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धर्म का सच्चा पालक

एक राजा थे शिबि. वे बहुत ही नेक और न्यायप्रिय राजा थे. देवराज इंद्र और अग्निदेव ने राजा शिबि की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. इंद्र एक बाज तथा अग्नि एक कबूतर का रूप बन कर उस स्थान पर पहुंच गये, जहां राजा शिबि यज्ञ कर रहे थे. शिबि यज्ञ की वेदी पर बैठे हुए […]

एक राजा थे शिबि. वे बहुत ही नेक और न्यायप्रिय राजा थे. देवराज इंद्र और अग्निदेव ने राजा शिबि की परीक्षा लेने का निर्णय लिया. इंद्र एक बाज तथा अग्नि एक कबूतर का रूप बन कर उस स्थान पर पहुंच गये, जहां राजा शिबि यज्ञ कर रहे थे. शिबि यज्ञ की वेदी पर बैठे हुए थे कि अचानक एक कबूतर उनकी गोद में आ गिरा. एक बाज उसका पीछा कर रहा था.

कबूतर को राजा की गोद में पड़ा देख बाज राजा से बोला- इस धरती के सभी राजा तुम्हारे न्याय की दुहाई देते हैं. मैं भूखा हूं. इसे तुरंत मेरे हवाले कर दो. यह सुन कर राजा बोले- अरे बाज! देखो यह बेचारा पंछी मेरी शरण में आया है, क्या यह उचित होगा कि मैं इसका त्याग कर दूं? बाज बोला- राजन्! सभी प्राणी भोजन पर ही जीवन निर्वाह करते हैं. यदि मैंने भोजन नहीं किया तो मेरा जीवन समाप्त हो जायेगा. राजा ने कहा- हे पक्षीराज! मैं तुम्हें यह राज्य, सारी संपत्ति और अपना जीवन दे सकता हूं, पर यह कबूतर मैं तुम्हें नहीं दूंगा.

यह सुन कर बाज बोला- ठीक है, फिर कबूतर के मांस के बराबर अपने शरीर का मांस दे दो. राजा ने कहा- मैं धन्य हुआ. राजा ने तुरंत चाकू से अपने शरीर का मांस काट कर दे दिया. यह दृश्य देख कर बाज बोला- राजन! तुम धर्म के सच्चे पालक हो. मैं इंद्र हूं और यह कबूतर अग्निदेव हैं.

– स्वामी शिवानंद सरस्वती

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