चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को नये विक्रम संवत्सर का प्रारंभ होता है. इसके ठीक आठ दिन बाद चैत्र शुक्ल नवमी को श्रीराम जन्मोत्सव मनाया जाता है. यह पर्व समूचे भारत में श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. अगस्त्य संहिता के अनुसार, भगवान राम का जन्म चैत्र शुक्ल नवमी के दिन पुनर्वसु नक्षत्र, कर्क लग्न में हुआ था. आयोध्या में आज के दिन देशभर से आये श्रद्धालु सरयू नदी में स्नान कर मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं.
रामनवमी पर चौदह कोसी परिक्रमा विशेष रूप से फलदायक है. धर्मशास्त्रों में रामनवमी पर निष्काम भाव से व्रत रखने के बारे में बताया गया है कि इससे धैर्य शक्ति का विस्तार होता है. चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से शुरू होनेवाले नव वर्ष अच्छा हो, इसके लिए जरूरी है कि हम अच्छे कार्यो और सदाचार के लिए संकल्प लें. भगवान श्रीराम का भी जन्म लोक कल्याण के लिए हुआ था. गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरितमानस में लिखा है- मंगल भवन, अमंगल हारी यानी श्रीराम मंगलकारी हैं और अमंगल को हरनेवाले हैं. लोक मंगल की भावना हमारे मानव होने की पहचान है. मन, वचन और कर्म में पवित्रता का होना जरूरी है. रामजन्मोत्सव मनाने के साथ-साथ हमें उनके आदर्शो को आत्मसात करना चाहिए. श्रीराम ने वैभव का परित्याग कर 14 वर्ष के लिए वन जाना स्वीकार किया. आज स्वार्थपरता लोगों को अंधा बना देती है. रामनवमी मनाते हुए हमें ऐसे दुगरुणों का परित्याग कर त्याग और सदाचार का संकल्प लेना चाहिए.
ब्रह्मनंद मिश्र