Bhaum Pradosh Vrat 2025: हिंदू धर्म में प्रदोष व्रत का अत्यंत खास महत्व बताया गया है. यह व्रत भगवान शिव और माता पार्वती की विशेष कृपा प्राप्त करने के लिए रखा जाता है. हर महीने शुक्ल और कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है, लेकिन जब यह तिथि मंगलवार के दिन पड़ती है, तो यह और भी शक्तिशाली और कल्याणकारी माना जाता है. इस विशेष व्रत को भौम प्रदोष व्रत कहा जाता है.
इस बार यह व्रत 2 दिसंबर 2025, मंगलवार को रखा जाएगा. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भौम (मंगल) प्रदोष व्रत मंगल ग्रह से संबंधित दोषों को शांत करता है और कर्ज तथा संकटों से छुटकारा दिलाता है. इस व्रत में भगवान शिव के साथ मंगलदेव की पूजा भी की जाती है. इस व्रत से जुड़ी एक रोचक और प्रेरणादायक कथा भी है, जिसे ज्योतिषाचार्य डॉ. एन. के. बेरा बताते हैं.
भौम प्रदोष व्रत की प्रेरणादायक कथा
एक वृद्धा थी जो मंगलदेव को अपना इष्ट देव मानकर हर मंगलवार को व्रत रखती थी. उसका एक बेटा था, जो मंगलवार को पैदा हुआ था, इसलिए लोग उसे प्यार से मंगलिया कहते थे. वृद्धा की मंगलदेव में अटूट श्रद्धा थी. वह मंगलवार के दिन न घर लीपती थी, न ही पृथ्वी खोदती थी, ताकि व्रत की रीति न टूटे.
एक दिन मंगलदेव उसकी भक्ति की परीक्षा लेने के लिए एक साधु का रूप धरकर उसके घर पहुंचे. उन्होंने आवाज लगाई—
“माई, भोजन बनाना है, ज़रा चौका लीप दो.”
वृद्धा ने हाथ जोड़कर कहा—
“महाराज, आज मंगलवार का व्रत है, इसलिए मैं पृथ्वी नहीं लीप सकती. आप कहें तो मैं जल का छिड़काव कर दूं.”
साधु ने कहा,
“मैं तो गोबर से लीपे चौके पर ही भोजन बनाता हूं. सोच लो.”
वृद्धा ने विनम्रता से कहा,
“महाराज, पृथ्वी लीपने के अलावा जो भी सेवा कहेंगी, पूरी करूंगी.”
साधु ने तीन बार वचन लिया और फिर बोला,
“तो अपने बेटे को बुलाकर औंधा लिटा दो, मैं उसकी पीठ पर भोजन बनाऊंगा.”
यह सुनकर वृद्धा क्षणभर रुकी, पर फिर मन में मंगलदेव का स्मरण करते हुए बोली—
“जैसी प्रभु की इच्छा.”
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उसने बेटे को बुलाया और उसे साधु के कहे अनुसार औंधा लिटा दिया. साधु ने उसकी पीठ पर अंगीठी रखी और आग जलाई. वृद्धा दूर खड़ी प्रार्थना करती रही. साधु ने भोजन तैयार किया और फिर वृद्धा से कहा—
“अब अपने बेटे को बुलाओ, उसे प्रसाद देना है.”
वृद्धा ने आंसू भरी आंखों से कहा—
“महाराज, उसकी पीठ पर आपने आग जलाई, अब वह कैसे जीवित होगा? कृपा कर उसके विषय में मत बोलिए.”
साधु के आग्रह पर उसने धीमे से पुकारा—
“मंगलिया…”
और आश्चर्य! कुछ ही क्षण में मंगलिया स्वस्थ और हंसता हुआ सामने आ गया. वृद्धा की आंखों में आनंद के आंसू भर गए.
तभी साधु ने अपना वास्तविक स्वरूप प्रकट किया और बोले—
“माई, मैं मंगलदेव हूं. तुम्हारी अटूट भक्ति, दया और सत्यनिष्ठा से प्रसन्न होकर तुम्हें आशीर्वाद देता हूं—
तुम्हें और तुम्हारे परिवार को जीवन में कभी कष्ट नहीं छूएगा.”
भौम प्रदोष व्रत क्यों है विशेष?
- यह व्रत शिव कृपा और मंगलदेव की प्रसन्नता दोनों प्रदान करता है.
- कर्ज मुक्ति, आर्थिक समस्याओं और संकटों से राहत मिलती है.
- मंगल दोष वाले जातकों को विशेष लाभ होता है.
- स्वास्थ्य, साहस और आत्मविश्वास बढ़ता है.
- घर–परिवार में सौहार्द और समृद्धि आती है.


