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Bihar Election Result : कौन बनेगा बिहार का अगला मुख्यमंत्री? क्या बिहार में बहार रहेगी और नीतीशे कुमार की सरकार दोबारा आएगी या फिर इस बार तेजस्वी का तेज दिखेगा और महागठबंधन की सरकार बनेगी? इस तरह के कई सवाल हैं, जो आम आदमी के मन में चल रहे हैं, क्योंकि आज 14 नवंबर को बिहार चुनाव का परिणाम घोषित होना है. परिणाम से पहले कई एजेंसियों के एग्जिट पोल सामने आए हैं, जो यह बता रहे हैं कि बिहार में एनडीए की सरकार पूर्ण बहुमत से बन रही है. वहीं राजद के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी यादव ने एग्जिट पोल के नतीजों को पूरी तरह खारिज कर दिया है और यह दावा किया है कि महागठबंधन 160 सीटें लेकर आ रहा है.
किसका पलड़ा है भारी?
एग्जिट पोल के नीतीज एनडीए के पक्ष में जरूर दिख रहे हैं, लेकिन महागठबंधन इन नतीजों को खारिज कर रहा है. संभव है कि एग्जिट पोल के नतीजे बहुत सटीक नहीं होते हैं, लेकिन बिहार में एनडीए का पलड़ा इस चुनाव में भारी दिख रहा है, तो इसके पीछे कई ठोस वजह है. बिहार में जाति आधारित राजनीति होती है और इसी समीकरण को साधने के लिए राजद अपने कैडर वोटर यादव और मुसलमानों पर भरोसा करता है. टिकट बंटवारे में यह बात स्पष्ट रूप से दिखाई देती है. बिहार में यादव वोटर्स की आबादी लगभग 15% है जबकि मुसलमान लगभग 18% हैं. इनका अगर 100 प्रतिशत वोट भी राजद को मिल जाता है तो वो 33% ही होगा. वहीं एनडीए के साथ अति पिछड़ा, दलित, ओबीसी में कुर्मी, सवर्ण जैसी जातियां हैं. इस लिहाज से अगर जातीय समीकरण पर गौर करें तो निश्चत तौर पर NDA का पलड़ा भारी दिखता है.

एनडीए ने चुनाव प्रचार के दौरान जनता को बार-बार यह याद दिलाया है कि अगर नीतीश कुमार की सरकार नहीं रही, तो बिहार में 1990 के दशक के जंगलराज की वापसी होगी. जिन लोगों ने उस दौर को देखा है, वे अपहरण और हत्या के दौर को याद कर सिहर जाते हैं. बिहार में इस बार रिकाॅर्ड वोटिंग हुई हैं, इस वजह से भी यह माना जा रहा है कि जदयू और बीजेपी गठबंधन अपने वोटर्स को मतदान केंद्र तक ले आई है. ऐसे में परिणाम एनडीए के पक्ष में जा सकता है.
प्रभात खबर के पाॅलिटिकल एडिटर मिथिलेश कुमार बताते हैं कि आबादी के हिसाब से अगर जातीयों का विश्लेषण किया जाए तो यह प्रतीत होता है कि एनडीए का पलड़ा भारी है, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि महागठबंधन ने एनडीए के वोट बैंक में सेंध लगाने की पूरी कोशिश की है. लालू यादव ने कुशवाहा जाति के लोगों को लोकसभा चुनाव में टिकट दिया, जिसकी वजह से उन्हें कुशवाहा जाति के लोगों का वोट मिल सकता है. वहीं उन्होंने वीआईपी पार्टी को साथ रखा है, जो मल्लाह जाति की राजनीति करती है. मल्लाह जाति के लोग ईबीसी श्रेणी में आते हैं और अगर ये लोग महागठबंधन के साथ आते हैं, तो परिणाम को प्रभावित कर सकते हैं.
मिथिलेश कुमार यह भी कहते हैं कि एनडीए ने जंगलराज को खूब प्रचारित किया और जब महागठबंधन ने तेजस्वी यादव को सीएम कैंडिडेट बना दिया, तो आम जनता के मन में यह बात जरूर आई है कि तेजस्वी अगर मुख्यमंत्री बने तो जंगलराज की वापसी होगी, क्योंकि वे लालू यादव के बेटे हैं. लालू यादव ने यादव वोट को एकजुट रखने के लिए तेजस्वी को सीएम कैंडिडेट तो बना दिया, लेकिन इसका विपरीत प्रभाव भी दिख सकता है. यही वजह है कि कांग्रेस यह नहीं चाहती थी कि चुनाव से पहले सीएम फेस की घोषणा हो.
महिला वोटर्स की क्या होगी भूमिका?
बिहार चुनाव 2025 में महिला वोटर्स की भूमिका बहुत अहम है. इसकी बड़ी वजह यह है कि देश के हर चुनाव की तरह बिहार चुनाव में भी महिला वोटर्स को साधने की कोशिश में एनडीए और महागठबंधन दोनों जुटा है. उनके खाते में नीतीश कुमार सरकार ने 10 हजार रुपए ट्रांसफर कर दिए हैं. यह राशि महिला को सशक्त बनाने और उन्हें रोजगार शुरू करने के लिए दी गई है. यह राशि पहली किस्त है, उन्हें दो लाख रुपए तक दिए जाएंगे. शराबबंदी के नाम पर नीतीश कुमार पहले ही महिलाओं का दिल जीत चुके हैं. सोशल सिक्योरिटी पेंशन की राशि को सरकार ने 400 से बढ़ाकर 1100 रुपए कर दिया है, इस वजह से भी महिलाओं का वोट नीतीश कुमार को मिलने की संभावना है.
हालांकि तेजस्वी यादव ने भी महिलाओं को माई-बहन मान योजना के तहत मासिक 2, 500 रुपए देने की घोषणा की है और यह कहा है कि अगर महागठबंधन की सरकार बनी तो 14 जनवरी को महिलाओं के खाते में 30 हजार रुपए ट्रांसफर किए जाएंगे. महिलाओं को अपनी ओर करने के लिए यह महागठबंधन की अच्छी कोशिश है, लेकिन एक्सपर्ट झारखंड का उदाहरण देकर बताते हैं कि यहां हेमंत सरकार ने मंईयां सम्मान योजना की राशि महिलाओं के खाते में चुनाव से पहले ही भिजवा दी जबकि बीजेपी ने वादा किया. फायदा किसे मिला यह सबको पता है, क्योंकि किसी चीज का वादा करना और उसे दे देना दोनों में फर्क होता है.
युवा इस बार किसके साथ?
बिहार चुनाव में इस बार युवाओं में नीतीश सरकार को लेकर काफी रोष है. उनका गुस्सा इस बात को लेकर है कि सरकार ने उनके रोजगार के लिए कुछ नहीं किया. सरकारी नौकरी की वेकेंसी नहीं निकाली. अगर युवाओं का गुस्सा वोट में बदला तो सरकार के लिए परेशानी हो सकती है. वहीं तेजस्वी यादव ने भरपूर कोशिश की है कि वे युवाओं को महागठबंधन से जोड़कर रखें. उन्होंने यह वादा भी किया है कि महागठबंधन की सरकार बनते ही वो हर परिवार में एक सरकारी नौकरी देंगे. अब यह देखना बहुत रोचक होगा कि युवा किसके पाले में जाते हैं.

