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नेपो किड्‌स, सोशल मीडिया और लापरवाह सरकारों ने gen z को बनाया गुस्सैल, पूरी दुनिया के लिए सबक

Nepal Protests : युवा गुस्से में है और अपनी ही सरकार को पद से हटा रहे है, इतना ही नहीं उनका गुस्सा इतना तीव्र है कि वे संसद तक को आग के हवाले कर रहे हैं और मंत्रियों की पिटाई और हत्या तक कर दे रहे हैं. ऐसे में बड़ा और पूरी दुनिया के सामने यह सवाल है कि आखिर युवा जनता इतने गुस्से में क्यों है? वो कौन से तत्व हैं, जो युवाओं को उकसा रहे हैं और सरकारें क्यों नहीं उनके मन को पढ़ पा रही है.

Nepal Protests : घटना 1. नेपाल में सरकार द्वारा सोशल मीडिया बैन किए जाने के विरोध में आठ सितंबर 2025 को युवा वर्ग (जेनरेशन जेड) सड़क पर उतरता है. उसका गुस्सा फूटता है, संसद, सु्प्रीम कोर्ट, प्रधानमंत्री आवास और अन्य सरकारी भवनों को आग के हवाले किया जाता है और दबाव में प्रधानमंत्री और कई मंत्रियों ने ना सिर्फ इस्तीफा दिया, बल्कि वे देश छोड़कर भी फरार हैं. जो जेन जेड के हत्थे चढ़ गए, उन्हें बुरी तरह मारा–पीटा गया.

घटना 2. बांग्लादेश में एक अगस्त 2024 से युवावर्ग सरकार की आरक्षण नीति को लेकर सड़क पर उतरते हैं. उनका गुस्सा फूटता है, हिंसा होती है और अंतत: प्रधानमंत्री शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भारत की शरण में आना पड़ता है.

घटना 3. श्रीलंका में मार्च 2022 को युवा जनता आर्थिक संकट का विरोध करते हुए सड़क पर उतरती है और जुलाई में आंदोलन इतना तीव्र हो जाता है कि राष्ट्रपति जनता राष्ट्रपति भवन को घेर लेती है और राष्ट्रपति को जान बचाकर भागना पड़ता है. 

ये तीन घटनाएं महज उदाहरण हैं यह बताने के लिए कि विश्व में जनता का मिजाज बदल गया है और वो किसी भी ऐसी सरकार और फैसले को स्वीकार नहीं करती है, जो उसके हितों की लगातार अनदेखी कर रहे हों. इन तीन उदाहरण में एक और बात काॅमन है और वह यह है कि इन आंदोलन के वाहक या प्रणेता युवा हैं, जिन्हें आजकल जेन जेड (gen z) कहा जाता है. आज का यह युवा वर्ग गुस्से में है और जब उनका गुस्सा सीमापार कर जाता है, तो वे बिना संकोच के सड़कों पर होते हैं. इंडोनेशिया में भी हाल में जनता करों के बोझ से नाराज होकर सड़क पर उतरी थी और हिंसक प्रदर्शन किया था.

जेन जेड (gen z) गुस्से में क्यों है?

Nepal-Protest
नेपाल में विरोध प्रदर्शन

युवा वर्ग किसी भी देश का भविष्य होते हैं, लेकिन आज के समय में विश्व की जो स्थिति है, उसमें युवा अपने भविष्य को लेकर निराश–हताश है. उसके पास रोजगार की समस्या है, सरकारें बेरोजगारी मिटाने के लिए कुछ नहीं कर रही हैं. आज के युवाओं की महत्वकांक्षाएं बहुत हैं, जो पूरी नहीं हो रही हैं. युवा जिस सोच के साथ सरकारों को वोट देकर जिता रहे हैं, वो सरकारें उनकी उम्मीदों पर खरी नहीं उतर रही है, जिसकी वजह से युवा वर्ग गुस्से में है.

साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि आज का युवा सूचनाओं से घिरा है. सोशल मीडिया के दौर में युवाओं की दोस्ती इंटरनेशनल हो गई है, वे अपने विचारों का आदान–प्रदान हजारों किलोमीटर दूर तक कर रहे हैं. सूचनाओं के केंद्र पर बैठा युवा वर्ग जब यह देखता है कि उसकी अनदेखी हो रही है, तो वह अपना गुस्सा दबा नहीं पाता है और वह भयंकर अंदाज में फूटता है. यही गुस्सा नेपाल, बांग्लादेश, और श्रीलंका में देखने को मिला है. उपभोक्तावाद (consumerism) के जाल में फंसा युवा जब यह देखता है कि उसकी लाइफ स्टाइल उस तरह की नहीं है, जैसे कि उसे उम्मीद है, तो फिर वह सरकार के खिलाफ गुस्से में आ जाता है.

