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जन धन योजना के 11 वर्ष , बैंकिंग से वंचित लोगों को मिली बैंक सेवाएं

11 years of Jan Dhan Yojana : प्रधानमंत्री जन धन योजना भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की आधारशिला के रूप में भी उभरा है. इसने भुगतान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाया है और लाखों लोगों को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ा है.

-वी अनंत नागेश्वरन, भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार-

11 years of Jan Dhan Yojana : वित्तीय समावेशन सतत विकास की एक अनिवार्य शर्त है. यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि वर्ष 2030 के लिए संयुक्त राष्ट्र के 17 सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) में से 7 इसे दुनिया भर में समावेशी विकास के लिए एक प्रमुख कारक के रूप में मानते हैं. वित्तीय समावेशन की दिशा में पहला कदम बैंकिंग सुविधा से वंचित लोगों को बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने से शुरू होता है क्योंकि बैंक खाता औपचारिक बैंकिंग प्रणाली के प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करता है. इसलिए वित्तीय समावेशन के लिए स्पष्ट और संरचित नीतिगत हस्तक्षेप की आवश्यकता है ताकि शुरू से ही इस सुविधा से वंचित लोगों तक बैंकिंग सेवाओं का विस्तार किया जा सके.

वंचित लोगों तक बैंकिंग सेवाओं का विस्तार

इस सिद्धांत को व्यवहार में लाने के लिए, लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री मोदी के पहले संबोधन में प्रधानमंत्री जन धन योजना (पीएमजेडीवाई) की घोषणा की गई, जिसे राष्ट्रीय वित्तीय समावेशन मिशन के अंतर्गत 28 अगस्त 2014 को औपचारिक रूप से शुरू किया गया. इस मिशन का विजन ‘मेरा खाता, भाग्य विधाता’ के नारे में समाहित था. इसका उद्देश्य गरीबों और लंबे समय से वंचित वर्ग के लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाना, औपचारिक बैंकिंग प्रणाली तक उनकी पहुंच को साकार कराना और यह सुनिश्चित करना था कि वे भारत की विकास गाथा के हितधारक और लाभार्थी बनें. जन धन खातों ने लाभार्थियों को न्यूनतम कागजी कार्रवाई और सरलीकृत केवाईसी/ई-केवाईसी प्रक्रियाओं के साथ जीरो-बैलेंस और शून्य-शुल्क वाले खाते खोलने की अनुमति दी.

इसके अंतर्गत रुपे डेबिट कार्ड पर 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर और 10,000 रुपए तक ओवरड्राफ्ट की सुविधा भी दी गई है. प्रधानमंत्री जन धन योजना ने अपनी शुरुआत के बाद से अभूतपूर्व सफलता हासिल की है. वर्ष 2024 की एक आर्थिक और राजनीतिक साप्ताहिक पत्रिका ने लिखा है कि ‘2014 और 2017 के बीच भारत में खाताधारकों की संख्या में 26 प्रतिशत की ऐतिहासिक वृद्धि दर दर्ज की गई, जिसका श्रेय दुनिया के सबसे बड़े वित्तीय समावेशन अभियान-पीएमजेडीवाई को दिया जा सकता है.

67 प्रतिशत जनधन खाते ग्रामीण क्षेत्रों में खोले गए

यह वैश्विक खाता वृद्धि (6.57) से लगभग चार गुना अधिक है और इसी अवधि के दौरान विकासशील देशों (7.27) की तुलना में तीन गुना अधिक है.’ 8 अगस्त 2025 तक, 56 करोड़ से अधिक जन धन खाते खोले जा चुके हैं जिनमें से लगभग 67 प्रतिशत ग्रामीण और अर्ध-शहरी केंद्रों में स्थित बैंक शाखाओं में हैं. इस योजना ने लैंगिक असमानताओं को भी स्पष्ट रूप से पाट दिया है: पीएमजेडीवाई के 55 प्रतिशत से अधिक खाते यानी 31 करोड़ से अधिक खाते महिलाओं के पास हैं. इसके अलावा, जन धन खाते सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में पंजीकरण के लिए महत्वपूर्ण माध्यम बन गए हैं. हाल के संसदीय आंकड़ों से पता चलता है कि प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (पीएमजेजेबीवाई) और प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (पीएमएसबीवाई) के तहत लगभग एक-तिहाई नामांकन पीएमजेडीवाई से जुड़े हैं.

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जन धन योजना ने लाखों लोगों को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ा

प्रधानमंत्री जन धन योजना भारत के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढांचे की आधारशिला के रूप में भी उभरा है. इसने भुगतान तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाया है और लाखों लोगों को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ा है. प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) की सफलता को आधार प्रदान करके, पीएमजेडीवाई ने पारदर्शिता को बढ़ाया है, कल्याणकारी वितरण में लीकेज को कम किया है और सरकारी योजनाओं में विश्वास को मजबूत किया है. आधार और मोबाइल कनेक्टिविटी के साथ, जन धन-आधार-मोबाइल (जेएएम) ट्रिनिटी पूरे भारत में डिजिटल भुगतान को व्यापक रूप से अपनाने में सहायक रही है. जन धन खातों और एकीकृत भुगतान इंटरफ़ेस (यूपीआई) के बीच तालमेल ने अनौपचारिक क्षेत्र के छोटे और सीमांत उद्यमियों को व्यवसाय करने के लिए औपचारिक वित्तीय चैनलों तक पहुंच प्रदान करके उन्हें सशक्त बनाया है. एनपीसीआई के हाल के आंकड़ों से पता चलता है कि लगभग आधे यूपीआई लेनदेन खाद्य और किराने के सामान की श्रेणियों में हैं जो यह दर्शाता है कि वित्तीय समावेशन और डिजिटल भुगतान ने मिलकर जमीनी स्तर पर दैनिक कारोबार के स्वरूप को ही बदल दिया है.

इसका प्रभाव वित्तीय पहुंच से कहीं आगे बढ़कर महत्वपूर्ण सकारात्मक बाह्य प्रभाव उत्पन्न कर रहा है. ‘ग्रामीण भारत में बैंकिंग, बचत और उपभोग सुगमता तक पहुंच’ शीर्षक से 2022 में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि बैंकिंग सुविधा तक पहुंच, बचत की बाधाओं को कम करके उपभोग सुगमता में सुधार करती है. यह मुद्दा गरीबों के लिए ऋण बाधाओं जितना ही महत्वपूर्ण है. इसी प्रकार, वर्ष 2021 की एसबीआई रिसर्च रिपोर्ट में पाया गया कि जनधन खातों में ज्यादा जमा राशि वाले राज्यों में अपराध की घटनाओं में कमी देखी गई और जिन राज्यों में प्रधानमंत्री जनधन योजना खाता ज्यादा खुले हैं, वहां शराब और तंबाकू जैसे नशीले पदार्थों के सेवन में महत्वपूर्ण कमी दर्ज की गई.

बैंकिंग सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुंच अब जब साकार होने की ओर है, ऐसे में आगे की चुनौती वित्तीय समावेशन को और गहरा करने की है.उत्साहजनक रूप से, आरबीआई का वित्तीय समावेशन सूचकांक इस दिशा में निरंतर प्रगति को दर्शाता है. वित्तीय समावेशन के तीन आयामों- पहुंच (35 प्रतिशत), उपयोग (45 प्रतिशत) और गुणवत्ता (20 प्रतिशत)- से संबंधित जानकारी को समाहित करने वाला यह समग्र सूचकांक 2021 में अपनी शुरुआत के बाद से लगातार बढ़ रहा है और मार्च 2024 तक 67.0 तक पहुंच गया है. इस पैमाने पर, जहां 0 पूर्ण बहिष्कार और 100 पूर्ण समावेशन को दर्शाता है, भारत का निरंतर शीर्ष की ओर बढ़ना देश भर में वित्तीय समावेशन के गहन और व्यापक होने को रेखांकित करता है.

बैंकिंग सेवाओं से वंचित लोगों को आर्थिक मुख्यधारा में लाने में प्रधानमंत्री जन धन योजना की सफलता, एक बार की उपलब्धि नहीं है. यह गहन वित्तीय समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है और इसके साथ ही यह जीवन, आजीविका और साझा समृद्धि में बदलाव लाने वाले प्रभावों को भी उजागर करता है.

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Prabhat Khabar Digital Desk
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