रूधिर से परिप्लुत एवं सुरा से परिपूर्ण कलश को दोनों करकमलों में धारण करनेवाली कूष्माण्डा दुर्गा मेरे लिए शुभदायिनी हों.
आदिशक्ति सीताजी-4
जगत जननी सीताजी शक्तिस्वरूपा हैं. अखिल ब्रह्मांड के नायक श्रीराम की आह्लादिनी-शक्ति हैं, प्रेरणा की स्रोतस्विनी हैं. महाकवि तुलसीदास ने अपनी उपासना के केंद्र श्रीरामजी से श्रीरामचरितमानस के बालकांड में कहलवाया है :
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा । तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा ।।
नारद वचन सत्य सब करिहउँ । परम सक्ति समेत अवतरिहउँ ।।
यहां श्रीरामजी कहते हैं कि- हे देवगण! तुम्हारी रक्षा के लिए मैं परमशक्ति सीता सहित अवतार लूंगा. शक्तिस्वरूपा सीताजी का ऐश्वर्य, शक्ति एवं श्रीरामजी के प्रति पुरातन प्रेम धनुष-यज्ञ के समय स्पष्ट हो जाता है. बचपन में किशोरी जी ने जिस धनुष को खेल-खेल में हाथ से उठाकर उस स्थान को साफ-सुथरा कर पुनः धनुष को उसी स्थान पर रख दिया था, वही धनुष आज संसार के किसी राजा से उठाया नहीं जा रहा है. उठाना तो दूर, तिलभर हिल-डुल भी नहीं रहा है :
भूप सहस दस एकहि बारा । लगे उठावन टंरइ न टारा ।।
रहउ चढ़ाउब तोरब भाई । तिलु भरि भूमि न सके छड़ाई ।।
रावण और बाण जैसे शक्तिशाली राजाओं ने धनुष को छुआ तक नहीं- रावण बान छुआ नहिं चापा. इससे जनकनंदिनी की अपार शक्ति का पता चल जाता है. तभी तो कुछ राजा कहते हैं-
सिख हमारि सुनि परम पुनीता ।
जगदंबा जानहु जियँ सीता ।।
तुलसीदास जी कहते हैं :
सोह नवल तनु सुंदर सारी।
जगत जननि अतुलित छबि भारी ।।
इस तरह सीताजी जगत जननी और शक्तिस्वरूपा हैं. श्रीरामजी के धनुष तोड़ने में जगदम्बा सीताजी की अदृश्य शक्ति लगी थी. जब श्रीरामजी धनुष उठाने के लिए चलते हैं, तब सीताजी मन-ही-मन देवी-देवताओं की प्रार्थना करती हैं और कहती हैं कि धनुष को फूल से भी अधिक हलका कर दें, जिससे प्राणबल्लभ श्रीरामजी को तनिक भी कष्ट न हो-
मनहीं मन मनाव अकुलानी । होहु प्रसन्न महेस भवानी ।।
करहु सफल आपनि सेबकाई । करि हितु हरहु चाप गरूआई ।।
(क्रमशः) प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा