28.8 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

शारदीय नवरात्र नौवां दिन : पढ़ें ये मंत्र मां सिद्धिदायिनी होंगी प्रसन्‍न

सिद्धों,गन्धर्वो,यक्षों,असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों. आदिशक्ति सीताजी-9 श्री रामचरितमानस की सीताजी षडैश्वर्यसंयुक्ता हैं. वे मात्र मूल प्रकृति न होकर अनेक दिव्य गुणों से अलंकृत हैं. उद्भव, स्थिति और संहार मूल प्रकृति के कार्य हैं. मूलप्रकृति को दुष्टा और दुःखरूपा भी कहा गया है- एक दुष्ट अतिशय […]

सिद्धों,गन्धर्वो,यक्षों,असुरों और देवों द्वारा भी सदा सेवित होनेवाली सिद्धिदायिनी दुर्गा सिद्धि प्रदान करनेवाली हों.

आदिशक्ति सीताजी-9

श्री रामचरितमानस की सीताजी षडैश्वर्यसंयुक्ता हैं. वे मात्र मूल प्रकृति न होकर अनेक दिव्य गुणों से अलंकृत हैं. उद्भव, स्थिति और संहार मूल प्रकृति के कार्य हैं. मूलप्रकृति को दुष्टा और दुःखरूपा भी कहा गया है-

एक दुष्ट अतिशय दुखरूपा । जा बस जीव पर भव कृपा ।। अतः गोस्वामीजी ने मूल प्रकृति से भिन्न बताते हुए सीताजी को क्लेशहारिणीम्-सर्वश्रेयस्करीम और रामवल्लभाम् पदों से विभूषित कर इन्हें षड्-ऐश्वर्य-संयुक्त सिद्ध किया है.

जिनके हृदय में अविद्या,अस्मिता, राग-द्वेष और अभिनिवेश आदि पंच क्लेशों का निवास रहता है, उनके हृदय में वैराग्य आदि उत्पन्न करके सीताजी उनमें ज्ञान तथा भक्ति अवस्थित करती हैं और कामादि विकारों का संहार करती हैं. अतः उद्भव,स्थिति और संहार के कार्य में उनकी मुख्य भूमिका पंच क्लेशों को विनष्ट करने के कारण सीताजी का क्लेशहारिणी विशेषण अत्यंत उपर्युक्त प्रतीत होता है. अतः श्रामवल्लभाम् विशेषण देकर गोस्वामी तुलसीदास जी ने शक्तिस्वरूपा की कल्याणकारिणी शक्ति की ओर संकेत किया है. उमा रमा ब्रह्मादि बंदिता होने पर भी सीताजी का भगवान राम के चरण-कमलों में अखण्ड अनुराग है. शक्ति और सेवा का अभूतपूर्व मणिकांचन-संयोग पतिपरायणा सीताजी के चरित्र में विशेष रूप से है-

निज कर गृह परिचरजा करई ।

रामचंद्र आयसु अनुसरई।।

जेहि विधि कृपासिंधु सुख मानई ।

सोइ कर श्री सेवा विधि जानई ।।

जासु कृपा कटाच्छु सुर चाहत चितय न सोइ ।

राम पदारविंद रति करति सउभावहि खोइ ।

सेवापरायणा सीताजी यह लोक-मंगलकारी रूप युग-युग तक नारी वर्ग के लिए अनुकरणीय रहेगा. इस प्रकार रामचरितमानस की सीताजी मुख्यतः तीन रूपों में चित्रित हैं. यद्यपि उनके तीनों रूप उदात्त और प्रसंगानुरूप है, किंतु गोस्वामी तुलसीदास जी को जगज्जननी का करूणार्द्ररूप विशेष प्रिय है. इसी रूप में भक्तवत्सला मां भी अपने पुत्रों को आशीर्वाद देती हैं. अतः नवरात्र के अवसर पर आदिशक्ति सीताजी की आराधना करें-

सकलकुशलदात्रीं भुक्ति मुक्तिप्रदात्रीं ।

त्रिभुवनजनयित्रीं दुष्टधीनाशयित्रीम् ।।

जनकधरणिपुत्रीं दर्पिदर्पप्रहत्रीं ।

हरिहरविधिकत्रीं नौमि सदभक्तिभत्रींम् ।।

जो सबको सुमगंल प्रदान करनेवाली, भुक्ति-मुक्ति-प्रदायिनी, तीनों लोकों की निर्मात्री, दुष्टों की बुद्धि का विनाश करनेवाली, अहंकारियों के दर्प को विचूर्ण करनेवाली, ब्रह्मा, विष्णु और शंकर की भी जननी तथा सद्-भक्तों का भरण-पोषण करनेवाली हैं, उन जनक-नन्दिनी, भूमिपुत्री श्रीसीताजी को हम नमस्कार करते हैं.

(समाप्त)

प्रस्तुतिः डॉ एनके बेरा

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें