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रसखान और खुसरो की कविताओं में अनन्य कृष्णभक्ति

प्रमुख कृष्ण भक्त रसखान की अनुरक्ति न केवल कृष्ण के प्रति प्रकट हुई है, बल्कि कृष्ण-भूमि के प्रति भी उनका अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है. भगवान कृष्ण के परम भक्तों में से एक हैं रसखान. उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, मगर कृष्ण के प्रति उनके लगाव और उनकी रचनाओं ने उन्हें रसखान बना दिया. […]

प्रमुख कृष्ण भक्त रसखान की अनुरक्ति न केवल कृष्ण के प्रति प्रकट हुई है, बल्कि कृष्ण-भूमि के प्रति भी उनका अनन्य अनुराग व्यक्त हुआ है. भगवान कृष्ण के परम भक्तों में से एक हैं रसखान. उनका असली नाम सैयद इब्राहिम था, मगर कृष्ण के प्रति उनके लगाव और उनकी रचनाओं ने उन्हें रसखान बना दिया. रसखान यानी रस की खान.
कहा जाता है कि रसखान ने भागवत का अनुवाद फारसी में किया था. ‘मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलि गोकुल गांव के ग्वारन’ रसखान की ही देन है. उनकी कविताओं में ब्रजभाषा का अत्यंत सरस और मनोरम प्रयोग मिलता है, जिसमें जरा भी शब्दाडंबर नहीं है.
ग्यारहवीं शताब्दी के बाद भारत में इस्लाम धर्म का काफी प्रभाव हुआ. इसी वक्त चर्चा में आये अमीर खुसरो. कहते हैं कि एक बार निजामुद्दीन औलिया के सपने में कृष्ण आये. औलिया ने अमीर खुसरो से कृष्ण की स्तुति में कुछ लिखने को कहा तो खुसरो ने मशहूर रंग ‘छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलायके’ कृष्ण को समर्पित कर दिया.

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