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उच्च पदों पर महिलाएं

उल्लेखनीय है कि विश्व के हर क्षेत्र में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के होने का आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक हो गया है. यह पहली बार हुआ है.

भारतीय कंपनियों में उच्च पदों पर महिलाओं की संख्या बढ़ना उत्साहजनक समाचार है. ग्रांट थॉर्टन के सर्वेक्षण के अनुसार, मध्य स्तर की कंपनियों के वरिष्ठ प्रबंधकीय पदों पर कार्यरत लोगों में महिलाओं की संख्या 36 प्रतिशत है. यह आंकड़ा इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि इस मामले में वैश्विक औसत 32 प्रतिशत ही है. लेकिन यह भी एक निराशाजनक तथ्य है कि पांच प्रतिशत मध्य स्तर की कंपनियों में प्रबंधन में कोई भी महिला वरिष्ठ पद पर नहीं है.

मध्य स्तर की कंपनियां वे होती हैं, जिनका वार्षिक राजस्व एक करोड़ डॉलर से एक अरब डॉलर तक होती है. इस अध्ययन के अनुसार, वैश्विक स्तर पर ऐसी 36 प्रतिशत कंपनियों का पूरा काम-काज कार्यालय से हो रहा है, जबकि 53 प्रतिशत में कुछ काम कार्यालय से और कुछ काम घर से हो रहा है. भारत में 53 प्रतिशत कंपनियों में घर और कार्यालय से सम्मिलित रूप से काम हो रहा है, 27 प्रतिशत का काम मुख्य रूप से कार्यालय से हो रहा है तथा पांच प्रतिशत लोग पूरी तरह से घर से काम कर रहे हैं और पांच प्रतिशत इस संबंध में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं कि वे कहां से काम करना चाहते हैं.

इसका लाभ महिला प्रबंधकों को मिला है. हालांकि वरिष्ठ पदों पर महिलाओं की संख्या में थोड़ी ही बढ़ोतरी हुई है, लेकिन वैश्विक स्तर पर सीईओ, प्रबंध निदेशक, मुख्य सूचना अधिकारी जैसे शीर्षस्थ पदों पर महिलाओं की संख्या में बड़ी वृद्धि हुई है. वर्ष 2019 में ऐसे 15 प्रतिशत पदों पर ही महिलाएं थीं, पर अब यह आंकड़ा 28 प्रतिशत जा पहुंचा है. यह भी उल्लेखनीय है कि विश्व के हर क्षेत्र में वरिष्ठ पदों पर महिलाओं के होने का आंकड़ा 30 प्रतिशत से अधिक हो गया है. यह पहली बार हुआ है. वैश्विक अर्थव्यवस्था अभी भी कोरोना महामारी के असर से पूरी तरह से उबर नहीं पायी है,

साथ ही युद्ध, भू-राजनीतिक तनाव, अंतरराष्ट्रीय बाजार में सुस्ती आदि ने भी चिंताएं बढ़ा दी हैं. इसके बावजूद महिलाओं का बड़े पदों पर अधिक संख्या में कार्य करना यह इंगित करता है कि कंपनियां व्यावसायिक भविष्य को लेकर आशान्वित हैं तथा वे महिलाओं को अधिक उत्तरदायित्व सौंपने के लिए भी तैयार हैं. आने वाले समय में निश्चित रूप से महिलाओं को महत्वपूर्ण पद देने के सिलसिले को गति मिलेगी. लेकिन इसके साथ यह भी प्रयास होना चाहिए कि समूचे कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़े क्योंकि बिना समुचित भागीदारी और अवसर की समानता के हम अर्थव्यवस्था को अपेक्षित गति नहीं दे सकेंगे. महामारी की मार सभी वर्गों पर पड़ी है, पर महिलाएं बहुत अधिक प्रभावित हुई हैं.

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