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World’s Indigenous Peoples day : मृत्यु के बाद भी आदिवासी अपने पूर्वजों को रखते हैं साथ, अर्पित करते हैं प्रतिदिन भोजन

World Tribal Day: आत्मा अमर है, इसलिए हमारे पूर्वज हमें छोड़कर नहीं जाते, बल्कि सिर्फ उनका शरीर नष्ट होता है. इसी मान्यता के साथ आदिवासी समाज जीता है और अपने पूर्वजों को प्रतिदिन भोजन अर्पित करता है और उनसे आशीर्वाद प्राप्त कर उन्हें धन्यवाद देता है. यह परंपरा झारखंड के मुंडा आदिवासी सहित देश की कई जनजातियों में मौजूद है.

World Tribal Day : आदिवासी उन लोगों को कहा जाता है जो किसी क्षेत्र के मूल निवासी या सबसे पहले से रहने वाले लोग हैं. भारतीय संविधान में इन लोगों की भाषा, संस्कृति और पहचान को बनाए रखने के कई प्रावधान किए गए हैं. आदिवासी समाज भी यह चाहता है कि उसे अपनी भाषा, संस्कृति और व्यवहारों के साथ जीने दिया जाए. भारत में कुल 705 जनजातियां (2011 की जनगणना के अनुसार) निवास करती हैं, इनके रीति-रिवाज बहुत ही अनोखे है. आदिवासी अपने पूर्वजों को बहुत महत्व देते हैं, यहां तक की मृत्य के बाद भी वे अपने पूर्वजों को खुद से अलग नहीं करते हैं और उन्हें अपने घर में स्थान देते हैं और प्रतिदिन या फिर विशेष अवसरों पर भोजन की व्यवस्था भी करते हैं.

पूर्वजों को भोजन अर्पित करने से दूर होते हैं संकट

आदिवासी समाज यह मानता है कि पूर्वजों की पूजा और उन्हें भोजन अर्पित करने से परिवार पर से संकट दूर होता है और खुशहाली आती है. इसी वजह से आदिवासियों में पूर्वजों को भोजन अर्पित करने की परंपरा है. झारखंड के कई जनजाति समाज में यह परंपरा है कि जब वे भोजन के लिए बैठते हैं, तो अपनी थाली में से कुछ दाने निकालकर उसे अपने पूर्वजों को अर्पित करते हैं. ऐसा करने के पीछे उनकी मान्यता यह है कि पूर्वज हमेशा हमारे साथ रहते हैं और उनकी कृपा से ही उनके परिजनों को भोजन मिल रहा है और उनके जंगल और जमीन सुरक्षित हैं. आदिवासी बुद्धिजीवी वाल्टर कंडुलना बताते हैं कि मैं मुंडा समाज से आता हूं, हमारे यहां पूर्वजों का बहुत महत्व है और झारखंड के प्रत्येक आदिवासी अपने पूर्वजों को बहुत महत्व देता है. हमारे यहां यह परंपरा है कि प्रत्येक भोजन के वक्त परोसे गए भोजन में से कुछ अंश अपने पूर्वजों के लिए निकालें. इसके पीछे का उद्देश्य है पूर्वजों को धन्यवाद देना. विशेष अवसरों पर तो हम पूर्वजों को भोजन अर्पित करते ही हैं, प्रतिदिन भी करते हैं. हालांकि बदलते दौर में यह परंपराएं कम हुईं हैं, लेकिन आदिवासियों का अपने पूर्वजों के प्रति सम्मान कम नहीं हुआ है.

मृत्यु के बाद भी आदिवासी अपने पूर्वजों को रखते हैं साथ

आदिवासी समाज में मृत्यु के बाद स्वर्ग-नर्क की कल्पना नहीं हैं. वे यह नहीं मानते हैं कि व्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग या नर्क जाता है. आदिवासी समाज मृत्यु के बाद अपने परिजनों को वापस अपने घर ले आते हैं, जिसे छाया बुलाने की परंपरा कहा जाता है. इसमें आदिवासी विधि-विधान के साथ अपने प्रियजन की आत्मा को वापस घर बुलाते हैं. सुखराम पाहन बताते हैं कि हमारे इलाके छाया बुलाने की परंपरा उस दिन निभाई जाती है जिस दिन व्यक्ति की मौत हुई है. इसके लिए मृतक के परिजन और गांव वाले उस जगह पर जाते हैं, जहां मृतक के लिए घर बनाया जाता है. यह वह स्थान होता है, जहां शवयात्रा के दौरान शव को पहली बार रखा जाता है. उस स्थान पर 3 केंदू की डाली और पुआल के जरिए मृतक के लिए घर बनाया जाता है. वहां एक घड़ा रखा जाता है. फिर वहां आग लगा दी जाती है और मृत व्यक्ति को बुलाया जाता है. उसके बाद कोंडा यानी पुरखों के स्थान में आगे की परंपरा की जाती है और आत्मा को घर वापस बुला लिया जाता है. हालांकि यह परंपरा मृत्यु के तीसरे और सातवें दिन भी की जाती है. हर आदिवासी के घर में पूर्वजों के लिए एक स्थान निर्धारित होता है, जिसे‘अदिंङ’ या ‘कोंडा’ कहा जाता है जहां पूजा और अन्य विधियां की जाती हैं.

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पूर्वजों को किस तरह का भोजन अर्पित करते हैं आदिवासी

आदिवासी प्रतिदिन के भोजन में से ही अपने पूर्वजों को अर्पित करते हैं. उसमें चावल, हंडिया, मुर्गे का मांस और पानी शामिल होता है. इसके अलावा भी जो घर में उपलब्ध सामग्री होती है, उसे पूर्वजों के नाम पर अर्पित किया जाता है. विशेष अवसरों पर पकवान भी अर्पित किए जाते हैं. पूर्वजों को भोजन देने के बाद उनका शु्क्रिया अदा किया जाता है.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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