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अपने अवगुणों पर विजय प्राप्त करने का शुभकाल है विजयादशमी

दशहरा कोई आम दिनों की तरह नहीं है. यह बुराई के अंत के लिए बिल्कुल उपयुक्त समय है. पौराणिक कथा मिलती है कि भगवान राम ने भी रावण को मारने से पहले मां दुर्गा की वंदना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था. क्यों न विजयादशमी के दिन हम भी अपने अंदर बैठे दुर्गुणों के ‘रावण’ […]

दशहरा कोई आम दिनों की तरह नहीं है. यह बुराई के अंत के लिए बिल्कुल उपयुक्त समय है. पौराणिक कथा मिलती है कि भगवान राम ने भी रावण को मारने से पहले मां दुर्गा की वंदना कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया था. क्यों न विजयादशमी के दिन हम भी अपने अंदर बैठे दुर्गुणों के ‘रावण’ को मारें और खुद में ‘राम’ तत्व को जाग्रत करें. विजयादशमी का संदेश यही तो है.
‘दशहरा’ शब्द की संधि ‘दश + हरा’है. ‘हरा’ अर्थात ले जाना. दशहरा अर्थात ‘मेरे दस अवगुण ले जा’, ऐसा अर्थ है. बाह्य और अंतर्गत शत्रुओं का नाश करने के लिए अवगुणों को नष्ट करने के लिए यह तिथि शुभ इसलिए है, क्योंकि इस तिथि को जीव का क्षात्रभाव जागृत होता है. इस दिन श्रीराम और हनुमान का स्मरण करने से जीव में दास्यभक्ति निर्माण होकर श्रीराम का तारक, अर्थात आशीर्वादरूपी तत्व मिलने में सहायता होती है. इस तत्व का लाभ उठाकर बाह्य और अंतर्गत शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने की सद्बुद्धि सभी को मिले, यही श्री शारदा देवी के चरणों में प्रार्थना है!
राम ही तो करुणा में हैं, शांति में राम हैं
राम ही हैं एकता में, प्रगति में राम हैं
राम बस भक्तों में नहीं, शत्रु के भी चिंतन में हैं
देख तज के पाप रावण, राम तेरे मन में हैं
राम तेरे मन में हैं, राम मेरे मन में हैं
राम तो घर-घर में हैं, राम हर आंगन में हैं
मन से रावण जो निकाले, राम उसके मन में हैं…
कई रूप हैं रावण के
क्या आप जानना नहीं चाहते अपने भीतर के रावण को? क्या आपने अपनी बुराइओं पर ध्यान दिया है? अगर नहीं, तो जरा उस पर विचार कीजिए. इसके लिए आत्म-चिंतन बेहद जरूरी प्रक्रिया है. आपमें भी कई रावण हो सकते हैं, जैसे –
• – छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा करने की आदत
• – बात-बात में झूठ बोलने की आदत
• – आलस्यपन, बड़ों की इज्जत न करना
• – समय बर्बाद करना, दूसरों की आलोचना में लगे रहना आदि.
हर इंसान में कई रावण मौजूद हैं. एक बार में सभी रावण पर विजय पाना शायद संभव नहीं. आप हर साल बस किसी एक रावण का अंत कीजिए. आप किसे चुनते हैं, यह आपके स्वविवेक पर निर्भर करता है. मगर उसके दहन के लिए आपकी संकल्प शक्ति चट्टानों-सी मजबूत होनी चाहिए. बुराई पर अच्छाई के विजय का प्रतीक है विजयादशमी और वर्तमान में इसकी सार्थकता तभी सुनिश्चित हो पायेगी –
– जिस दिन हम किसी भी ‘दुर्गा’ को गर्भ में ही मारे जाने से बचाने में सफल होंगे.
– जिस दिन हर ‘सरस्वती’ को शिक्षित करके उसका हक दिला सकेंगे.
– जिस दिन हर ‘लक्ष्मी’ आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हो जायेगी.
– जिस दिन कोई ‘पार्वती’ दहेज के लिए जलायी नहीं जायेगी.
– जिस दिन किसी ‘काली’ को उसके रूप-रंग की वजह से उपेक्षित नहीं किया जायेगा.
इस बार विजयादशमी के शुभ अवसर पर इस समाज के उन तमाम रावण के विरोध और विनाश का संकल्प लें, जो किसी दुर्गा, सरस्वती, लक्ष्मी, काली या पार्वती से उसका एक सम्मानित जीवन जीने का अधिकार छीनते हैं. सही मायनों में हमारी, आपकी और हम सबकी पूजा तभी सुफल हो पायेगी.
शुभ विजयादशमी!

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