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Bhairav ashtami 2025: क्यों कहा गया भैरव जी को प्रलय नहीं बल्कि लय के देवता, जानिए महत्व

Bhairav ashtami 2025: 12 नवंबर को आने वाली भैरव अष्टमी को भगवान शिव के उग्र और रक्षक स्वरूप भैरव जी के प्रकट होने का दिन माना जाता है. इस दिन भक्त भैरव जी की उपासना कर भय, संकट और नकारात्मकता से मुक्ति की कामना करते हैं. आइए जानते हैं कि पंडित सलिल पांडेय जी के अनुसार भैरव जी को ‘प्रलय नहीं, बल्कि लय के देवता’ क्यों कहा गया है.

सलिल पांडेय, मिर्जापुर

Bhairav ashtami 2025: पंडित सलिल पांडेय जी के अनुसार, भैरव जी का स्वरूप भय का नहीं, बल्कि अनुशासन और संतुलन का प्रतीक है. वे उस शक्ति का प्रतिनिधित्व करते हैं जो अराजकता को नियंत्रित कर जीवन में ‘लय’ स्थापित करती है. शिव के उग्र रूप होने के बावजूद भैरव जी करुणा और संरक्षण के देवता हैं, जो भक्तों को संकट, भय और नकारात्मकता से मुक्ति दिलाते हैं.

कैसे हुआ भैरव जी का जन्म

शिव महापुराण के विद्येश्वर संहिता के आठवें अध्याय में वर्णन मिलता है कि जब ब्रह्मा जी के अहंकार और विष्णु जी के साथ विवाद से सृष्टि विनाश की ओर बढ़ी, तब महादेव के आज्ञाचक्र (भौहों के मध्य) से तेजस्वी रूप प्रकट हुआ. यही तेज भैरव कहलाया. भैरव जी ने ब्रह्मा के अहंकार का अंत कर सृष्टि को प्रलय से बचाया. इसीलिए पंडित जी बताते हैं कि भैरव जी संहार नहीं, बल्कि ‘लय’ और संतुलन के रक्षक हैं.

भैरव राग की साधना

कथा के अनुसार, ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए भैरव जी काशी पहुंचे और संगीत साधना में लीन हो गए. भैरव राग, भैरवी, मेघ और मालकोस जैसे राग इन्हीं से प्रेरित माने जाते हैं. भैरव राग में गायन से भगवान शिव प्रसन्न होते हैं, जबकि श्रीराग से देवी लक्ष्मी. संगीताचार्यों का मत है कि ये राग न केवल आध्यात्मिक शांति देते हैं, बल्कि तनाव, अनिद्रा और अवसाद जैसी बीमारियों में भी राहत प्रदान करते हैं.

काशी के रक्षक- भैरव कोतवाल

भैरव जी जब ब्रह्मा के कपाल के साथ काशी पहुंचे, तब महादेव ने उन्हें अपनी अविमुक्त नगरी का कोतवाल बना दिया. तभी से कालभैरव को काशी का रक्षक देवता माना जाता है. पंडित जी कहते हैं कि भैरव जी की उपासना से व्यक्ति अपने जीवन में लय, अनुशासन और सकारात्मक ऊर्जा बनाए रख सकता है.

64 भैरव और भैरवियां

शास्त्रों के अनुसार 64 भैरव और 64 भैरवियां हैं. जैसे- ताम्रभैरव ऊर्जा के, चंद्रचूड़ भैरव शीतलता के, और रुद्रभैरव अग्नितत्व (मेटाबॉलिज्म) के प्रतीक हैं. पंडित जी के अनुसार, इनकी साधना शरीर, मन और आत्मा को संतुलित करती है.

क्यों करें लय के देवता की उपासना

पंडित सलिल पांडेय कहते हैं कि जब जीवन का लय टूटता है तो बीमारियां, तनाव और नकारात्मकता घर कर लेती हैं. भैरव जी की आराधना से यह असंतुलन दूर होता है. इसलिए मार्गशीर्ष मास की कृष्ण अष्टमी, यानी भैरव अष्टमी के दिन भैरव जी की उपासना अवश्य करनी चाहिए ताकि जीवन में लय, दीर्घायु और सदाचार बना रहे.

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JayshreeAnand
JayshreeAnand
कहानियों को पढ़ने और लिखने की रुचि ने मुझे पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया. सीखने और समझने की इस यात्रा में मैं लगातार नए अनुभवों को अपनाते हुए खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं. वर्तमान मे मैं धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नजदीक से समझने और लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं.

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