27.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

Travelogue : एप्‍लि‍क और पैचवर्क आर्ट के लिए जाना जाता है ओडिशा का पि‍पली गांव, घूम कर आये क्या?

रांची से पुरी का सफर करीब 537 कि‍लोमीटर की दूरी अपनी गाड़ी से ही तय करने का सोच नि‍कल गये.बि‍ल्‍कुल सुबह नि‍कले थे, फि‍र भी भुवनेश्‍वर पहुंचते-पहुंचते शाम गहरी होते हुए रात में तब्‍दील हो गई थी.मगर मेरे मन में पि‍पली गांव देखने का ऐसी जबरदस्‍त इच्‍छा थी, मैं गाड़ी तेज चलाने का आग्रह करती रही.

कोई बात, कोई दृश्‍य, दि‍माग के कि‍सी कोने में ऐसी स्‍मृति‍ बन ठहर जाती है कि‍ बरसों बाद भी उस याद से आपके मन के तार ठीक उसी तरह झंकृत हो जाते हैं, जैसे पहली बार हुआ था. मैं छोटी थी तो सीरि‍यल ‘सुरभि’ की जबरदस्‍त फैन हुआ करती थी. सि‍द्धार्थ काक और रेणुका शहाने के एकंरिंग का शानदार अंदाज दर्शकों को बांधे रखता था. उसी सीरि‍यल में पहली बार मैंने ‘पि‍पली’ गांव में बारे में जाना था जहां हस्‍तशि‍ल्‍प एप्‍लि‍क और पैचवर्क का काम होता है. तब से मन में यह इच्‍छा थी कि‍ जब भी पुरी जाने को मौका लगेगा तो उस गांव में जरूर जाऊंगी.

रांची से पुरी का सफर 537 किलोमीटर

मेरा यह मन में पलने वाला सपना साकार हुआ करीब 2005 में. हमलोग रांची से पुरी का सफर करीब 537 कि‍लोमीटर की दूरी अपनी गाड़ी से ही तय करने का सोच नि‍कल गये.बि‍ल्‍कुल सुबह नि‍कले थे, फि‍र भी भुवनेश्‍वर पहुंचते-पहुंचते शाम गहरी होते हुए रात में तब्‍दील हो गई थी.मगर मेरे मन में पि‍पली गांव देखने का ऐसी जबरदस्‍त इच्‍छा थी, कि‍ मैं बार-बार गाड़ी तेज चलाने का आग्रह करती रही.

Undefined
Travelogue : एप्‍लि‍क और पैचवर्क आर्ट के लिए जाना जाता है ओडिशा का पि‍पली गांव, घूम कर आये क्या? 4
पिपली गांव को लेकर मन में थी व्यग्रता

जब भुवनेश्‍वर से पुरी रोड पर गाड़ी मुड़ी तो हर गुजरने वाला क्षण मेरे अंदर इतनी व्‍यग्रता भर रहा था कि‍ उसे बयान नहीं कि‍या जा सकता.आशंका थी कि‍ कहीं इतनी घनी रात न हो जाए कि‍ मैं झलक भी न पा सकूं.पि‍पली करीब 24 कि‍लोमीटर दूर है भुवनेश्‍वर से, इसलि‍ए मेरी नि‍गाहें लगातार आसपास देखती जा रही थी कि‍ अब वह गांव आएगा.

चकमक कर रही थीं सड़कें

अचानक दूर से ही दि‍खाई दि‍या कि‍ सड़क की दोनों ओर खूब लाइट है. मेरी उत्‍सुकता और उत्‍तेजना चरम पर थी. यकीन मानिए, पास आते-आते मैं खुशी से चीखने लगी. सड़क के दोनों ओर कतार से सजी दुकानें. हर दुकान के बाहर रंग-बि‍रंगें कंदीलों से छनकर आती रौशनी दीवाली का भ्रम करा रही थी. चकमक कर रहा था सड़क का दोनों कि‍नारा. कंदील, बैग, वाल हैंगिंग, छतरी सब बाहर से ही दि‍ख रहा था. मैं गाड़ी रोककर उतर गई और कभी इधर-कभी उधर देखने लगी.मेरा मन हो रहा था सभी दुकानों के अंदर जाकर एक-एक चीज हाथ में उठाकर देखूं.

