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हमारी एकता का कारण

एक मत है कि दक्षिण भारत में द्रविड़ नाम की एक जाति के मनुष्य उत्तर भारत की आर्य नामक जाति से बिल्कुल भिन्न थे और दक्षिण भारत के ब्राह्मण ही उत्तर भारत के आये हुए आर्य हैं. अन्य जातियां दक्षिणी ब्राrाणों से बिल्कुल ही पृथक जाति की हैं. भाषा-वैज्ञानिक महाशय, मुङो क्षमा कीजियेगा, यह मत […]

एक मत है कि दक्षिण भारत में द्रविड़ नाम की एक जाति के मनुष्य उत्तर भारत की आर्य नामक जाति से बिल्कुल भिन्न थे और दक्षिण भारत के ब्राह्मण ही उत्तर भारत के आये हुए आर्य हैं. अन्य जातियां दक्षिणी ब्राrाणों से बिल्कुल ही पृथक जाति की हैं.
भाषा-वैज्ञानिक महाशय, मुङो क्षमा कीजियेगा, यह मत बिल्कुल निराधार है. भाषा का एकमात्र प्रमाण यह है कि उत्तर और दक्षिण की भाषा में भेद है. जनता को उसकी बोलचाल की भाषा में शिक्षा दो, उसको भाव दो, उसको संस्कृति का बोध दो.
जातियों में समता लाने के लिए एकमात्र उपाय संस्कार और शिक्षा का अजर्न करना है. यदि यह तुम कर सको तो जो कुछ तुम चाहते हो, वह तुम्हें मिल जायेगा. यहां आर्य हैं, द्रविड़ हैं, तातार हैं, तुर्क हैं, मुगल हैं, यूरोपीय हैं- मानो संसार की सभी जातियां इस भूमि में अपना-अपना खून मिला रही हैं. भाषा का यहां एक विचित्र ढंग का जमाव है. व्यवहारों के संबंध में दो भारतीय जातियों में जितना अंतर है, उतना पूर्वी और यूरोपीय जातियों में नहीं.
हमारे पास एकमात्र सम्मिलित भूमि है, हमारी पवित्र परंपरा, हमारा धर्म. एकमात्र सामान्य आधार वही है और उसी का हमें संगठन करना होगा. यूरोप में राजनीतिक विचार ही राष्ट्रीय एकता का कारण है, किंतु एशिया में राष्ट्रीय ऐक्य का आधार धर्म ही है, अत: भारत के भविष्य संगठन की पहली शर्त के तौर पर उसी धार्मिक एकता की आवश्यकता है.
स्वामी विवेकानंद

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