Kanwar Yatra 2025 : कांवड़ यात्रा एक अत्यंत पवित्र और श्रद्धा से भरी हुई यात्रा होती है, जो भगवान शिव को समर्पित होती है. हर साल सावन मास में लाखों शिवभक्त दूर-दूर से गंगाजल लाकर पैदल चलकर भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं. इसे सिर्फ एक यात्रा नहीं, बल्कि तप, भक्ति और संकल्प का प्रतीक माना जाता है. इस दौरान कांवड़िये कुछ विशेष नियमों और मर्यादाओं का पालन करते हैं, क्योंकि यह मार्ग ईश्वर से साक्षात्कार का माध्यम बनता है. कांवड़ यात्रा के समय कुछ गलतियां अनजाने में हो जाती हैं, जिनसे पुण्य की जगह पाप का भागी बनना पड़ सकता है. आइए जानें ऐसी मुख्य बातें, जो कांवड़ ले जाते समय नहीं करनी चाहिए:-
– कांवर को धरती पर रखना महापाप माना गया है
कांवड़ यात्रा में सबसे बड़ा नियम यह है कि कांवड़ को कभी भी भूमि पर नहीं रखना चाहिए. ऐसा करना भगवान शिव का अनादर माना जाता है. यदि किसी कारणवश विश्राम की आवश्यकता हो, तो कांवड़ को विशेष स्टैंड या सहारे पर रखें. इसे भूमि पर रखना पुण्य को भंग कर देता है.
– अपवित्रता की स्थिति में यात्रा न करें
यदि कोई व्यक्ति शारीरिक या मानसिक रूप से अपवित्र है (जैसे क्रोध, वासना, द्वेष या असत्य का पालन कर रहा हो), तो उसे कांवड़ यात्रा नहीं करनी चाहिए। इस यात्रा में प्रवेश से पहले संयम, ब्रह्मचर्य और सात्विक जीवन आवश्यक है. अपवित्र अवस्था में गंगाजल ले जाना अशुद्ध जल चढ़ाने के समान माना गया है.
– नशा, मांसाहार और अपवित्र भाषा का पूर्ण त्याग करें
कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार का नशा, मांसाहार या गाली-गलौज करना एक गंभीर धार्मिक अपराध है. यह भगवान शिव की भक्ति को कलंकित करता है और यात्रा को निष्फल बना देता है. कांवड़ यात्रा में मन, वाणी और कर्म – तीनों की पवित्रता अनिवार्य है.
– अहंकार और दिखावे से रहें दूर
यह यात्रा ईश्वर से जुड़ने का माध्यम है, ना कि प्रदर्शन या प्रसिद्धि का साधन. कई लोग सोशल मीडिया के लिए कांवड़ उठाते हैं, जो पूरी भक्ति भावना को दूषित करता है. प्रेम, श्रद्धा और नम्रता से की गई यात्रा ही भोलेनाथ को प्रिय होती है.
– दूसरों को कष्ट पहुंचाना धर्मविरुद्ध है
कांवड़ यात्रा करते हुए अगर कोई भक्त यातायात रोकता है, सड़क पर अव्यवस्था फैलाता है या दूसरों को अपमानित करता है, तो वह धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करता है. यात्रा में अनुशासन और सहिष्णुता अत्यावश्यक हैं.
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कांवड़ यात्रा केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आत्मशुद्धि और शिव से एकाकार होने की साधना है. इसमें शारीरिक कष्ट सहकर, नियमों का पालन करते हुए, भाव और श्रद्धा से यात्रा करना ही सच्चा पुण्य है. इन बातों का ध्यान रखकर हम भगवान शिव की कृपा के सच्चे पात्र बन सकते हैं.