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साइबर अपराधी रजिस्ट्री ऑफिस से फिंगर प्रिंट लेकर अंगूठे का क्लोन कर रहे तैयार, अकाउंट से उड़ा रहे पैसे

हरियाणा पुलिस ने गिरोह की एक महिला सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. इन साइबर अपराधियों ने सात दिन के अंतराल में 31 लाख रुपये की ठगी की थी. हरियाणा पुलिस ने इस गिरोह के पास से 230 रबर फिंगर प्रिंट बरामद किया था.

Jharkhand News: झारखंड में साइबर अपराधी अंगूठे का क्लोन तैयार कर आधार इनेबल्ड पेमेंट सिस्टम (एईपीएस) से ठगी कर रहे हैं. इस तरह की ठगी के लिए साइबर अपराधियों ने रजिस्ट्री ऑफिस से फिंगर प्रिंट हासिल किया है. इस तरह की ठगी का खुलासा हरियाणा पुलिस ने जून 2021 को किया था. हरियाणा पुलिस ने उन अपराधियों से अपराध करने के तरीके के बारे में जानकारी ली थी. इसलिए झारखंड पुलिस अब हरियाणा पुलिस की मदद से इस प्रकार की साइबर ठगी करने वाले अपराधियों तक पहुंचने का प्रयास करेगी.

हरियाणा पुलिस ने 230 रबर फिंगर प्रिंट किया था बरामद

हरियाणा पुलिस ने गिरोह की एक महिला सहित पांच लोगों को गिरफ्तार किया था. इन साइबर अपराधियों ने सात दिन के अंतराल में 31 लाख रुपये की ठगी की थी. हरियाणा पुलिस ने इस गिरोह के पास से 230 रबर फिंगर प्रिंट बरामद किया था. उनकी गिरफ्तारी से तीन करोड़ रुपये तक की धोखाधड़ी को रोका जा सका था.

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एईपीएस को डिकोड कर करते थे धोखाधड़ी

हरियाणा पुलिस के एसपी दीपक गहलावत ने बताया था कि गिरोह ने एईपीएस को डिकोड करके ऑनलाइन धोखाधड़ी की और बिना किसी निशान के पैसे निकाल लिये. 24 मई से दो जून 2021 के बीच धोखे से पैसे निकाले गये थे. उन्होंने कहा कि यह गिरोह और भी कई ठगी कर सकता था, अगर इसे समय पर नहीं पकड़ा जाता. हालांकि उनके पास से कोई नकद बरामद नहीं हुआ था, लेकिन पुलिस ने 10 लाख रुपये की एकमुश्त राशि वाले खाते को फ्रीज कर दिया था.

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रजिस्ट्री ऑफिस के रिकॉर्ड रूम से निकलवाते थे डॉक्यूमेंट्स

गिरोह में शामिल साइबर अपराधियों ने हरियाणा पुलिस को बताया था कि वे लोग रजिस्ट्री ऑफिस के रिकॉर्ड रूम से अभिलेख की प्रतियां निकलवा लेते थे. एक मशीन की मदद से दस्तावेज पर फिंगर प्रिंट का एक रबर क्लोन तैयार करते थे और संबंधित बैंक खातों से जुड़े आधार नंबर को शॉर्टलिस्ट कर लेते थे. उसके बाद एईपीएस के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन प्रोसेसिंग प्लेटफॉर्म की आवश्यकता होती है. जालसाजों ने इलेक्ट्रॉनिक ट्रांजेक्शन प्रोसेसिंग प्लेटफॉर्म ऐप का इस्तेमाल किया और बायोमिट्रिक डिवाइस और क्लोन किये गये रबर फिंगर प्रिंट का उपयोग कर लेन-देन शुरू किया. जैसे ही लेन-देन पूरा हुआ, पैसा इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म के वॉलेट में चला गया, फिर इसे उस बैंक खाते में स्थानांतरित कर दिया गया.

रिपोर्ट : अजय दयाल, रांची

Guru Swarup Mishra
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मैं गुरुस्वरूप मिश्रा. फिलवक्त डिजिटल मीडिया में कार्यरत. वर्ष 2008 से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से पत्रकारिता की शुरुआत. आकाशवाणी रांची में आकस्मिक समाचार वाचक रहा. प्रिंट मीडिया (हिन्दुस्तान और पंचायतनामा) में फील्ड रिपोर्टिंग की. दैनिक भास्कर के लिए फ्रीलांसिंग. पत्रकारिता में डेढ़ दशक से अधिक का अनुभव. रांची विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में एमए. 2020 और 2022 में लाडली मीडिया अवार्ड.

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