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Salar Masood Ghazi: भारत पर आक्रांताओं की हमेशा से निगाह रही. महमूद गजनवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण करके उसे लूट और तहस-नहस किया. तो मुगल शासकों का इतिहास भी इससे कुछ जुदा नहीं रहा है. इन दिनों मुगल शासक औरंगजेब और उसकी कब्र को लेकर विवाद चल रहा है. लेकिन इस बीच एक और खूंखार आक्रांता सैयद सालार महमूद गाजी को लेकर भी विवाद शुरू हो गया है. यूपी के संभल (Sambhal) जिले के नेजा में गाजी के नाम पर होने वाले मेला को जिला प्रशासन ने अनुमति देने से मनाकर दिया है. इसके बाद से लगातार इस मुद्दे पर सियासत जारी है.
कौन था सैयद सालार मसूद गाजी
सैयद सालारा मसूद गाजी का जन्म 1014 में अजमेर में हुआ था. वो सोमनाथ मंदिर को लूटने वाले महमूद गजनवी (Mahmud Ghazni Somnath) का भांजा था और बाद में उसका सेनापति भी बना. महमूद गजनवी की तरह की सालार मसूद गाजी भी मंदिरों को लूटने, हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराने और कत्लेआम करने के लिए जाना जाता था. सालार मसूद गाजी ने 1026 में सोमनाथ मंदिर काठियावाड़ में हमला किया. यहां उसने कत्लेआम मचाया. 1030 में वो यूपी के बहराइच पहुंचा. यहां उसे श्रावस्ती के महाराजा सुहेलदेव राजभर (Maharaja Suheldev Rajbhar) ने कड़ी टक्कर दी. कई राजाओं की संयुक्त सेना ने सालार मसूद गाजी के पांव उखाड़ दिए. इस युद्ध उसकी मौत भी हो गई. इसके बाद उसे बहराइच में ही दफनाया दिया गया. सालार की मौत के 200 साल बाद मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने सालार मसूद गाजी की कब्र को दरगाह के रूप में विकसित करा दिया.
संभल में गाजी के नाम पर लगता है मेला
सैयद सालार मसूद गाजी के नाम पर यूपी के संभल जिले के नेजा में मेला लगता है. होली त्यौहार के बाद यह मेला लगाया जाता है. इस वर्ष 25, 26, 27 मार्च को मेला लगना था. इसके लिए जब मेला कमेटी स्थानीय पुलिस के पास अनुमति के लिए पहुंची तो मसूद गाजी को आक्रांता बताते हुए मेला लगाने की अनुमति देने से मनाकर दिया गया. यही नहीं मेला शुरू होने से पहले 18 मार्च को झंडा लगाने की अनुमति नहीं दी गई. स्थानीय पुलिस ने वहां बने गड्ढे को भी पाट दिया. जिसको लेकर लगातार विवाद जारी है.
बहराइच में भी मेला लगाने की परंपरा
यूपी के बहराइच जिले में मसूद गाजी (Salar Masood Ghazi) की कब्र पर भी मेला लगने की परंपरा है. गाजी की मौत के 200 साल बाद इस कब्र को मुगल शासक नसीरुद्दीन महमूद ने दरगाह की तरह विकसित किया. बहराइच में इसी दरगाह पर जेठ के महीने में जेठा मेला लगाया जाता है. मसूद गाजी की ये मजार बाले मियां की मजार के रूप में प्रचिलित है. अब इस मेला को निरस्त करने के लिए भी बहराइच जिला प्रशासन को ज्ञापन देने की तैयारी है. जिससे संभल की तरह की यहां भी मेला को अनुमति न दी जाए.
मसूद गाजी की हार का जश्न ‘विजयोत्सव’
बहराइच में जिस जगह पर महाराजा सुहेलदेव राजभर (Maharaja Suheldev Rajbhar) ने मसूद गाजी को युद्ध में हराया था. वहां हर साल विजयोत्सव मनाया जाता है. ये जगह चित्तौरा झील के नाम से जानी जाती है. यहां कई संगठन मिलकर विजयोत्सव का आयोजन करते हैं. इतिहासकारों के अनुसार इसी जगह पहले बालार्क ऋषि का आश्रम था. जो कि महाराजा सुहेलदेव के गुरू थे. यहां एक सूर्यकुंड भी हुआ करता था.
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