बनत बन जाए” — यह लाहिड़ी महाशय का वह सरल परंतु गहन संदेश है, जो साधकों को सदा प्रोत्साहित करता रहा कि वे वर्तमान क्षण में पूर्णतः जीएँ और हर कदम को ईश्वर में समर्पित करें. उनका जीवन यह प्रमाण है कि यदि निष्ठापूर्वक प्रयास किया जाए, तो लक्ष्य अपने आप प्राप्त हो जाता है.
हिमालय में हुई दिव्य भेंट
लाहिड़ी महाशय का जन्म 30 सितंबर, 1828 को बंगाल के घुरणी गाँव में हुआ. अपने 33वें वर्ष में, रानीखेत के समीप हिमालय की तलहटी में सरकारी लेखाकार के रूप में कार्य करते हुए, उनका सामना अमर महावतार बाबाजी से हुआ. ‘योगी कथामृत’ के अनुसार, इस पावन भेंट में बाबाजी ने उन्हें पवित्र क्रियायोग की दीक्षा दी और इसे पुनः संसार में लाने का दिव्य कार्य सौंपा.
क्रियायोग का पुनरुत्थान
बनारस लौटकर लाहिड़ी महाशय ने साधकों को क्रियायोग में दीक्षित करना आरंभ किया. इस प्राचीन विज्ञान का उद्देश्य प्राण-शक्ति को सक्रिय करना, शारीरिक क्षय को धीमा करना और आध्यात्मिक उन्नति को तीव्र करना है. योगानन्दजी के अनुसार, 1861 में इस विज्ञान का पुनरुत्थान मानव जाति के लिए “एक अत्यंत पवित्र क्षण” था.
सर्वजन के लिए खुला जीवन
परमहंस योगानन्दजी लिखते हैं कि आदर्श गृहस्थ का जीवन जीते हुए लाहिड़ी महाशय ने अपने स्वाभाविक तेज को छिपाया नहीं. भारत के हर कोने से भक्त उनके पास दिव्य ज्ञान प्राप्त करने के लिए आते. उनका जीवन इस चिर-प्राचीन प्रश्न का मौन उत्तर था: क्या संसार में रहते हुए ईश्वर-साक्षात्कार संभव है? उनके उदाहरण ने सिद्ध किया कि आंतरिक वैराग्य के साथ जीवन जीने पर यह न केवल संभव है, बल्कि सहज भी है.
अद्भुत दृष्टि और आंतरिक आनंद
लाहिड़ी महाशय की रहस्यमयी मुस्कान और आधी बंद आंखें आंतरिक परमानन्द का संकेत देती थीं. उनकी दृष्टि हृदय को भेदती, साधक को भीतर ईश्वर की उपस्थिति की ओर खींचती और मार्गदर्शन देती. उनका प्रमुख संदेश था: “ध्यान में ही सभी समस्याओं का समाधान ढूंढो. ईश्वर से प्रत्यक्ष संपर्क करो और अंतरात्मा के मार्गदर्शन से जीवन की हर समस्या का उत्तर पाओ.”
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शिष्य और आध्यात्मिक मिशन का विस्तार
लाहिड़ी महाशय के प्रमुख शिष्य स्वामी श्रीयुक्तेश्वरजी, जिन्हें “ज्ञानावतार” के नाम से जाना गया, ने उनके मिशन को दृढ़ता से आगे बढ़ाया. 1917 में उनके शिष्य परमहंस योगानन्दजी ने योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया (वाईएसएस) की स्थापना की और क्रियायोग के प्राचीन विज्ञान को दुनिया भर में फैलाया.
आधुनिक युग के लिए प्रेरणा
योगावतार लाहिड़ी महाशय का जीवन यह दर्शाता है कि दैनिक कर्तव्यों का निर्वाह करते हुए भी व्यक्ति ईश्वर-साक्षात्कार प्राप्त कर सकता है. उनके शब्द आज भी भक्तों के लिए दिव्य मार्गदर्शन हैं: “बनत, बनत, बन जाए.”
मुख्य बिंदु
- हिमालय में हुई भेंट ने आधुनिक युग की आध्यात्मिक दिशा बदल दी.
- लाहिड़ी महाशय ने दीर्घकाल से लुप्त पवित्र क्रियायोग को पुनर्जीवित किया.
- “बनत, बनत, बन जाए” — साधकों के लिए कालातीत संदेश.
- आदर्श गृहस्थ योगी का जीवन, जो ईश्वर-साक्षात्कार में डूबा हुआ था.
- उनकी दृष्टि की रहस्यमयी शक्ति — मार्गदर्शन, स्वास्थ्य लाभ और आंतरिक जागृति.
- योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया के माध्यम से उनके आशीर्वादों की निरंतर धारा.

