Bhairav Ashtami 2025: पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कालभैरव का जन्म स्वयं भगवान शिव के क्रोध से हुआ था, जब उन्होंने ब्रह्मा जी के अहंकार का नाश करने के लिए यह भयंकर रूप धारण किया. इसलिए भैरव जी को “संहार के देवता” कहा जाता है, जो अधर्म और अन्याय का अंत करते हैं.
भैरव अष्टमी का पौराणिक महत्व
आदि-अनादि काल से भारतवर्ष में देवी-देवताओं की उपासना की परंपरा रही है. इन्हीं तिथियों में एक है मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष अष्टमी, जिसे भैरवाष्टमी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार भैरव भगवान शिव के ही उग्र और रक्षक रूप हैं. इसी दिन दोपहर के समय भैरवनाथ जी का जन्म हुआ था, जो शिवजी के प्रिय गण हैं.
व्रत से मिलती है सुरक्षा और सफलता
डॉ. राकेश कुमार सिन्हा ‘रवि’जी बताते हैं कि जो व्यक्ति भैरव अष्टमी व्रत को पूरे श्रद्धा भाव से करता है, उसके जीवन के सारे विघ्न, भय और संकट दूर हो जाते हैं. यह व्रत साहस, आत्मविश्वास और सफलता प्रदान करता है. इस दिन भैरव जी की आराधना से शनि, राहु और केतु के दोष भी शांत होते हैं.
देवी के रक्षक और काल के स्वामी
भैरव जी को देवी मां का पहरूआ यानी रक्षक कहा गया है. हर शक्ति पीठ में भैरव जी की उपस्थिति अनिवार्य है. ऐसा माना जाता है कि भैरव से काल भी भयभीत रहता है, इसलिए उन्हें कालभैरव कहा जाता है. वे समय, मृत्यु और भय पर नियंत्रण रखने वाले देवता हैं.
प्रसिद्ध भैरव मंदिर और पूजा परंपरा
काशी में भैरव जी के कई मंदिर हैं, जिनमें काल भैरव मंदिर सबसे प्रसिद्ध है. इसके अलावा उज्जैन, गया जी, कामाख्या, अयोध्या, ज्वाला जी, हरिद्वार, मथुरा, कांचीपुरम, जालंधर और वैष्णो देवी में भी भैरव जी के प्राचीन स्थल हैं. भैरव अष्टमी के दिन श्रद्धालु तेल, उड़द, काला तिल और दही का भोग लगाते हैं तथा भैरव चालीसा का पाठ करते हैं.
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