कंदील की रौशनी से जगमग था गांव

मगर आदर्श ने इस पर रोक लगाया यह कहकर कि‍ पुरी पहुंचते बहुत रात हो जाएगी और हमने होटल भी बुक नहीं कि‍या है.मन मसोसकर उस सपनों के गांव से मैं बाहर निकलते हुए मुड़-मुड़कर देखती गई, आदर्श के इस आश्‍वासन पर कि‍ लौटते समय मैं जि‍तनी देर चाहूं, यहां रूक सकती हूं. मुझे दीवाली और कंदील की रौशनी ऐसे भी बहुत पसंद है और पि‍पली में उस रात का देखा दृश्‍य तो मेरी आंखों में जैसे फ्रीज हो गया था.लौटते समय मैं वहां रूककर इतने कंदील, वाल हैंगि‍ग, बेडशीट, बेडकवर, छतरी आदि‍ इतना कुछ खरीद लि‍या कि‍ आदर्श बरसों तक मेरे इस पागलपन का जि‍क्र करते रहे सबसे. उसके बाद भी मैं दो बार पुरी गई.मगर एक बार काफी रात हो गई थी और दूसरी बार हमें वो रंगीन गांव मि‍ला ही नहीं.पता चला कि‍ फ्लाईओवर और रिंग रोड बनने के कारण वह गांव कहीं नीचे रह गया और हमलोग बाईपास से सीधे नि‍कल जाते हैं.

जगन्‍नाथ यात्रा की छतरियां बनाने का होता है काम

पि‍पली गांव में पहले जगन्‍नाथ यात्रा में प्रयुक्‍त छतरि‍यों को बनाने का काम कि‍या जाता था जि‍समें एप्‍लि‍क और पैचवर्क का काम होता था, जि‍से राजघराना द्वारा पसंद कि‍या जाता था.बाद में यह कला एप्‍लि‍क वर्क बैग, चादर सहि‍त कई चीजों पर की जाने लगी. इस बार मैंने ठान लि‍या कि‍ जैसे भी हो, पि‍पली जाकर रहूंगी.मगर इस बार भी भुवनेश्‍वर पहुंचते रात हो गई थी.अगला दि‍न समुद्र में नहाते और जगन्‍नाथ दर्शन में नि‍कल गया.दो दि‍न बाद वापसी में फि‍र वही हड़बड़ी होती और मुझे इस बार पि‍पली जाना ही था.इसलि‍ए अगले दि‍न दोपहर बाद पुरी से वापस भुवनेश्‍वर रोड पकड़कर पि‍पली के लि‍ए नि‍कले जो करीब वहां से 36 किलोमीटर की दूरी पर है. हालांकि‍ जानने वालों ने कहा कि‍ बेकार सड़क नापोगी, कल तो उसी रास्‍ते लौटना है, चली जाना.

Undefined
Travelogue : एप्‍लि‍क और पैचवर्क आर्ट के लिए जाना जाता है ओडिशा का पि‍पली गांव, घूम कर आये क्या? 5
व्‍यवसाय पर असर पड़ा

मगर कहने वाले क्‍या जाने कि‍ मेरे अंदर पि‍पली को लेकर कि‍तना ओबसेशन है.कोई कहे कि‍ यह बचपन का प्‍यार है, तो भी गलत नहीं होगा.लोगों को इंसान से प्‍यार होता है, मुझे गांव और दृश्‍यों से प्‍यार है.मैं माइलस्‍टोन देखती जा रही थी मगर कहीं दि‍ल में यह घबराहट भी थी कि‍ कहीं वह जगह गुम न हो गई हो क्‍योंकि‍ दसेक साल तो ही गये थे मुझे गये.उस पर दो सालों से कोरोना ने सब चौपट कर रखा है.उस पर गांव कहीं नीचे रह गया.अब रास्‍ते से गुजरने वाले वहां ठहरकर खरीदारी नहीं करते होंगे, कहीं इससे कहीं न कहीं उनके व्‍यवसाय पर असर पड़ा होगा.

पिपली जाने के लिए मन व्यग्र था

पहुंचते-पहुंचते चार बज ही गये.मौसम खराब हो गया था.साइक्‍लोन ‘जवाद’ उसी शाम या अगले दि‍न पुरी के समुद्र तट से टकराने वाला था.बूंदा-बांदी दोपहर से ही शुरू थी.मौसम घुटा सा था.सरकारी आदेश था कि‍ शाम चार बजे तक समुद्र तट खाली करा दि‍या जाए.अगले दो दि‍न सारी दुकानों को बंद करने के आदेश नि‍कल गया था. ऐसे में जरूरी था कि‍ मैं आज ही पि‍पली हो आऊं, कल कुछ देखने को नहीं मि‍लेगा.