जेएनयू के प्रोफेसर अमित सिंह ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहते हैं कि चुनाव में पार्टियां जो वादा जनता से युवाओं से करती है, सरकार बनने के बाद वो उसे पूरा नहीं करती है. इस वजह से युवाओं में असंतोष बढ़ता है. भ्रष्टाचार में लिप्त सरकारें, युवाओं की बेहतरी के लिए कुछ प्रयास नहीं करती हैं, जिसकी वजह से वे उन ताकतों की शरण में चले जाते हैं, जो उनकी मदद से सरकारें गिरा रहे हैं. नेपाल में या बांग्लादेश में जो कुछ हुआ, उसमें बेशक विदेशी शक्तियों का हाथ रहा है. अंतराष्ट्रीय राजनीति में कई ताकतवर देश अपने फायदे के लिए छोटे देशों में अपने मनमाफिक सरकार बनाने के लिए इस तरह की नीतियों का सहारा लेते हैं.

जेन जेड के आंदोलन में सोशल मीडिया की अहम भूमिका

सोशल मीडिया युवाओं का सबसे बड़ा हथियार बन गया है, जिसके जरिए वे अपना गुस्सा व्यक्त कर रहे हैं. आज का युवा सूचनाओं के मामले में इंटरनेशनल सिटिजन बन चुका है. वो अपने विचारों और महत्वाकांक्षाओं को इसके जरिए उजागर करता है. प्रो धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि युवा अब ग्लोबल हो चुके हैं. वे अखबार नहीं पढ़ते और ना ही किताबें पढ़ते हैं. उनके लिए सोशल मीडिया हैंडल ही उनकी दुनिया हैं. जहां से वे तमाम तरह की सूचनाओं को कंज्यूम करते हैं और उनके आधार पर अपनी विचारधारा बनाते हैं. इस वजह से उनकी महत्वकांक्षा और समझदारी दोनों में बड़ा बदलाव हो चुका है और यह स्थिति पूरे विश्व की है. 

नेपो किड्‌स (nepo kids) वर्सेस जेन जेड (gen z)

युवाओं के गुस्से की एक बड़ी वजह नेपो किड्‌स भी हैं. सोशल मीडिया के दौर में नेपो किड्‌स की जीवनशैली जेन जेड को उकसाती है. वे यह देखते हैं कि उनके वोट से जो लोग सरकार में आते हैं, वे अपने बच्चों को तो एक शानदार, ऐशो–आराम से भरी जिंदगी देते हैं, लेकिन आम युवा के लिए कुछ नहीं करते हैं. नेपाल में नेपो किड्‌स के ऐशो आराम की तस्वीरें सोशल मीडिया में खूब वायरल हुईं. इस सोच के बारे में बात करते हुए प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी करते हैं कि वे इस स्थिति में उनसे तुलना करने लगते हैं और उनका गुस्सा बढ़ता जाता है और वो इस लेबल तक पहुंच जाता है कि फिर देश में तख्तापलट जैसी स्थिति बन जाती है. प्रोफेसर अमित सिंह भी इस बात से सहमत है कि नेपो किड्‌स की ऐशो आराम से भरी जिंदगी जेन जेड को परेशान करती है.

सरकार और मीडिया की भूमिका

विगत कुछ वर्षों में जिस तरह दक्षिश एशियाई देशों में जनता का गुस्सा सरकारों के प्रति बढ़ा है उसे पढ़ने में वहां की सरकारें और मीडिया दोनों ही एक तरह से विफल रही हैं. प्रो धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि मीडिया की भूमिका आज इस तरह की होती जा रही है जैसे सबकुछ ठीक चल रहा है, जबकि ऐसा होता नहीं है. नेपाल में युवाओं का जो गुस्सा फूटा वह सिर्फ सोशल मीडिया को बैन करने की वजह से नहीं था, इसके पीछे जो शक्तियां काम कर रही थीं, उसके बारे में ना तो मीडिया में चर्चा हुई और ना ही सरकारों ने इस ओर ध्यान दिया. बेरोजगारी और गरीबी जैसी समस्याओं पर सरकारें ध्यान नहीं देती हैं, जिसकी वजह से आम जनता परेशान है और आक्रोशित है.

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Rajneesh Anand
Rajneesh Anand
इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक. प्रिंट एवं डिजिटल मीडिया में 20 वर्षों से अधिक का अनुभव. राजनीति,सामाजिक मुद्दे, इतिहास, खेल और महिला संबंधी विषयों पर गहन लेखन किया है. तथ्यपरक रिपोर्टिंग और विश्लेषणात्मक लेखन में रुचि. IM4Change, झारखंड सरकार तथा सेव द चिल्ड्रन के फेलो के रूप में कार्य किया है. पत्रकारिता के प्रति जुनून है.

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