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कुंडली के इन दोषों से बढ़ सकता है पति-पत्नी के बीच तलाक का खतरा

Marriage Astro Tips: हम अक्सर अपने चारों ओर देखते हैं कि कई विवाहों की अवधि बहुत छोटी होती है. कुछ महीनों के भीतर ही उनके रास्ते अलग हो जाते हैं. इस संदर्भ में, आज हम ज्योतिषी डॉ एन के बेरा से यह जानने का प्रयास करेंगे कि किन ज्योतिषीय कारणों से तलाक की स्थिति उत्पन्न होती है.

Marriage Astro Tips, Divorce Yog: सनातन धर्म में विवाह संस्कार को अत्यंत महत्वपूर्ण माना जाता है. इसीलिए, शादी के निर्णय लेते समय लड़के और लड़की की कुंडलियों का मिलान किया जाता है. किसी व्यक्ति के जन्म के साथ उसकी कुंडली तैयार होती है. जातक के जन्म के समय ग्रहों, नक्षत्रों और योगों की स्थिति के आधार पर उसके करियर, जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव, व्यापार, नौकरी और वैवाहिक जीवन के बारे में जानकारी प्राप्त की जा सकती है. जन्म पत्रिका का विश्लेषण करके संभावित समस्याओं और भविष्य की घटनाओं का अनुमान लगाया जाता है. कुंडली में कुछ अशुभ योग और दोष होते हैं, जो वैवाहिक जीवन में कठिनाइयां उत्पन्न कर सकते हैं.

कुंडली में तलाक का योग

कुंडली का सप्तम भाव विवाह से संबंधित प्रमुख भाव होता है. इस भाव पर किसी भी प्रकार का नकारात्मक प्रभाव यह दर्शाता है कि दांपत्य जीवन में सुख की कमी हो सकती है. यदि सप्तम भाव प्रभावित है और साथ ही निम्नलिखित ज्योतिषीय संकेत भी मौजूद हैं, तो यह निश्चित रूप से तलाक के योग की ओर इशारा करता है. आइए जानें ज्योतिषाचार्य डॉ एन के बेरा से इसके बारे में

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  • यदि कुंडली में लग्नेश, सप्तमेश, या चंद्रमा विपरीत स्थिति में, जैसे 2-12 या 6-8 में स्थित हैं, तो तलाक की संभावना बढ़ जाती है.
  • जब सप्तम या चतुर्थ भाव का स्वामी छठे या बारहवें भाव में होता है, तो पति-पत्नी के बीच अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है, जो तलाक के योग को और बढ़ाती है.
  • यदि सूर्य, राहु, या शनि सातवें भाव में उपस्थित हैं, और शुक्र भी वहां मौजूद है, तो भी तलाक के योग बनते हैं.
  • सप्तमेश और बारहवें भाव के स्वामियों में परिवर्तन होने पर तलाक का योग उत्पन्न होता है.
  • यदि चतुर्थ भाव प्रभावित है, तो गृहस्थ जीवन में सुख की कमी आती है.
  • यदि जन्म कुंडली में शुक्र किसी अशुभ ग्रह के साथ छठे, आठवें, या बारहवें भाव में स्थित है, तो विवाह में विघ्न आ सकता है.
  • यदि कुंडली में प्रेम का कारक ग्रह, शुक्र, नीच या वक्री स्थिति में त्रिक भाव में उपस्थित है, तो यह अलगाव का संकेत देता है.
  • यदि सप्तमेश छठे या आठवें भाव के स्वामी के साथ युति करता है और उस पर अशुभ प्रभाव है, तो भी अलगाव की संभावना रहती है.
  • यदि शनि या राहु, पीड़ित अवस्था में या किसी अशुभ भाव के स्वामी के रूप में लग्न में स्थित हैं, तो तलाक के प्रबल योग बनते हैं.
  • यदि सप्तमेश वक्री या कमजोर है, तो भी अलगाव की स्थिति उत्पन्न होती है.

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