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History: मालाबार, मैसूर और दो सुल्तानों की कहानी

'मालाबार, मैसूर और दो सुल्तानों की कहानी' में इतिहास के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन करते हुए इतिहास को निष्पक्ष और संतुलित तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है. पुस्तक की लेखिका पुष्पा कुरुप एक आईटी पेशेवर, इतिहास प्रेमी और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं. पुस्तक में उन लोगों की मौखिक कथाएं भी शामिल हैं जिनके जीवन पर सुल्तानों का प्रभाव पड़ा था. यह पुस्तक इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो इतिहास के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करती है.

History:मालाबार, मैसूर और दो सुल्तानों की कहानी’ में इतिहास के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन करते हुए इतिहास को निष्पक्ष और संतुलित तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है. पुस्तक की लेखिका पुष्पा कुरुप एक आईटी पेशेवर, इतिहास प्रेमी और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं. पुस्तक में उन लोगों की मौखिक कथाएं भी शामिल हैं जिनके जीवन पर सुल्तानों का प्रभाव पड़ा था. यह पुस्तक इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो इतिहास के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करती है. 

“मालाबार, मैसूर और दो सुल्तानों की कहानी” रूपी यह पुस्तक मालाबार और मैसूर के क्षेत्रों के बीच के संबंध और दो सुल्तानों, हैदर अली और टीपू सुल्तान के जीवन और शासन के बारे में बताती है. भारत का ‘स्कॉटलैंड’ कहे जाने वाले कूर्ग के उन लोगों की मौखिक कहानियां भी प्रस्तुत करती है जिनके परिवार मैसूरियों के आगमन से प्रभावित थे. हैदर अली ने 18वीं सदी के मध्य में वोडेयार वंश से मैसूर राज्य को हथिया लिया और दो दशकों तक अशांत समय में अपनी सीमाओं का विस्तार किया तथा अंग्रेजों से युद्ध करता रहा.

उसके पुत्र टीपू सुल्तान का शासनकाल 16 वर्षों तक चला, जो काफी उथल-पुथल भरा था, और अंततः वह श्रीरंगपट्टनम में चौथे एंग्लो-मैसूर युद्ध के अंत में मारा गया. इसके बाद अंग्रेजों ने राज्य को एक नाबालिग वोडेयार उत्तराधिकारी को लौटा दिया. इस प्रकार मैसूर के सुल्तानों का वंश हैदर अली से शुरू हुआ और टीपू सुल्तान पर समाप्त हो गया.  

पिता-पुत्र की जोड़ी ने भय और दुश्मनी फैलाई


पिता-पुत्र की इस जोड़ी ने दक्षिण भारत के अपने सभी पड़ोसियों में भय और दुश्मनी फैला दी थी. उन्होंने मराठों से कई युद्ध किए. मालाबार, मैंगलोर और कूर्ग उनके शासन काल में काफी पीड़ित रहे. उन्होंने दिल्ली के मुगल सम्राट की उपेक्षा की और अपने मुस्लिम पड़ोसियों को भी दुश्मन बना लिया. हैदराबाद के निज़ाम और अर्काट के नवाब ने अंग्रेजों का साथ देने का फैसला किया. 

लोकप्रिय धारणा के विपरीत, सुल्तानों ने उपनिवेशवादी शासन का विरोध नहीं किया. वास्तव में, उन्होंने फ्रांसीसियों से मित्रता की और टीपू ने तो नेपोलियन बोनापार्ट को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित भी किया था. उनके शासनकाल की भयावह घटनाओं को उनके प्रशंसक अक्सर नकारते हैं, लेकिन समकालीन इतिहासकारों और बाद के लेखकों ने भारतीय और विदेशी भाषाओं में उनके काले कारनामों का उल्लेख किया है. 

भयानक यादों को मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया

लेखक पुष्पा कुरुप ने लिखा है कि टीपू सुल्तान के पतन के दो शताब्दियों के बाद भी, कूर्ग के कोडवों ने पहाड़ी इलाकों पर कब्जा करने के उनके क्रूर प्रयास की यादों को संरक्षित रखा है. मैसूर के सुल्तान मालाबार तट और अरब सागर तक बेरोकटोक पहुंच चाहते थे. कुर्ग का पहाड़ी इलाका उनके रास्ते में खड़ा था, जहां क्रूर कोडवा योद्धा रहते थे. टीपू को इससे बहुत परेशानी थी.टीपू सुल्तान कोडावारों को ऐसा सबक सिखाना चाहते थे, जिसे वह सदियों तक न भूल पाये. ऐसा टीपू ने किया भी. भयानक नरसंहार के रूप में ऐसी पीड़ादायक यादें वह छोड़ने में सफल रहे, जिसे सुनकर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कोडवाओं ने उन भयानक यादों को संभाल कर रखा और उन्हें मौखिक रूप से पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाया.

कुर्ग के लोग उस अत्याचार को भूले नहीं है

जब कर्नाटक ने 21वीं सदी की शुरुआत में टीपू जयंती समारोह की घोषणा की, तो कोड़वाओं ने  इसके खिलाफ असहमति के स्वर व्यक्त करते हुए इस आयोजन का तीव्र विरोध किया. इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मैसूर के सुल्तानों के पतन के बाद से दो महत्वपूर्ण शताब्दियाँ बीत चुकी है, फिर भी कूर्ग के लोग इसे भूले नहीं है. पुस्तक में इतिहास के विभिन्न पहलुओं का विस्तृत वर्णन किया गया है. जिसमें इतिहास को निष्पक्ष और संतुलित तरीके से प्रस्तुत करने की कोशिश की गयी है साथ ही उन लोगों की मौखिक कथाएं शामिल हैं जिनके जीवन पर सुल्तानों का प्रभाव पड़ा था. यह पुस्तक इतिहास प्रेमियों और शोधकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संसाधन है, जो इतिहास के विभिन्न पहलुओं को प्रस्तुत करती है. 

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