देश के प्रत्येक घर को हम सदवर्त में भले ही परिणत कर दें, देश को अस्पतालों से भले ही भर दें; परंतु जब तक मनुष्य का चरित्र परिवर्तित नहीं होता, तब तक दुख-क्लेश बना ही रहेगा. यदि तुम सचमुच किसी मनुष्य के चरित्र को जांचना चाहते हो, तो उसके बड़े कार्यों से उसकी जांच मत करो. एक मूर्ख भी किसी विशेष अवसर पर बहादुर बन जाता है.
मनुष्य के अत्यंत साधारण कार्यों की जांच करो और वास्तव में वे ही ऐसी बाते हैं, जिनसे तुम्हें एक महान पुरुष के वास्तविक चरित्र का पता लग सकता है. आकस्मिक अवसर तो छोटे-से-छोटे मनुष्य को भी किसी-न-किसी प्रकार का बड़प्पन दे देते हैं. परंतु, वास्तव में बड़ा तो वही है, जिसका चरित्र सदैव और सब अवस्थाओं में महान रहता है.
यदि हम इतिहास को देखें तो विदित होगा कि जो विचारधारा सर्वश्रेष्ठ होगी, वही जीवित रहेगी और चरित्र की अपेक्षा अन्य ऐसी कौन सी शक्ति है जो जीने की योग्यता प्रदान कर सकती है, तो वह केवल और केवल चरित्र ही है, जो वह शक्ति प्रदान कर सकती है. विचारशील मनुष्य जाति का भावी धर्म अद्वैत ही होगा, इसमें संदेह नहीं. आज संसार के सारे धर्म प्राणहीन, परिहास की वस्तु हो गये हैं.
जगत को जिस वस्तु की आवश्यकता है, वह है चरित्र. इस संसार को ऐसे लोग चाहिए, जिनका जीवन स्वार्थहीन ज्वलंत प्रेम का उदाहरण है. वह प्रेम एक-एक शब्द को वज्र के समान प्रभावशाली बना देगा. प्रेम तब तक उत्पन्न नहीं होगा, जब तक मनुष्य का चरित्र उत्तम नहीं होगा.
।। स्वामी विवेकानंद ।।