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बुद्ध की मैत्री भावना

बौद्ध ग्रंथों में मैत्री भावना के अनेक प्रसंग मिलते हैं. उनमें से एक कथा भिक्खु पूर्ण की है. वे व्यापार के लिए अक्सर श्रावस्ती आया करते थे.एक बार उन्हें बुद्ध का सान्निध्य प्राप्त हुआ. बुद्ध से वे इतने प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बनकर भिक्खु हो गये. कुछ दिनों तक बुद्ध से ज्ञान लेने और […]

बौद्ध ग्रंथों में मैत्री भावना के अनेक प्रसंग मिलते हैं. उनमें से एक कथा भिक्खु पूर्ण की है. वे व्यापार के लिए अक्सर श्रावस्ती आया करते थे.एक बार उन्हें बुद्ध का सान्निध्य प्राप्त हुआ. बुद्ध से वे इतने प्रभावित हुए कि उनके शिष्य बनकर भिक्खु हो गये. कुछ दिनों तक बुद्ध से ज्ञान लेने और उसका अभ्यास करने के बाद एक दिन पूर्ण ने बुद्ध से पूछा- क्या मुझे अपनी मातृभूमि सूनापरांत में जाकर धर्मोपदेश की अनुमति है? बुद्ध ने कहा- पूर्ण! सूनापरांत के लोग चंड व कठोर होते हैं, यदि वे क्रोध करेंगे तो तुम्हें कैसा लगेगा? पूर्ण ने उत्तर दिया, भगवन!
सूनापरांत के लोग क्रोध से बात करेंगे, तो मैं सोचूंगा कि ये बड़े अच्छे लोग हैं, क्योंकि उन्होंने मारपीट नहीं की, केवल क्रोध ही किया. बुद्ध ने फिर पूछा- यदि हाथों से प्रहार किया तो?
पूर्ण ने जवाब दिया- तो सोचूंगा कि ये लोग बड़े सभ्य हैं कि मुझे पत्थरों से नहीं मारा. बुद्ध ने फिर शंका प्रकट की- यदि पत्थरों से मारा तो? पूर्ण ने फिर कहा- तो समझूंगा कि अच्छे लोग हैं, पत्थरों से ही मारा है, डंडों से तो नहीं पीटा. बुद्ध ने पूछा- यदि डंडों से मारेंगे तो? पूर्ण ने शांति से कहा- तो समझूंगा कि अच्छे लोग हैं, मारा तो है, पर मेरी जान नहीं ली.
अंत में बुद्ध ने पूछा- पूर्ण! यदि वे तुम्हें मार ही डालें, तो? पूर्ण ने प्रसन्न होकर उत्तर दिया- यदि सूनापरांत के लोग मेरी हत्या कर दें, तो इस निस्सार जीवन का अंत हो जायेगा और मैं दुखी दुनिया से परिनिवृत्त हो जाऊंगा. यह सुन कर बुद्ध ने कहा- साधु पूर्ण! तुम्हारी सहनशीलता व मैत्री भावना महान है. मैं तुम्हें धर्म-प्रचार के लिए जाने की अनुमति देता हूं.
बुद्ध की मैत्री भावना असीम है. बुद्ध की ‘मैत्री’ भावना का अर्थ मित्रता व भाईचारे की भावना है.इसमें ईर्ष्या, द्वेष, क्रोध, शत्रुता, क्रूरता, वैमनस्य, अहित व बदले की भावना नहीं होती. इसका क्षेत्र मनुष्यों तक ही सीमित नहीं होता, बल्कि बुद्ध ने पशु-पक्षियों व पेड़-पौधों के प्रति भी मैत्री भावना रखने का संदेश दिया है. जीव-जंतुओं व पेड़-पौधों के कल्याण, संरक्षण एवं संवर्धन के लिए भी कहा है. बुद्ध कहते हैं- शांति पद की प्राप्ति चाहनेवाले को कल्याण साधन में निपुण होना चाहिए.
वह सरल, संतोषी, सादा जीवन बिताने वाला बने व उसकी इंद्रियां शांत हों. वह छोटे से छोटा भी कर्म ऐसा न करे, जिसके लिए दूसरे लोग उसको दोष दें. वह इस प्रकार की मैत्री करे, जिससे सभी प्राणी सुखी और क्षमाशील हों. मनुष्य एक-दूसरे की बुराई न करें, कभी किसी का अपमान न करें. वैमनस्य या विरोध से एक-दूसरे के दुख की इच्छा न करें.

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