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वायु प्रदूषण से मिलकर लड़ने की जरूरत

जियो हेल्थ' में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भविष्य में बढ़ती ओजोन गैस की मात्रा और जलवायु परिवर्तन के कारण स्थितियां और भी गंभीर हो सकती हैं. यह तथ्य भी है कि बढ़ते ओजोन स्तर ने हमारे लिए पराबैंगनी किरणों और उनके हानिकारक प्रभावों को बढ़ा दिया है. हालिया प्राकृतिक बदलावों के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है. यदि हम ओजोन को समझने और नियंत्रित करने में विफल रहते हैं, तो इसके परिणाम भविष्य में और भी अधिक खतरनाक हो सकते हैं.

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हाल ही में दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण को देखते हुए न सिर्फ ग्रेप-1 लागू किया गया, बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने इसे गंभीरता से लेते हुए कहा कि यहां सालभर पटाखों पर प्रतिबंध जारी रहेगा. पिछले दशकों में हमने कार्बन डाइऑक्साइड को ही वायु प्रदूषण के सबसे बड़े घटक के रूप में मान्यता दी है. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर होने वाली गोष्ठियों में भी इसी पर सबसे अधिक चर्चा होती रही है. इसे ही पर्यावरण का सबसे बड़ा दुश्मन माना जाता है. जबकि हालिया अध्ययनों के अनुसार, मिथेन भी हानिकारक गैस है और यह हमारे लिए अत्यंत घातक सिद्ध हो सकता है. इसकी प्रभावशीलता कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में 75 गुना अधिक है. वायु में इसके बढ़ते घनत्व ने वायु प्रदूषण को नया आयाम दे दिया है. यह गैस हमारी गतिविधियों से ही जुड़ी है. खेती-बाड़ी, झील, तालाब, मवेशियों की बढ़ती संख्या इसके स्तर को बढ़ाने में सहायक होते हैं.

‘जियो हेल्थ’ में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, भविष्य में बढ़ती ओजोन गैस की मात्रा और जलवायु परिवर्तन के कारण स्थितियां और भी गंभीर हो सकती हैं. यह तथ्य भी है कि बढ़ते ओजोन स्तर ने हमारे लिए पराबैंगनी किरणों और उनके हानिकारक प्रभावों को बढ़ा दिया है. हालिया प्राकृतिक बदलावों के कारण स्थिति और भी गंभीर होती जा रही है. यदि हम ओजोन को समझने और नियंत्रित करने में विफल रहते हैं, तो इसके परिणाम भविष्य में और भी अधिक खतरनाक हो सकते हैं. एक अध्ययन के अनुसार, ओजोन एक ऐसी गैस है जो फोटोकेमिकल स्मॉग का मुख्य घटक होती है. यह गैस सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी किरणों को अवशोषित करने वाली ओजोन परत से भिन्न है. प्रदूषण तब शुरू होता है, जब ओजोन सूर्य के प्रकाश के संपर्क में आकर कई प्रकार की रासायनिक प्रतिक्रियाएं करता है. ऐसी हवा मुख्य रूप से वाष्पशील होती है और उसमें कार्बनिक, यौगिक और नाइट्रोजन ऑक्साइड मिली होती है जो गाड़ियों, बिजली घरों, औद्योगिक बॉयलरों, रिफाइनरियों और रासायनिक संयंत्रों से उत्सर्जित होती है. ये प्रदूषक इतने हानिकारक हैं कि भविष्य में हृदय रोगों और यहां तक कि हार्ट अटैक का भी कारण बन सकते हैं. शोध में यह भी पाया गया है कि ओजोन का उच्च स्तर चार से पांच दिनों के भीतर हार्ट अटैक की आशंका को बढ़ा सकता है. हालांकि 2.5 पीएम स्तर पर इसका सीधा संबंध प्रमाणित नहीं किया गया है, परंतु ये प्रदूषक अन्य कारकों के साथ मिलकर ऑक्सीजन पर विपरीत असर डालते हैं और हार्ट इंफेक्शन को बढ़ावा देते हैं.

फिर भी आजोन गैस को हार्ट अटैक का सीधा कारण नहीं माना जा सकता, फिर भी ये परिस्थितियों को बदतर करने का कारण बन सकती है और अन्य कारकों के साथ मिलकर यह कोरोनरी धमनियों को अवरुद्ध करने का काम कर सकती है. ऐसा अध्ययन हाल ही में अमेरिका में 18 से 55 वर्ष की आयु के लोगों के बीच किया गया, जिसमें 70 प्रतिशत प्रतिभागी महिलाएं थीं. पिछले अध्ययनों की प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए महिलाओं की अधिक संख्या को शामिल किया गया था. शोध के अंतर्गत उनके निवास स्थान की वायु गुणवत्ता स्तर की तुलना हार्ट अटैक की घटनाओं से की गयी, जिसमें प्रदूषण और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के बीच गहरा संबंध सामने आया. स्विस एजेंसी की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, आज स्थिति इतनी गंभीर हो गयी है कि कोई भी शहर इस प्रभाव से अछूता नहीं रहा. हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत की राजधानी दिल्ली वायु प्रदूषण के दृष्टिकोण से सबसे अधिक प्रदूषित शहरों में शामिल है. विश्व के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में भारत के 13 शहर शामिल हैं. विशेष रूप से असम और मेघालय के बीच स्थित एक छोटा-सा शहर, जिसे बर्नीहाट के नाम से जाना जाता है, अत्यधिक प्रदूषित पाया गया है. देश की राजधानी दिल्ली में तो वायु गुणवत्ता पहले से ही खराब रही है, इसलिए उसके आंकड़े उतने चौंकाने वाले नहीं लगते, लेकिन पहाड़ का क्षेत्र इतना प्रदूषित हो सकता है, यह चौंकाने वाली बात जरूर है. यह तय है कि हम वायु प्रदूषण को लेकर अब भी उतनी गंभीरता नहीं दिखा रहे हैं, जितनी आवश्यक है.

पिछले एक दशक में मौसम परिवर्तन का वायु प्रदूषण पर बड़ा प्रभाव पड़ा है. सर्दियों में होने वाली बारिश के कारण वायु प्रदूषण का स्तर नीचे चला जाता है, पर अब इसके अभाव में वायु प्रदूषण का असर अधिक बढ़ रहा है. एक रिपोर्ट के अनुसार, 2009 से 2019 के बीच लगभग 13 लाख लोगों की मृत्यु केवल वायु प्रदूषण से संबंधित कारणों से हुई है. यदि हालात और भी बदतर हुए तो इस संख्या का बढ़ना तय है. अब भी समय है कि हम इसे गंभीरता से लें. हालांकि पिछले प्रयत्नों से 2022 और 2023 की तुलना में स्थिति थोड़ी बेहतर हुई है, पर प्रदूषण स्तर अब भी घातक बना हुआ है. इसे अनदेखा करने का अर्थ अपने प्राणों को संकट में डालना है. अब सामूहिक रूप से निर्णय लेने का समय आ चुका है. ऐसी अनावश्यक गतिविधियों को त्यागना होगा जो प्रदूषण का कारण बनते हैं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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