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इस्लाम धर्म का पवित्र कर्तव्य हज

डॉ मुश्ताक अहमदप्रधानाचार्य, सीएम कॉलेज, दरभंगामो- 9431414586 इस्लाम धर्म के पांच सतून (स्तंभ) हैं, अर्थात तौहीद, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज. तौहीद का अर्थ एक ईश्वर यानी अल्लाह की इबादत करना है जबकि रोज़ा, नमाज़ सभी बालिगों (वयस्क) मुसलमानों पर फर्ज़ (अनिवार्य) है. लेकिन ज़कात और हज सभी के लिए अनिवार्य नहीं है, बल्कि आर्थिक […]

डॉ मुश्ताक अहमद
प्रधानाचार्य, सीएम कॉलेज, दरभंगा
मो- 9431414586

इस्लाम धर्म के पांच सतून (स्तंभ) हैं, अर्थात तौहीद, नमाज़, रोज़ा, ज़कात और हज. तौहीद का अर्थ एक ईश्वर यानी अल्लाह की इबादत करना है जबकि रोज़ा, नमाज़ सभी बालिगों (वयस्क) मुसलमानों पर फर्ज़ (अनिवार्य) है. लेकिन ज़कात और हज सभी के लिए अनिवार्य नहीं है, बल्कि आर्थिक दृष्टि से संपन्न मुसलमानों को ही ज़कात अदा करना है और हज की यात्रा भी स्वस्थ एवं आर्थिक संपन्नता के बाद ही पूरा करना है. हज इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक प्रत्येक वर्ष जिलहिज्ज महीने की 8 से 12 तारीख तक अदा किया जाता है.
पूरी दुनिया के मुसलमानों के लिए किबला (काबा शरीफ़) जो सउदी अरब के मक्का शहर में अवस्थित है, उसका तवाफ़ (चक्कर लगाना) करना और फिर हज के जो अरकान (अवयव) हैं, उनको पूरा करना है. हज के समय हज यात्रियों को अहराम में रहना है.
अहराम का अर्थ है कि बिना सिला हुआ वस्त्र पुरुष के लिए. महिलाओं के लिए यह पाबंदी नहीं है. उन्हें पर्दा का ख्याल रखना है. हज के समय पाक-साफ़ रहने की अनिवार्यता है, अरफ़ात व मीना में समय गुजारना, सफा मरवा की दौड़ पूरी करने के साथ-साथ शैतान को कंकड़ी मारने जैसे कर्तव्यों को पूरा करना आवश्यक है.
हज यात्रा के समय मदीना का सफ़र हर हाजी के लिए जीवन की सबसे मुबारक यात्रा मानी जाती है कि मदीना में हजरत पैगंबर मोहम्मद (स0अ0) की कब्र है. हर मुसलमान की यह दिली तमन्ना होती है कि वह हजरत पैगंबर मोहम्मद (स0अ0) के रौज़े का दीदार करे और मसजिदे नबवी में नमाज़ अदा करे.
जैसा कि पहले ही लिखा जा चुका है कि हज सभी मुसलमानों पर अनिवार्य नहीं है. आर्थिक संपन्नता के साथ-साथ यह भी शर्त है कि हज करने वाला स्वस्थ हो, बालिग (व्यस्क) हो, गुलाम नहीं हो, पागल नहीं हो और कजर्दार न हो. इसका अर्थ यह है कि हज करने वाला किसी भी तरह के मानसिक एवं आर्थिक दबाव में नहीं हो और पूरे तौर पर अल्लाह (ईश्वर) के प्रति समर्पित हो.
हज एक ऐसा धार्मिक फर्ज़ है, जिसकी अदायगी के बाद आदमी एक नवजात शिशु के समान हो जाता है. यानी एक मुसलमान का यह ईमान है कि हज के बाद उसके तमाम गुनाहों की माफ़ी हो जाती है, इसलिए हज के बाद लोगों की दिनचर्या और उनके आचार-विचार में परिवर्तन भी आवश्यक है.
यही कारण है कि मुस्लिम समाज में यह सोच आम है कि हज के बाद आदमी को अल्लाह की इबादत में मशगूल रहना चाहिए. लेकिन धार्मिक दृष्टि से ऐसा कुछ भी नहीं है, बल्कि इस्लाम धर्म यह सबक देता है कि मनुष्य को हमेशा सच बोलना चाहिए. हराम से परहेज़ करना चाहिए और अल्लाह की इबादत करते रहना चाहिए. हज से पहले के जीवन और हज के बाद के जीवन में अंतर दिखना भी चाहिए, क्योंकि इस्लाम धर्म में हज से बड़ा कोई फर्ज़ इबादत नहीं है.
हज के दिनों में मक्का और मदीना के तमाम अरकानों को पूरा करने के साथ कुर्बानी देना भी फर्ज़ है. 10 जिलहिज्ज के दिन हज की आदायगी के बाद जानवरों की कुर्बानी देना और अपने सिर के बाल उतरवाना (पुरुष के लिए) आवश्यक है. दरअस्ल हज हजरत इब्राहीम की सुन्नत को भी पूरा करने का नाम है.
यह हज हजरत पैगंबर मोहम्मद (स0अ0) के समय से पहले भी होता था, लेकिन हजरत पैगंबर मोहम्मद (स0अ0) ने जो कायदे औ जाबते (धार्मिक नियम परिनियम) तय किये, वर्तमान में पूरी दुनिया के मुसलमान उसी के अनुसार हज पूरा करते हैं. हज यात्री ज़मज़म (पाक पानी) और खजूर का तबर्रुक लेकर आते हैं और अपने परिवार एवं मित्रों के बीच बांटते हैं. ज़मज़म का पीना धार्मिक एवं स्वास्थ्य दोनों दृष्टि से पवित्र माना जाता है.
ज़मज़म का भी एक इतिहास है कि हज़रत इस्माईल की एड़ी रगड़ने से बंजर रेगिस्तान से पानी का चश्मा फूटा था, जो आज तक जारी है. हजारों वर्षों से ज़मज़म पेय जल के रूप में पूरे विश्व में जाता है. भारत दुनिया का सबसे बड़ा मुस्लिम अकलियत वाला देश है, इसलिए यहां से भी प्रत्येक वर्ष हजारों की संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग हज यात्रा पर जाते हैं और वहां भारतीय संस्कृति के सम्वाहक के रूप में अपनी पहचान बनाते हैं.
हज पूरा करने वाले मानवता के रक्षक के रूप में भी सक्रिय रहते हैं, जिससे न केवल मुस्लिम समुदाय, बल्कि पूरा मानवीय समाज लाभान्वित होता है. अर्थात हज यात्रा मात्र एक धार्मिक अनिवार्यता को पूरा करने का नाम नहीं है, बल्कि एक व्यक्ति का पूर्ण रूप से मानवीय मूल्यों का रक्षक बन जाना भी है.
इस्लाम के पांच स्तंभ
1 तौहीद : यानी एक अल्लाह और मोहम्मद उनके भेजे हुए दूत हैं, इसमें हर मुसलमान का विश्वास होना.
2 नमाज़ : दिन में पांच बार नियम से नमाज़ अदा करना.
3 रोज़ा : रमज़ान के दौरान उपवास रखना.
4 ज़कात : गरीबों और ज़रूरतमंद लोगों को दान करना.
5 हज : मक्का जाना.

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