मौसम बना परेशानी का सबब

खैर, पूछते हुए पि‍पली गांव तक तो पहुंच गये मगर लग रहा था कि‍ शायद नि‍राशा हाथ आए क्‍योंकि‍ हमें कहीं वह जगह दि‍ख ही नहीं रहा था.एक मोड़ पर आने के बाद लगा कि‍ शायद हमें लौटना पड़े, क्‍योंकि‍ बारि‍श तेज हो रही थी और हवाएं तेज चलने की चेतावनी दी जा रही थी.आखिरी उम्‍मीद की तरह थोड़ा और आगे बढ़े तो…..

कारीगर व्यापार बदल रहे

दि‍ख गयी पि‍पली गांव में सड़क कि‍नारे की दुकानें जि‍नके आगे कंदील सजा था.शाम ढलने लगी थी और इक्‍के-दुक्‍के दुकानों की कंदीलों से रौशनी फूट रही थी.लगा सि‍कुड़ गई है दुकानों की कतार.लोग अपना व्‍यापार बदल रहे हैं शायद.पहले लगातार एप्‍लि‍क वर्क की ही दुकानें दि‍खती थीं, अब बीच-बीच में और भी दुकानें खुल गई है.

कोरोना ने कारोबार प्रभावित किया

एक दुकान के अंदर पहुंचे. दुकानदार से हालत पूछने पर लगा बहुत दुखी हैं वो लोग.बताया कि‍ अब कोई कारीगर काम पर नहीं रख रहे वो लोग. घरवाले ही सब मि‍लकर बनाते हैं. कोरोना में खाने के लि‍ए पैसे नहीं है तो करीगरों को कहां से दि‍या जाएगा. टूरि‍स्‍ट भी नहीं है मार्केट में. जो लोग आते हैं, वह बाईपास से सीधे पुरी चले जाते हैं. इससे व्‍यापार प्रभावि‍त हो रहा है.एक रास्‍ता कटकर गांव तक आता है, पर कहां जान पाते हैं सब लोग. इन दो सालों में बहुत बर्बादी हुई. कई कपड़े चूहे काटकर बर्बाद कर दि‍ए.

Undefined
Travelogue : एप्‍लि‍क और पैचवर्क आर्ट के लिए जाना जाता है ओडिशा का पि‍पली गांव, घूम कर आये क्या? 6
कपड़े के टुकड़े पर धार्मिक और जनजातीय पट्टचि‍त्र

मैनें जल्‍दी-जल्‍दी में सारी चीजें देख डालीं. कंदील , हैंडबैग, पर्स, दीवारों में लगाने के लटकन , टेबलक्‍लाथ, कुशन कवर, तकि‍या कवर, लैंपशेड और आकर्षक हस्‍तशि‍ल्‍प कपड़े के टुकड़े पर कि‍ये धार्मिक और जनजातीय पट्टचि‍त्र हैं.यह ताड़ के पत्‍ते की सतह को उकेरकर बनाया जाता है.सब कुछ उपलब्‍ध था वहां.वैसे पट्टचि‍त्र के लि‍ए रघुराजपुर गांव ज्‍यादा प्रसि‍द्ध है, जो पुरी के पास ही है.वह भी देखना था मुझे मगर साइक्‍लोन की आहट ने सब कार्यक्रम बदलवा दि‍या.

पि‍पली जरूर जायें, ताकि जिंदा रहे कला

तो यहीं से मैंने लगभग सारी चीजें खरीद लीं.बेशक खर्च ज्‍यादा ही हो गया मगर अनुभव है कि‍ यहां खरीदे बेडशीट और बेडकवर लगातार उपयोग के बाद भी बरसों चल जाते हैं.इसलि‍ए मन की साध पूरी कर ली, खदीददारी भी.हां, दुकानकार इतना खुश हुआ कि‍ तोहफे में बि‍ना कहे एक बड़ा बैग गि‍फ्ट कर दि‍या. अगर कोई टूरि‍स्‍ट बाईरोड जाएं तो उनसे मेरा आग्रह है कि‍ एक बार पि‍पली जरूर होते हुए जाएं, बरसों पुरानी कला को जिंदा रखने के लि‍ए.

-रश्मि शर्मा-

(साहित्यकार)

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें