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Tulbul Navigation Project : जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट किया है, जिसमें उन्होंने तुलबुल नेविगेशन बैराज को फिर से शुरू करने की बात की है और यह कहा है कि इससे जम्मू-कश्मीर के लोगों को फायदा होगा. उमर अब्दुल्ला के इस पोस्ट के बाद जम्मू-कश्मीर में राजनीति शुरू हो गई है और विरोधी दल की नेता महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि तुलबुल परियोजना को फिर से शुरू करने की बात करके मुख्यमंत्री लोगों की भावनाओं को भड़काना चाहते हैं, वह भी तब जबकि दोनों देश युद्ध के कगार से लौटे हैं.दोनों नेताओं की बयानबाजी के बाद विवाद बढ़ गया है. ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच तनाव जारी है और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में यह स्पष्ट कर दिया है कि खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं. पीएम मोदी के इस बयान का यह स्पष्ट अर्थ है कि सिंधु जल समझौता तभी कारगर होगा, जब पाकिस्तान आतंकवाद को समाप्त करेगा. अब जबकि तुलबुल परियोजना को दोबारा शुरू करने की बात हो रही है, आइए समझते हैं क्या है यह परियोजना और इससे भारत-पाकिस्तान में किसे होगा क्या फायदा?
क्या है तुलबुल परियोजना?
तुलबुल परियोजना झेलम नदी पर स्थित है. इसे वुलर झील पर बनाया जा रहा है, यह एक नेविगेशन लॉक-कम-कंट्रोल स्ट्रक्चर है. इसका उद्देश्य झेलम नदी में जल प्रवाह को नियंत्रित करना और सर्दियों के दौरान शिपिंग को संभव बनाना है. दरअसल तुलबुल एक डैम है, जिसके निर्माण की शुरुआत 1984 में हुई थी. इसका उद्देश्य उत्तरी कश्मीर से दक्षिशी कश्मीर तक एक 100 किलोमीटर लंबा वाटर कॉरिडोर तैयार करना था. साथ ही खेतों में सिंचाई की व्यवस्था और बिजली का निर्माण करना भी था. लेकिन पाकिस्तान ने तुलबुल परियोजना पर आपत्ति जताई और इसे सिंधु जल समझौता के खिलाफ बताया, जिसके बाद यह परियोजना रोक दी गई.
पाकिस्तान ने क्यों किया था तुलबुल परियोजना का विरोध

पाकिस्तान ने तुलबुल परियोजना का विरोध इसलिए किया क्योंकि अगर यह बांध बन जाता, तो झेलम नदी का प्रवाह पाकिस्तान में कम हो जाता. सिंधु जल समझौते के तहत छह नदियां आती हैं, इनमें से चिनाब, झेलम और सिंधु नदी के पानी पर पाकिस्तान को पूर्ण अधिकार दिया गया है, जबकि भारत को बहुत सीमित अधिकार दिए गए हैं, ताकि नदियों के प्रवाह पर कोई असर ना पड़े. तुलबुल परियोजना से पाकिस्तान का हित बाधित हो रहा था इसलिए उसने इस परियोजना का विरोध किया, जबकि इसमें भारत का हित शामिल था.
तुलबुल परियोजना शुरू हुई, तो क्या होगा असर
तुलबुल परियोजना को अगर शुरू कर दिया जाए, तो यह कश्मीरियों के लिए फायदेमंद साबित होगी, क्योंकि तब कश्मीरी झेलम नदी के पानी का इस्तेमाल पूर्ण रूप से कर पाएंगे. अभी झेलम नदी के पानी का लाभ भारत को नहीं मिल पाता है. झेलम नदी भारत (वेरिनाग झरना, जम्मू-कश्मीर) से निकलती है और पाकिस्तान में बहती है. अभी पाकिस्तान इस नदी के पानी का पूरा इस्तेमाल करता है. 1960 में हुई सिंधु जल समझौते को भारत ने कभी नहीं तोड़ा था, लेकिन 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में 26 निर्दोषों की हत्या के बाद सरकार ने सिंधु जल संधि को स्थगित कर दिया है, जिसके बाद से तुलबुल परियोजना को पुनर्जीवित करने की बात उठ रही है. जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री इस परियोजना के समर्थन में हैं, लेकिन पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती इसका विरोध कर रही हैं.
सिंधु जल संधि में क्या है प्रावधान
सिंधु जल संधि के तहत भारत और पाकिस्तान में बहने वाली छह नदियों के पानी का बंटवारा किया गया है. दरअसल आजादी के बाद इन नदियों के जल को लेकर दोनों देशों के बीच विवाद छिड़ गया था, जिसके बाद 1960 में सिंध जल समझौता हुआ. सिंधु जल संधि के तहत छह नदियां आती हैं.
सिंधु नदी प्रणाली में छह नदियां – झेलम,चिनाब,रावी,ब्यास,सतलुज,सिंधु शामिल हैं. इनमें से सिंधु और सतलुज लद्दाख से निकलती और बाकी 4 नदियां भारत से निकलती हैं. लेकिन ये सभी नदियां पाकिस्तान की ओर बहती हैं. सिंधु जल संधि के बाद ब्यास, रावी, सतलुज पर भारत का पूर्ण अधिकार है, जबकि चिनाब, झेलम और सिंधु पर पाकिस्तान का अधिकार है, भारत इन तीन नदियों के पानी का आंशिक इस्तेमाल करता है, जिससे नदी के बहाव पर कोई असर ना पड़े. लेकिन अब भारत ने समझौते को स्थगित कर दिया है, इसलिए संभव है कि तुलबुल परियोजना जो 1987 से स्थगित है उसे फिर से शुरू किया जा सकेगा.
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