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अचेतन का विश्लेषण

अचेतन में अतीत का जबरदस्त जोर रहता है, जो आपको एक विशेष दिशा में धकेलता है. अब अचेतन से अतीत को तुरंत ही कैसे साफ किया जाये? विश्लेषक सोचता है कि विश्लेषण द्वारा, जांच पड़ताल करके, इसके घटकों को तलाश करके, स्वीकार करके, या सपनों की व्याख्या इत्यादि करके अचेतन को थोड़ा-थोड़ा करके, टुकड़ों में […]

अचेतन में अतीत का जबरदस्त जोर रहता है, जो आपको एक विशेष दिशा में धकेलता है. अब अचेतन से अतीत को तुरंत ही कैसे साफ किया जाये? विश्लेषक सोचता है कि विश्लेषण द्वारा, जांच पड़ताल करके, इसके घटकों को तलाश करके, स्वीकार करके, या सपनों की व्याख्या इत्यादि करके अचेतन को थोड़ा-थोड़ा करके, टुकड़ों में या, यहां तक कि, पूरी तरह साफ किया जा सकता है, ताकि हम एक सामान्य आदमी रहें.
लेकिन विश्लेषण में सदैव एक विश्लेषणकर्ता होता है और एक विश्लेषण या परिणाम, एक अवलोकनकर्ता, जो कि अवलोकन की जानेवाली चीजों की व्याख्या करता है, यह ही द्वैत है, जो कि द्वंद्व का स्रोत है. तो अचेतन का विश्लेषणमात्र कहीं नहीं पहुंचाता. हो सकता है कि यह हमारा थोड़ा सा पागलपन कम करे, लेकिन यह सब अचेतन को मुक्त नहीं करता, इसलिए मैं विश्लेषण प्रक्रिया को पूरी तरह से अस्वीकार करता हूं.
जिस क्षण, मैं यह तथ्य देखता हूं कि विश्लेषण किन्हीं भी परिस्थितियों में अचेतन का बोझ नहीं हटा सकता, मैं विश्लेषण से बाहर हो जाता हूं. ऐसा करना उचित जान पड़ता है, क्योंकि इस स्थिति में कोई भी देख सकता है कि अचेतन बहुत ही कम महत्व का है.
– जे कृष्णमूर्ति

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